बदहवास रंजना दौड़ती हुई आई और बोली— भाई साहब! इन्होंने चिराग का गला काट दिया, गुंजन भी तड़प रही है

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बदहवास रंजना दौड़ती हुई आई और बोली— भाई साहब! इन्होंने चिराग का गला काट दिया, गुंजन भी तड़प रही है

बेरोजगारी में बिखर गया परिवार: पड़ोसी अजय ने अंदर जाकर देखा तो उनके होश उड़ गए, दीवारों पर खून के छींटे थे, बेटा चिराग पलंग पर तो पिता रवि जमीन पर मृत पड़े थे

भोपाल. आर्थिक तंगी और बेरोजगारी से परेशान सिविल इंजीनियर ग्यारह मील स्थित सहारा स्टेट निवासी रवि ठाकरे (55), पत्नी रंजना ठाकरे (52), बेटे चिराग (16) और बेटी गुंजन (14) के साथ रहते थे। रवि द्वारा उठाए गए कदम से पड़ोसी भी हतप्रभ हैं। सबसे पहले घटना की जानकारी पड़ोसी अजय अरोरा को लगी। अजय ने बताया कि सुबह करीब सात बजे थे। तभी अचानक रंजना बदहवास हालात में दौड़ती हुई आई और बोली इन्होंने चिराग का गला काट दिया है। गुंजन भी तड़प रही है। यह सुनते ही मैं भागा और जैसे ही रवि के घर के अंदर गया, तो वहां की हालत देखकर बेहद घबरा गया। पलंग पर चिराग पड़ा था, पास ही रवि बेसुध पड़ा था। गुंजन के गले से भी खून बह रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आया। मंैने तुरंत पुलिस को फोन किया।

घटना के बाद पड़ोसी भी दहशत में आ गए। मौके पर जांच करने पहुंची पुलिस।

पड़ोस की महिलाएं बोलीं— रात को ही क्यों नहीं आई?
घटना का पता चलने पर पड़ोसी महिलाओं ने रंजना से बात की। उसकी पूरी बात सुनने के बाद बोलीं कि जब रवि ने रात को ऐसा किया था तो तुम्हें तुरंत आना था, हम बच्चे को बचा लेते इतनी देरी से क्यों आई हो?

खाना भी नहीं बनाया
मिसरोद थाना क्षेत्र में ग्यारह मील स्थित सहारा स्टेट निवासी रवि ठाकरे अपनी पत्नी रंजना ठाकरे और बेटे चिराग व बेटी गुंजन के साथ रहते थे। मूलत: सारणी के रहने वाले थे। रवि ठाकरे 10 सालों से सहारा स्टेट में किराए से रह रहे थे। शुक्रवार को दिन भर पूरा परिवार घर में ही अंदर बंद रहा। चिराग के दोस्तों ने उसे फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। दोस्त जब घर पहुंचे तो मां रंजना ने बताया चिराग बीमार है, सो रहा है। पुलिस को परिवार के किचन में भी शुक्रवार रात खाना बनाने के भी कोई सबूत नहीं मिले।

बढ़ता गया मकान की किस्त और बच्चों की फीस का बोझ
तीन महीने से रवि की नौकरी छूट गई थी। परिचितों सहित दोस्त अजय अरोरा को भी उन्होंने अपना रिज्यूमे भेजा था और नौकरी की तलाश कर रहे थे। रवि ने कोलार में 17 लाख रुपए में एक मकान खरीदा था, जिसकी किस्त जाती थी। वहीं रतनपुर में कार्मल स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की फीस सहित परिवार के अन्य खर्चे थे। लॉकडाउन के बाद से उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। बच्चों की फीस नहीं चुक पा रही थी, तो मकान की किस्त भी ड्यू होती जा रही थी। इसी तंगी से परिवार तनाव में रहता था और अकसर लड़ाई होती थी। रंजना ने भी घर से ही मनिहारी का सामान बेचने का काम शुरू किया था, लेकिन वो भी नहीं चला।









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