पेशाब के छीटों से उबर पाएगी बीजेपी?

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पेशाब के छीटों से उबर पाएगी बीजेपी?

पेशाब के छीटों से उबर पाएगी बीजेपी?

भोपालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक जुलाई को मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिला शहडोल आए थे। उन्होंने एनीमिया सिकल सेल राष्ट्रीय मिशन की शुरुआत की और इसे आदिवासियों के लिए बीजेपी की चिंता से जोड़ने से खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने सिकल सेल उन्मूलन के लिए कुछ नहीं किया क्योंकि यह बीमारी ज्यादातर आदिवासियों को होती है। उनकी सरकार ने आदिवासियों के कल्याण के लिए तमाम योजनाएं शुरू की हैं और अब यह मिशन लॉन्च किया है। कारण यह कि बीजेपी के लिए आदिवासी केवल एक आंकड़ा भर नहीं हैं, पार्टी उनके कल्याण के लिए वास्तव में गंभीर है।

डैमेज कंट्रोल में जुटी बीजेपी

इसके दो दिन बाद ही एक वायरल वीडियो ने प्रधानमंत्री की सारी कोशिशों पर पानी फेर दिया। सीधी जिले से सामने आए इस वीडियो में एक युवक दलित आदिवासी के मुंह पर पेशाब करता हुआ दिखा। वीडियो सामने आते ही सीधी से लेकर भोपाल और दिल्ली तक हड़कंप मच गया, क्योंकि आरोपी के बीजेपी से जुड़े होने का दावा किया गया। बीजेपी ने शुरुआत में आरोपी से दूरी बनाने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने इसे इतना तूल दिया कि पार्टी को डैमेज कंट्रोल में जुटना पड़ा। आरोपी को देर रात गिरफ्तार करने के बाद पांच जुलाई को उसके घर पर बुलडोजर चलाया गया। प्रवेश शुक्ला के खिलाफ रासुका लगाकर उसे जेल भेज दिया गया। इस पर भी बवाल नहीं रुका तो छह जुलाई की सुबह पीड़ित आदिवासी को मेहमान बनाकर मुख्यमंत्री आवास लाया गया। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उसके पैर धोए, माफी मांगी और साथ में खाना खिलाया। चुनावी साल को देखते हुए बीजेपी इस मुद्दे को दबाने की हरसंभव कोशिश तो कर रही है, लेकिन सवाल फिर भी उठ रहे हैं। और इसके वाजिब कारण भी हैं।

इसलिए उठ रहे सवाल

आरोपी प्रवेश शुक्ला को जब गिरफ्तार किया गया तो वह किसी हीरो की तरह थाने पहुंचा। पुलिस वाले उसकी पीठ ठोंक रहे थे और वह हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहा था। इस पर सवाल उठे तो अगले दिन एक और वीडियो सामने आया जिसमें पुलिसवाले उसे घसीटने के अंदाज में ले जाते हुए दिखे।

बुलडोजर से घर तोड़ने की कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं। विरोधियों ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई केवल दिखावे के लिए की गई। घर के बाहरी स्ट्रक्चर को तोड़ा गया, लेकिन मुख्य बिल्डिंग को वैसे ही छोड़ दिया गया।

आरोपी के खिलाफ कार्रवाईयों के बीच ही पीड़ित आदिवासी के परिजन सवाल उठाने लगे। उनका कहना था कि मामला सामने आने के बाद आदिवासी युवक घर नहीं आया। उन्हें उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जा रही। कांग्रेस के नेता इसको लेकर पीड़ित के घर पर धरने पर बैठ गए।

पीड़ित को सीएम हाउस बुलाने पर भी अंगुलियां उठ रही हैं। आरोप लग रहे हैं कि पांव पांव शिवराज कहलाने वाले मुख्यमंत्री खुद सीधी क्यों नहीं गए। हर मुसीबत में लोगों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री ने कैमरे के सामने पीड़ित के पांव धोकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली।

एक्ट करती हुई नहीं दिख रही सरकार

ये सभी सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार एक्ट नहीं कर रही, बल्कि रिएक्ट कर रही है। मामला सामने आने के बाद से हर कार्रवाई तभी हो रही है जब विपक्षी मुखर होते हैं। इससे सरकार की नीयत पर सवाल खड़े होते हैं। सरकार की कार्रवाइयों से यह आश्वासन नहीं मिल रहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी। ना ही इसकी गारंटी मिलती दिख रही कि दलित आदिवासियों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए सरकार गंभीर है। केवल पैर धोने भर से बीजेपी के ऊपर पड़े पेशाब के छींटे धुल नहीं जाएंगे, ना ही पीएम मोदी के आंकड़े वाली बात पर लोग भरोसा कर पाएंगे।

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