पूसा, आईआईटी, जेएनयू पर एहसान है दिल्ली के इन गांवों का, जाने कैसे पड़ी इन संस्थानों की नींव

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पूसा, आईआईटी, जेएनयू पर एहसान है दिल्ली के इन गांवों का, जाने कैसे पड़ी इन संस्थानों की नींव

विवेक शुक्ला : दिल्ली के गांव वालों ने भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, आईआईटी और जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (जेएनयू) को खड़ा करने में सरकार को खुशी-खुशी अपनी जमीनें दी थीं। जब इन शिक्षा और शोध संस्थानों की स्थापना के लिए काम शुरू हुआ तो गांव वालों ने मुआवजे को मुद्दा नहीं बनाया क्योंकि बात शिक्षा और ज्ञान से जुड़ी थी।

खामपुर की जमीन पर बना पूसा
वेस्ट दिल्ली में पटेल नगर के पास खामपुर की ही जमीन पर पूसा का निर्माण हुआ। इधर के किसानों ने अपनी जमीनें सरकार को देने में कोई अवरोध खड़ा नहीं किया। बल्कि सरकार का साथ ही दिया था। खामपुर को इस बात का फख्र है कि इसने देश की खेती-बाड़ी के लिए बड़ा योगदान दिया। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा का 1940 में निर्माण हुआ था। इसी पूसा में भारत की हरित क्रांति की नींव रखी थी डॉक्टर नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग और डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने अपनी टीम के साथ। खामपुर में यादव परिवार खासी संख्या में रहे हैं। यहां एक दौर में दिल्ली मिल्क स्कीम, डीटीसी और स्वतंत्र भारत मिल्स के भी बहुत से मुलाजिम रहते थे। देश के बंटवारे के बाद कुछ सिख परिवारों ने भी इधर शरण ली। हालांकि इधर मुख्य रूप से हरियाणा के रेवाड़ी के लोग रहते रहे। ये सब इधर 100 साल से भी पहले आ गए थे। हालांकि तब हरियाणा तो देश के नक्शे पर आया नहीं था। तब आज का हरियाणा पंजाब का हिस्सा था। पूसा के लिए खामपुर की जमीन अधिग्रहीत करने की एक वजह थी। वह यह थी क्योंकि इधर चार कुएं थे। इनका पानी बेहद शीतल और मीठा होता था। अब सिर्फ एक ही कुआं शेष है। उसकी गांव वाले शादी ब्याह के अवसर पर पूजा करते थे।

पूसा संस्थान, दिल्ली।

आईआईटी और लाडो सराय वाले दीवान सिंह
आईआईटी कैंपस लाडो सराय,जिया सराय, बेर सराय और कटवारिया सराय गांवों की जमीनों को अधिग्रहित करके बना था। ये 320 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है। लाडो सराय के बड़े किसान चौधरी दीवान सिंह ने आसपास के गांव वालों को एकत्र कर आईआईटी की जमीनें सरकार को सुपुर्द करने का फैसला लिया। लाडो सराय के रहने वाले तथा आईआईटी के बायो -मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग में अध्यापक डॉ. महेश शर्मा ने बताया कि दीवान सिंह लाडो सराय में स्कूल तथा डिस्पेंसरी के लिए भी अपनी जमीनें दे चुके थे। यह 1950 के दशक के अंत की बातें हैं।

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आईआईटी दिल्ली।

वसंत और मुनिरका पर क्या बना
अगर बात जेएनयू की करें तो इसके लिए जमीनें मुनिरका तथा वसंत गांवों की अधिग्रहित की गई थी। यहां पर खेती नहीं होती थी। इधर खेती करना कठिन भी था क्योंकि पानी का इधर संकट शुरू से ही रहा। यह संकट आज भी बरकरार है। चूंकि ये सारा क्षेत्र पहाड़ी है, इसलिए इधर भूजल बहुत नीचे ही उपलब्ध हो पाता है। इसलिए यहां की भूमि खेती के लिए कभी भी मुफीद नहीं थी। जेएनयू के लिए एक हजार एकड़ जमीन ली गई थी।

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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली।

जाति तथा सांप्रदायिक दंगों से दूर दिल्ली के गांव
दिल्ली के गांवों का चरित्र बहुत लोकतांत्रिक रहा है। इधर कभी शक्तिशाली जाति ने कमजोर समझी जाने वाली जाति को प्रताड़ित नहीं किया। यहां पर सब मिल-जुलकर रहते रहे हैं। सांप्रदायिक दंगों के उदाहरण भी नहीं मिलते। हां,1947 में मालवीय नगर के पास बेगमपुर गांव तथा महरौली में छिटपुट घटनाएं अवश्य हुईं थीं। बेशक, यहां पर जाटों के तो सबसे अधिक गांव हैं। यहां त्यागी, गुर्जर, ब्राहमण समाज के भी गांव हैं। जब हम कहते हैं कि फलां- फलां समाज का गांव तो इसका यह मतलब ना समझा जाए कि उधर बाकी जातियां या धर्मों से जुड़े लोग नहीं रहते।

बसई दारापुर का संबंध मोती नगर से क्या
इस बीच, अगर बात त्यागी समाज की करें तो इनके प्रमुख गांवों में बसई दारापुर (मोती नगर तथा रमेश नगर इसकी जमीन पर बने), होलंबी, बुराड़ी, वजीराबाबाद, भड़ोला, हस्तसाल शामिल हैं। उधर, गुर्जरों के प्रमुख गांवों में कोटला, चिल्ला,गाजीपुर, पिलंजी (सरोजनी नगर बना) शामिल हैं। सीलमपुर में गुर्जर तथा ब्रामहण समाज लगभग बराबर रहा है। इसका मूल नाम सलीमगढ़ था। भोगा ब्राहमणों का गांव है।

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एक शाहबाद मोहम्मद पुर भी
साउथ दिल्ली में मोहम्मदपुर का नाम बदलने का प्रस्ताव को एमसीडी ने पास कर दिया। पर एक मोहम्मदपुर और भी है। इसके पहले लगता है शाहबाद। पूरा नाम है शाहबाद मोहम्मदपुर। शाहबाद मोहम्मदपुर इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईजीआई) से सटा हुआ है। इसे तीन तरफ से एयरपोर्ट ने घेरा हुआ है। इसकी तथानंगल देवत गांवों की जमीन पर एयरपोर्ट आबाद हुआ था। इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (आईजीआई) एयरपोर्ट के लिए जमीनें 80 के दशक के शुरू में अधिग्रहित की जाने लगी थीं। रात दसेक बजे के बाद शाहबाद मोहम्मदपुर गांव का आकाश जगमगाने लगता है विमानों की रोशनी से।

navbharat times -Madhavpuram News : माधवपुरम गांव में आपका स्वागत है…. भाजपा ने बदल दिया दिल्ली के मोहम्मदपुर का नाम
कितना पुराना इतिहास इस गांव का
शाहबाद मोहम्मदपुर का करीब 350 सालों तक का इतिहास मिलने का गांव वाले दावा करते हैं। जाट बहुल गांव में अन्य सभी 36 बिरादरियों के लोग खुशी-खुशी से रहते हैं। कभी इधर के लोग अपनी खेती की उपज पर आश्रित थे। अब खेती बंद हो चुकी है। यहां एयरपोर्ट के बनने से पहले रबी की फसलें उगाई जाती थीं। गेंहू और बाजरा की खेती खासतौर पर की जाती थी। पर बदले हुए हालातों में नई पीढ़ी सरकारी और प्राइवेट नौकरियां कर रही है।

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