नीतीश और अरुण जेटली की यारी, दिल्ली यूनिवर्सिटी से पटना में जेपी आंदोलन तक की अनसुनी दास्तां

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नीतीश और अरुण जेटली की यारी, दिल्ली यूनिवर्सिटी से पटना में जेपी आंदोलन तक की अनसुनी दास्तां

नीतीश और अरुण जेटली की यारी, दिल्ली यूनिवर्सिटी से पटना में जेपी आंदोलन तक की अनसुनी दास्तां

पटना: इसमें कोई शक नहीं कि अरुण जेटली और नीतीश कुमार का मिलना एक काफी पढ़े लिखे और प्रतिभावान दो व्यक्तियों का मिलन था। इन दोनों में राजनीति की महत्वकांक्षा भी कूट-कूट कर भरी थी। छात्र आंदोलन से निकल कर देश की राजनीति में सक्रिय हुए अरुण जेटली का जे पी आंदोलन में आना नीतीश कुमार की राजनीति को परवान पाना भी कह सकते हैं। 1974 के आंदोलन में दोस्ती की जो अगाध राजनीतिक यात्रा नीतीश कुमार और अरुण जेटली के साथ शुरू हुई वह एनडीए के गठबंधन में तो कामयाब हुई ही। साथ ही जब-जब भाजपा के भीतर एक धड़े ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने की बात कही तब तब अरुण जेटली पार्टी को यह समझाने में कामयाब रहे कि अभी गठबंधन को नीतीश कुमार का नेतृत्व चाहिए।

अटल की सरकार में मिली जगह

नीतीश कुमार की राजनीतिक जिंदगी में अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अटल बिहारी वाजपेई और आडवाणी के बीच नीतीश कुमार को करीब लाने में अरुण जेटली का बड़ा हाथ रहा है। उन्होंने नीतीश कुमार के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच काफी लॉबिंग की। और यही वजह थी कि 1996, 1998 में बनी मंत्रिपरिषद में नीतीश कुमार को न केवल जगह मिली बल्कि अटल जी ने उन्हें स्वतंत्र प्रभाव वाले विभाग भी दिए।
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वर्ष 2000 और नीतीश कुमार की उड़ान

यह वह समय था जहां नीतीश कुमार का ग्राफ अचानक बढ़ गया। इस विधानसभा चुनाव में काफी कम सीट पाने के बावजूद जब नीतीश कुमार को अटल जी ने बतौर मुख्यमंत्री घोषित कर दिया तो इसके पीछे की फील्डिंग अरुण जेटली ने ही की थी। तब भाजपा का एक धड़ा नीतीश कुमार की नेतृत्व सौंपने के विरुद्ध था। यहां तक कि नीतीश कुमार की पार्टी के भी कई लोग उन्हें नेता नही बनाना चाहते थे। इनमें दिग्विजय सिंह,अरुण सिंह लगातार जॉर्ज फर्नांडिस को उकसा रहे थे। पर नीतीश कुमार के प्रति अरुण जेटली का अटूट विश्वास कायम रहा।
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वर्ष 2005 का विधान सभा चुनाव

वर्ष 2005 के विधान सभा चुनाव में भी नीतीश कुमार के नेतृत्व के प्रति एक नाराजगी भाजपा के भीतर थी। तब भी अरुण जेटली एक कवच के रूप में नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर में साथ बने रहे। 2009 में नीतीश कुमार ने जब कई मंत्रियों का विभाग बदला तो भाजपा के कई नामवर नेता नीतीश कुमार के विरुद्ध हो गए। इन भाजपा नेताओं के विरुद्ध मोर्चा तब भी अरुण जेटली ने खोला। उन्हें मिलाया और केंद्रीय नेतृत्व के जरिए भी नीतीश कुमार का बिहार में एनडीए का नेतृत्व बरकरार रहा। वो भी तब जब चंद्रमोहन राय, नंदकिशोर यादव,अमरेंद्र प्रताप सरीखे नेता नीतीश कुमार के विरोध में चले गए थे।
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वर्ष 2010 और नीतीश भाजपा का संबंध

वर्ष 2010 के चुनाव के समय में गिरिराज सिंह ,अश्विनी चौबे , सीपी ठाकुर वगैरह खुल कर नीतीश कुमार के विरुद्ध खड़े हो गए थे। यह समय नरेंद्र मोदी के केंद्र की राजनीति में आगमन का समय था। एक-एक कर अटल आडवाणी के लोग राजनीति से दरकिनार किए जा रहे थे। सो इस समय भी अरुण जेटली नीतीश कुमार के साथ खड़े रहे। बहरहाल, भारतीय राजनीत में अरुण जेटली नीतीश कुमार के जीवन में एक शॉक एब्जॉर्वर के रूप में काम करते रहे। नीतीश के केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री बनने के पीछे अरुण जेटली का बड़ा योगदान था। इसीलिए नीतीश आज भी जेटली को याद करते हैं।

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