नंबर रेस में दौड़ते तो हांफ जाते, धीरे-धीरे चलकर बदला जिंदगी का अंकगणित

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नंबर रेस में दौड़ते तो हांफ जाते, धीरे-धीरे चलकर बदला जिंदगी का अंकगणित

फरीदाबाद: चाहे कितने भी चश्मे बदल-बदलकर पढ़ लीजिए, यह कहानियां हमेशा हंसती-मुस्कुराती नजर आएंगी। नकारात्मकता से लबरेज शब्द कैसे जिंदगी के पन्नों पर उछलकूद करते हुए सफलता के सुनहरे अक्षर बन जाते हैं, यह सीख देने के लिए यह चंद लघुकथाएं काफी हैं। फरीदाबाद के इन बाशिंदों के बारे में पढ़ेंगे तो यकीनन महसूस होगा कि किसी स्कूल का रिपोर्ट कार्ड कामयाबी की गारंटी कभी नहीं हो सकता। यह बताने की जरूरत इस वक्त इसलिए है, क्योंकि मौसम परीक्षा परिणाम का है। हाल ही घोषित हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के 10वीं और 12वीं के रिजल्ट में मनचाहे अंक न आ पाने से सैकड़ों स्टूडेंट हताश हैं। यह निराशा और ज्यादा इसलिए है, क्योंकि ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चे को सबसे आगे देखना चाहते हैं। नंबर रेस में हांफने का इरादा छोड़कर धीरे-धीरे तकदीर कैसे लिखी जाती है, आप खुद देख लीजिए…

फेल हो गए थे, अब डीएसपी हैं
नाम राजेश चेची। हरियाणा पुलिस में डीएसपी हैं। आप सोच रहे हों कि स्कूल टाइम में राजेश टॉपर होंगे, जबकि ऐसा नहीं है। राजेश 10वीं में एवरेज थे। 11वें साइंस स्ट्रीम में फेल हो गए और फिर 12वीं साइंस से करने राजस्थान चले गए। वहां भी 12वीं में फेल हो गए। इसके बाद उन्होंने राह बदली। आर्ट स्ट्रीम ली, तब पास हुए। राजेश बताते हैं कि मैं बोर्ड परीक्षाओं में औसत अंकों से ही पास हुआ। स्नातक और बीएड के बाद स्कूल टीचर बना, फिर और मेहनत की। हरियाणा पुलिस में भर्ती हुआ। मुझे बताना था कि नंबर गेम कुछ नहीं होता। फेल होने वाले भी कामयाब होते हैं। देश में कई बिजनेसमैन, वैज्ञानिक ऐसे हैं, जो स्कूल में एवरेज स्टूडेंट थे। पैरंट्स को चाहिए कि बच्चों पर ज्यादा नंबर लाने का दबाव न बनाएं। इसके बजाय देखें कि उनकी रुचि किस क्षेत्र में है। उसी में उन्हें आगे बढ़ने दें।

62% नंबर थे, निगम में मैनेजर बने
मेरे 10वीं बोर्ड में औसतन अंक थे। 62 प्रतिशत नंबर मिले थे। 90 प्रतिशत तो दूर की बात थे। दूसरों से नंबर काफी कम थे, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। मेहनत करता गया। भारतीय खाद्य निगम में नौकरी मिल गई। निगम में मैनेजर पद पर रह चुके कैलाश शर्मा अपना सफर बताते हुए कहते हैं कि 12वीं और स्नातक की पढ़ाई करने के साथ-साथ पर्सनल मैनेजमेंट और इंडस्ट्रियल रिलेशन के अलावा जर्नलिज्म भी किया। अब रिटायरमेंट के बाद स्टूडेंट्स का मनोबल बढ़ाने के लिए काम शुरू किया है। मानव सेवा समिति के माध्यम से निराश हो चुके बच्चों को बताते हैं कि सिर्फ परीक्षा में अच्छे अंकों तक ही सीमित नहीं होना है। तरक्की के लिए अपना हुनर आजमाना चाहिए।

औसत स्टूडेंट्स ने खड़ी की खुद की कंपनी
भूड़ कॉलोनी में रहने वाले योगेंद्र अत्री भी स्कूल टाइम में औसत स्टूडेंट रहे। उनके 10वीं व 12वीं में लगभग 63 प्रतिशत नंबर रहे। स्नातक की, लेकिन कम नंबर बहुत कम थे। योगेंद्र बताते हैं कि रिजल्ट देखकर परिवार ने डांटा, लेकिन मैंने हौसला नहीं छोड़ा। पढ़ाई जारी रखी। मुझे नौकरी मिली और अपनी मेहनत से कंपनी में सीनियर मैनेजर एचआर रहा। कुछ साल बाद लगा कि खुद का कुछ करना है तो खुद की कंपनी खड़ी की। अभी पांच करोड़ सालाना टर्नओवर है। वहीं, 10वीं कक्षा में 35 प्रतिशत अंक लाने वाले आरसी चौधरी आज शहर के कामयाब बिजनेसमैन हैं। चौधरी बताते हैं कि इतने कम पर्सेंट नंबर आने पर भी मैं बेहद खुश था। कोई जो मर्जी कहता, क्या फर्क पड़ता, जब मेरे इरादे ही अलग थे। मुझे बिजनेस में जाना था। जानता था कि सब अधिकारी बन जाएंगे तो फिर बिजनेसमैन, म्यूजिशियन, पेंटर कौन बनेगा। सिविल इंजीनियरिंग की। इसके बाद मैंने पोर्टेबल हाउस का बिजनेस शुरू किया। आज 30 से 35 करोड़ सालाना टर्नओवर है। स्कूल में नंबर कम आने का कोई मलाल नहीं रहा है।

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