दिल्ली के ओलंपियनः बुराड़ी की गलियों में कंचे खेलते थे, अब ओलिंपिक में चमकने को तैयार

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दिल्ली के ओलंपियनः बुराड़ी की गलियों में कंचे खेलते थे, अब ओलिंपिक में चमकने को तैयार

हाइलाइट्स

  • राइफल शूटर दीपक के गांव वालों को मेडल जीतने का भरोसा
  • दीपक ने 2017 में पहली बार कॉमनवेल्थ खेल में ब्रॉन्ज मेडल जीता
  • दीपक ने छोटे भाई हंस ने बताया, गुरुकुल में दीपक तीरंदाजी करते थे

राम त्रिपाठी, बुराड़ी
‘दीपक भाई मेडल जीतकर लाएंगे। पहले भी वह मेडल लाए हैं। वह ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, यह हमारे लिए गर्व की बात है।’ बुराड़ी के गांव जगतपुर के लोगों का यह कहना है। इस क्षेत्र में राइफल शूटर दीपक का घर लगभग सभी लोग जानते हैं। बुराड़ी, संत नगर रोड से पुस्ता रोड के दाईं ओर बसें गांव जगतपुर में पहुंचते ही आप किसी भी राहगीर या दुकानदार से शूटर दीपक के घर का पता पूछेंगे, तो वह आसानी से बता देगा। मगर आपको नाम के साथ राइफल शूटर जरूर लगाना होगा। गांव की गली नंबर 6 तक लोग आपको छोड़ने भी आ सकते हैं। इसी गली का दूसरा मकान खिलाड़ी और एयर फोर्स के जूनियर वॉरंट ऑफिसर दीपक का है।
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लगभग 200 वर्ग मीटर क्षेत्र में 4 मंजिला बने इस मकान में दीपक अपने तीन भाई और माता-पिता के साथ रहते हैं। उनके छोटे भाई हंस बताते हैं कि दीपक ने परिवार के लिए काफी तपस्या की है। आज उनका परिवार जिस सम्मानित स्थिति में है, उसका श्रेय वह अपने पिता और सबसे बड़े भाई दीपक को देते हैं। ‘साधनों के अभाव में दीपक ने यह उपलब्धि हासिल की है।’ हंस यह कहते हुए बताते हैं कि बचपन में दीपक कंचे खेलते थे। गांव जगतपुर और उसके आसपास खेल और पढ़ाई की कोई विशेष सुविधाएं नहीं थी। दीपक की पढ़ाई गुरुकुल में ही हुई है। दीपक ने 2017 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राइफल शूटिंग में कॉमनवेल्थ खेल में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया था। उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक मेडल लाने का सिलसिला जारी रहा। अपने भाई की इस उपलब्धि के लिए वे देहरादून के पौंदा क्षेत्र स्थित गुरुकुल के आचार्य धनंजय को विशेष रुप से श्रेय देते हैं।

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वह बताते हैं कि पहले गुरुकुल में दीपक भाई तीरंदाजी करते थे। आचार्य धनंजय ने उन्हें राइफल शूटिंग खेलने की सलाह दी। शूटर दीपक की पत्नी रिंकी ने बताया कि उनकी कामयाबी एक दिन की मेहनत का परिणाम नहीं है। उन्होंने लंबे समय तक कई चीजों से समझौता किया है। वह शूटिंग के लिए गुरुकुल से 3 किलोमीटर दूर शूटिंग रेंज तक पैदल आते जाते थे। उनके पास वहां जाने के लिए कोई साधन नहीं था। वह सुबह 3 बजे उठ जाते हैं। एक्सरसाइज और योग पर विशेष ध्यान देते हैं। उन्होंने तिरंगे का सम्मान बढ़ाने के लिए अपने कई सपनों से समझौता किया है। दीपक का परिवार गर्व से कहता है कि गुर्जर समाज में वह पहले व्यक्ति हैं, जो ओलिंपिक में राइफल शूटिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 27 तारीख को होने वाली 10 मीटर राइफल शूटिंग टीम स्पर्धा में भरत मेडल जरूर जीतेगा।

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