‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’ Review: अधूरी ख्वाहिशों की पूरी कहानी

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नई दिल्ली: पहले सिनेमा में जहां महिलाओं को काफी प्रेरणादायक, पवित्र और सकारात्मक किस्म के किरदारों में दिखाया जाता था, पिछले कुछ सालों में फिल्ममेकर्स ने महिलाओं को ना केवल आवाज दी है बल्कि ऐसे किरदारों के रूप में सामने रखा है, जिनमें उन्हें ऐसे व्यक्तित्व के तौर पर दिखाया जाने लगा है, जिनमें कमियां होती हैं, जो गलतियां करती हैं, और उन गलतियों से सीखती भी हैं. अलंकृता श्रीवास्तव (Alankrita Srivastava) की मूवी ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे (Dolly Kitty Aur Woh Chamakte Sitare)’ की दोनों प्रमुख महिला किरदार चुलबुली या विद्रोही नहीं हैं बल्कि ऐसी आम लड़कियां हैं, जो परफेक्ट नहीं हैं, गलतियां करती हैं, जो गलतफहमी और लिंगवाद से निपटती हैं और सामाजिक कुंठाओं से आजादी की खोज करती हैं.

फिल्म: डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे
डायरेक्टरः अलंकृता श्रीवास्तव
कलाकारः भूमि पेडणेकर, कोंकणा सेन शर्मा, विक्रांत मैसी, आमिर बशीर और अमोल पाराशर

ऐसी है कहानी
ग्रेटर नोएडा के बैकग्राउंड में रची गई ये कहानी 2 कजिन बहनों डॉली और किट्टी की जिंदगियों को लेकर है, जो एकदूसरे के फैसलों पर सवाल उठा सकती हैं, एक दूसरे से कॉम्पटीशन कर सकती हैं और तर्क-कुतर्क भी, लेकिन दोनों ही एक दूसरे को सबसे ज्यादा मदद भी करती हैं. बड़ी बहन डॉली (कोंकणा शर्मा) है, जिसने अपनी जिंदगी बेफ्रिक्र अंदाज में जी है. काफी कम उम्र में ही अपनी मां से अलग हो चुकी डॉली, ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की कोशिश में रहती है लेकिन किसी को साबित करने के लिए नहीं कि उसकी लाइफ कितनी परफेक्ट है. सैक्स रहित शादी और सासांरिक कामों में फंसी डॉली अपने खालीपन को भौतिक वस्तुओं के भरने की कोशिश करती रहती है, जैसे- कपड़े, नया एसी, एक फ्लैट आदि. उसे अपने छोटे बेटे की लड़की बनने की उत्सुकता से भी निपटना है. जबकि वो अपनी छोटी बहन काजल उर्फ किट्टी (भूमि पेडनकर) की सारी बातों से असहमति दिखाती हैं, अंदर से वो उसकी तरह ही बनना चाहती है.

जब किट्टी को हुआ प्यार
दूसरी तरफ काजल, जो बिहार के दरभंगा से उसके पास ग्रेटर नोएडा रहने आई है, थोड़ी भोली है, जिसको आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है, एक ऐसा जॉब ज्वॉइन कर लेती है, जो एक पेड रोमांसिंग एप में कॉलर का जॉब है और उसे लोगों को अपनी बातों से लोगों की यौन इच्छाओं को संतुष्ट करना है. शुरूआत में इस जॉब में थोड़ा आशंकित रहने वाली किट्टी बाद में उसमें मिलने वाले पैसे की वजह से सहज होने लगती है, यहां तक कि एक कॉलर प्रदीप (विक्रांत मैसी) से दोस्ती भी कर लेती है.

ये सीन हैं खास
अलंकृता श्रीवास्तव की आखिरी रिलीज मूवी ‘लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का’ को हमेशा बुआजी के शानदार किरदार के लिए याद किया जाएगा, जिसने अपने जैसी हजारों को आवाज दी, जो पूरी जिंदगी परिवार के बोझ को ही झेलती रहीं, पूरी जिंदगी किसी का भी प्यार अपने लिए बिना पाए, बिना किसी के दिली लगाव का अहसास किए. उस मूवी की तरह ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’ भी महिलाओं की यौन महत्वाकांक्षाओं के बारे में हैं, जो लव, लस्ट यहां तक कि चरम सुख (ऑर्गेज्म) को भी खोजती हैं. एक मार्मिक सीन में किट्टी बताती है कि कैसे मर्दों को केवल फोन सैक्स पसंद होता है, वो अफसोस करती है कि महिलाओं की यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी ऐसी ही कोई ऐप होना चाहिए. ये फिल्म इसी तरह के छोटे छोटे दृश्यों से सजी हुई है. ऐसा ही एक सीन जहां डॉली खुद से अलग रह रही मां नीलिमा अजीम से जब मिलती है, तो ये काफी भावुक सीन है और एक दूसरा सीन जिसमें डॉली का बेटा पप्पू एक म्यूजियम में एक डॉल की ड्रेस में खुद की तारीफ करता है, काफी खूबसूरती से लिखा गया है.

काबिले तारीफ हैं कोंकणा और भूमि
कोंकणा सेन शर्मा को अरसे बाद किसी मूवी में देखना ताजगी भरा है. कोंकणा अपने रोल में इतनी नेचुरल लगती हैं, जैसे डॉली का किरदार जो थोड़ी मक्कार है, थोड़ा जलने वाली है और मन में उसके तमाम आकांक्षाएं हैं. उसका साथ देने वाली, खुद को अपने काम में चमकाने वाली भूमि पेडनकर है, जिसे इतने कम समय में हर आने वाली फिल्म के साथ खुद की प्रतिभा को साबित कर दिया है. ये वाकई में खुशी की बात है कि आप 2 ताकतवर और आत्मविश्वास से भरी हुई महिलाओं को देख रहे हैं, जो एक दूसरे की तारीफ करते हुए जबरदस्त परफॉर्मेंस दे रही हैं.

विक्रांत और अमोल की एक्टिंग भी शानदार
फिल्म में काम करने वाले मर्द भी बेहतरीन हैं. डॉली के पति के रूप में आमिर बशीर और प्रदीप के किरदार में विक्रांत मैसी, डॉली के क्रश उमर के रोल में अमोल पाराशर यूं तो सपोर्टिंग एक्टर्स के रोल में हैं, लेकिन सभी ने अपने किरदारों के साथ भरपूर न्याय किया है.

कहां रह गई कमी
हालांकि फिल्म में स्क्रिप्ट के स्तर पर कुछ खामियां दिखती हैं, जैसे फिल्म बड़े हाई नोट पर शुरू होती है, लेकिन फिर ये काफी धीरे-धीरे चलती है और कई सारे मुद्दों को उठाने लगती है, जिसमें से किसी की भी गहराई में नहीं जाती है. नौकरी में कैजुअल सैक्सिज्म, मिसॉगिनी, जेंडर स्टीरियोटाइप्स सब कुछ उस एक स्क्रिप्ट में भर दिया गया है, जिसे केवल दो महिलाओं को अपनी आवाज को रिडिस्कवर करने पर ही फोकस रखना चाहिए था. 

क्यों देखें
खामियों के बावजूद, ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’ केवल इसलिए देखी जा सकती है क्योंकि इसकी दोनों लीड एक्ट्रेसेज काफी बेहतरीन हैं. दोनों हीरोइंस आत्मविश्वास से लबरेज कलाकार हैं, शानदार एक्टिंग करती हैं. मूवी में भी छोटे रोल में चमकने का रास्ता ढूंढ लेती हैं, जिसमें खामियां होती हैं. ऐसे ही दिमाग में ख्याल आया कि अगर इस मूवी को वेबसीरीज के तौर पर बनाया जाता तो इस स्टोरी के साथ ज्यादा न्याय होता. ‘डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे’ आप नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं.

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