‘डॉक्टर कोविड ड्यूटी से बचना चाहता है, ऐसा व्यक्ति अपने पद के लिए उचित नहीं’
हाइलाइट्स:
- डॉक्टरों को एक कैटिगरी में रखने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
- दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया
- कोर्ट ने कहा- जब आदेश पारित किया गया तो यह युद्ध जैसी स्थिति थी
नई दिल्ली
कोविड मैनेजमेंट ड्यूटी के लिए अलग-अलग वरिष्ठता और विभागों के डॉक्टरों को एक कैटिगरी में रखने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट 5,000 रुपये का हर्जाना लगाते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन दिनों युद्ध जैसी स्थिति को देखते हुए यह कदम उठाया गया था।
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा याचिका किसी भी स्तर से जनहित में नहीं थी। बल्कि इसे देखने से ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता डॉक्टर कोविड-19 ड्यूटी से बचना चाहता है। अदालत ने कहा कि ऐसा व्यक्ति अपने पद के लिए उचित नहीं है। याचिकाकर्ता ने आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह उपराज्यपाल की सहमति के बिना जारी किया गया था, जैसा कि 27 अप्रैल से लागू जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम के तहत जरूरी था। बेंच ने इस तर्क के मानने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली सरकार की ओर से 16 मई को जारी अधिसूचना अस्थायी रूप से थी और विशुद्ध रूप से जनता की जरूरत पर आधारित थी। शहर में कोरोना महामारी के कारण आपात जरूरतों की गंभीरता को देखते हुए थी। आगे कहा कि जब आदेश पारित किया गया तो यह युद्ध जैसी स्थिति थी। उस समय सभी पढ़ाने और नहीं पढ़ाने वाले डॉक्टरों के साथ-साथ मेडिकल छात्रों से भी अपने दायित्व को पूरा करने के लिए आगे आने को कहा गया था।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह, 16 मई का आदेश बिल्कुल न्यायसंगत और निष्पक्ष था। दिल्ली सरकार के पास शहर में बेहद गंभीर जरूरतों को देखते हुए ऐसा आदेश जारी करने के लिए सभी शक्ति, अधिकार क्षेत्र और अधिकार हैं। क्षेत्राधिकार की कोई आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने कहा कि उसे दिल्ली सरकार की ओर से कोविड-19 प्रबंधन में दखल देने की कोई वजह नहीं दिख रही है।
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हाइलाइट्स:
- डॉक्टरों को एक कैटिगरी में रखने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
- दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया
- कोर्ट ने कहा- जब आदेश पारित किया गया तो यह युद्ध जैसी स्थिति थी
कोविड मैनेजमेंट ड्यूटी के लिए अलग-अलग वरिष्ठता और विभागों के डॉक्टरों को एक कैटिगरी में रखने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट 5,000 रुपये का हर्जाना लगाते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उन दिनों युद्ध जैसी स्थिति को देखते हुए यह कदम उठाया गया था।
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा याचिका किसी भी स्तर से जनहित में नहीं थी। बल्कि इसे देखने से ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता डॉक्टर कोविड-19 ड्यूटी से बचना चाहता है। अदालत ने कहा कि ऐसा व्यक्ति अपने पद के लिए उचित नहीं है। याचिकाकर्ता ने आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह उपराज्यपाल की सहमति के बिना जारी किया गया था, जैसा कि 27 अप्रैल से लागू जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम के तहत जरूरी था। बेंच ने इस तर्क के मानने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली सरकार की ओर से 16 मई को जारी अधिसूचना अस्थायी रूप से थी और विशुद्ध रूप से जनता की जरूरत पर आधारित थी। शहर में कोरोना महामारी के कारण आपात जरूरतों की गंभीरता को देखते हुए थी। आगे कहा कि जब आदेश पारित किया गया तो यह युद्ध जैसी स्थिति थी। उस समय सभी पढ़ाने और नहीं पढ़ाने वाले डॉक्टरों के साथ-साथ मेडिकल छात्रों से भी अपने दायित्व को पूरा करने के लिए आगे आने को कहा गया था।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह, 16 मई का आदेश बिल्कुल न्यायसंगत और निष्पक्ष था। दिल्ली सरकार के पास शहर में बेहद गंभीर जरूरतों को देखते हुए ऐसा आदेश जारी करने के लिए सभी शक्ति, अधिकार क्षेत्र और अधिकार हैं। क्षेत्राधिकार की कोई आवश्यकता नहीं थी। अदालत ने कहा कि उसे दिल्ली सरकार की ओर से कोविड-19 प्रबंधन में दखल देने की कोई वजह नहीं दिख रही है।