ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हुई, कांग्रेस ने लगाया सरकार पर आरोप, अदालत भी खामोश | Contempt Supreme Court in Gyanvapi case Congress accuses government | Patrika News h3>
सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई उन्होंने ज्ञानवापी का उदाहरण देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित सर्वे की रिपोर्ट के लीक होने पर तो नाराज़गी जतायी लेकिन उस कथित सर्वे के आधार पर मीडिया द्वारा प्रसारित किए जा रहे सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई। जिससे उसकी मंशा पर संदेह उठना स्वाभाविक है कि कहीं यह कथित जन भावना के निर्माण की कोशिश तो नहीं है जिसके आधार पर बाद में इसे मंदिर घोषित कर दिया जाएगा।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि ऐसा देखा जा रहा है कि अदालतों के एक हिस्से के रवैय्ये से प्रोत्साहित हो कर देश भर के सांप्रदायिक तत्व ऐतिहासिक मुस्लिम इमारतों पर दावेदारी कर माहौल बिगाड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी फैसले से अराजक तत्व प्रोत्साहित होते हैं या शांतिप्रिय लोग यह न्यायाधीशों के चरित्र को समझने के लिए अहम पैमाना होता है।
न्यायपालिका को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अदालतों के खिलाफ़ बढ़ती अवमानना से चिंतित होने के बजाए न्यायपालिका को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है। उन्होंने हाल के 6 उदाहरण दिये जहाँ अदालतों का रवैय्या न्यायसम्मत नहीं कहा जा सकता-
1- जस्टिस लोया की हत्या की जांच की मांग प्रभावशाली ढंग से न्यायिक बिरादरी ने नहीं की। 2- वरिष्ठता में देश में दूसरे नंबर पर रहे त्रिपुरा और राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश रहे अकील कुरेशी को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त न किये जाने पर न्यायपालिका का बड़ा हिस्सा चुप रहा। गौरतलब है कि अमित शाह को जस्टिस कुरेशी ने ही सोहरबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ में दो दिनों के लिए सीबीआई की कस्टडी में दिया था।
3- 8 दिसंबर 2021 को जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द होने से भारत की छवि धूमिल हुई है। सर्वाेच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ़ स्वतः संज्ञान लेते हुए कोई अनुशासनात्मक कार्यवाई नहीं की।
4- संगीत सोम समेत कई भाजपा नेता कह रहे हैं कि 1992 में बाबरी मस्जिद के साथ जो हुआ 2022 ज्ञान ज्ञानवापी के साथ वही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस को अपराध बता चुका है। क्या न्यायपालिका को ऐसे बयानों पर स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए? क्या उसकी चुप्पी उसकी गरिमा के अनुरूप है?
5- भाजपा नेता बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी उपलब्धि बता कर नारा देते हैं कि जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। क्या सर्वोच्च न्यायालय को अपने फैसले को किसी राजनीतिक दल द्वारा अपनी उपलब्धि बताने पर रोक नहीं लगानी चाहिए ?
6- जम्मू कश्मीर को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने वाले आर्टिकल 370 को खत्म कर देने के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 23 याचिकाएं पिछले 3 साल से पड़ी हैं। लेकिन क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों को व्यवस्थागत अनिश्चितताओं से निकालने के लिए ज़रूरी इन याचिकाओं पर फौरी सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट क्यों बचता दिख रहा है।
सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई उन्होंने ज्ञानवापी का उदाहरण देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित सर्वे की रिपोर्ट के लीक होने पर तो नाराज़गी जतायी लेकिन उस कथित सर्वे के आधार पर मीडिया द्वारा प्रसारित किए जा रहे सांप्रदायिक अफवाहों पर कोई रोक नहीं लगाई। जिससे उसकी मंशा पर संदेह उठना स्वाभाविक है कि कहीं यह कथित जन भावना के निर्माण की कोशिश तो नहीं है जिसके आधार पर बाद में इसे मंदिर घोषित कर दिया जाएगा।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि ऐसा देखा जा रहा है कि अदालतों के एक हिस्से के रवैय्ये से प्रोत्साहित हो कर देश भर के सांप्रदायिक तत्व ऐतिहासिक मुस्लिम इमारतों पर दावेदारी कर माहौल बिगाड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी फैसले से अराजक तत्व प्रोत्साहित होते हैं या शांतिप्रिय लोग यह न्यायाधीशों के चरित्र को समझने के लिए अहम पैमाना होता है।
न्यायपालिका को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अदालतों के खिलाफ़ बढ़ती अवमानना से चिंतित होने के बजाए न्यायपालिका को सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है। उन्होंने हाल के 6 उदाहरण दिये जहाँ अदालतों का रवैय्या न्यायसम्मत नहीं कहा जा सकता-
1- जस्टिस लोया की हत्या की जांच की मांग प्रभावशाली ढंग से न्यायिक बिरादरी ने नहीं की। 2- वरिष्ठता में देश में दूसरे नंबर पर रहे त्रिपुरा और राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश रहे अकील कुरेशी को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त न किये जाने पर न्यायपालिका का बड़ा हिस्सा चुप रहा। गौरतलब है कि अमित शाह को जस्टिस कुरेशी ने ही सोहरबुद्दीन फ़र्ज़ी मुठभेड़ में दो दिनों के लिए सीबीआई की कस्टडी में दिया था।
3- 8 दिसंबर 2021 को जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द होने से भारत की छवि धूमिल हुई है। सर्वाेच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ़ स्वतः संज्ञान लेते हुए कोई अनुशासनात्मक कार्यवाई नहीं की।
4- संगीत सोम समेत कई भाजपा नेता कह रहे हैं कि 1992 में बाबरी मस्जिद के साथ जो हुआ 2022 ज्ञान ज्ञानवापी के साथ वही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस को अपराध बता चुका है। क्या न्यायपालिका को ऐसे बयानों पर स्वतः संज्ञान नहीं लेना चाहिए? क्या उसकी चुप्पी उसकी गरिमा के अनुरूप है?
5- भाजपा नेता बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपनी उपलब्धि बता कर नारा देते हैं कि जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे। क्या सर्वोच्च न्यायालय को अपने फैसले को किसी राजनीतिक दल द्वारा अपनी उपलब्धि बताने पर रोक नहीं लगानी चाहिए ?
6- जम्मू कश्मीर को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने वाले आर्टिकल 370 को खत्म कर देने के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 23 याचिकाएं पिछले 3 साल से पड़ी हैं। लेकिन क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों को व्यवस्थागत अनिश्चितताओं से निकालने के लिए ज़रूरी इन याचिकाओं पर फौरी सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट क्यों बचता दिख रहा है।