जानें कहां है पृथ्वी का पहला शिवलिंग:शिवरात्रि पर महापूजा का क्या है महत्व | Worship of Lord Shiva on earth started from Jageshwar in Linga form | Patrika News

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जानें कहां है पृथ्वी का पहला शिवलिंग:शिवरात्रि पर महापूजा का क्या है महत्व | Worship of Lord Shiva on earth started from Jageshwar in Linga form | Patrika News

जानें कहां है पृथ्वी का पहला शिवलिंग:शिवरात्रि पर महापूजा का क्या है महत्व | Worship of Lord Shiva on earth started from Jageshwar in Linga form | News 4 Social

अर्द्धरात्रि में होती है महापूजा

जागेश्वर धाम में हर रोज नित्य प्रात: पूजन, दिन में भोग पूजन और सायंकालीन आरती होती है। शाम आरती के बाद बंद हुए मंदिर के कपाट अगली सुबह ही खुलते हैं। लेकिन साल में केवल महाशिवरात्रि पर इस धाम में महापूजा होती है। महाशिवरात्रि पर सायं आरती के बाद बंद हुए मंदिर के कपाट रात करीब 11:30 बजे दोबारा खोले जाते हैं। उसके बाद भगवान शिव की विधि-पूर्वक महापूजा की जाती है। ये महापूजा रात करीब दो बजे तक चलती है। उसके बाद मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं। महापूजा के दो घंटे बाद दोबारा कपाट खोलकर प्रात:पूजा की जाती है।

सप्तऋषियों ने दिया था भगवान शिव को श्राप सप्तऋषि जागेश्वर के दारुक वन में भगवान शिव की तपस्या में लीन रहते थे। कहा जाता है कि भगवान शिव के अनन्य भक्त सप्तऋषियों ने क्रोध में आकर अपने आराध्य को पहचाने बगैर उन्हें श्राप दे दिया था। उसके बाद से ही जागेश्वर धाम से ही भगवान शिवजी का पिंडी रूप में पूजन शुरू हुआ था।इस धाम के डंडेश्वर में भगवान शिव को श्राप मिला था। डंडेश्वर में भगवान शिव का एक हजार साल से पुराना मंदिर है।

जागेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर विराजमान नंदी और भृंगी IMAGE CREDIT: patrika.com
अष्टम ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजे जाते हैं जागेश्वर महाराज इस धाम में स्थित जागेश्वर मंदिर को देश का आठवां ज्योर्तिलिंग माना जाता है। पुराणों के अनुसार आठवां ज्योर्तिलिंग ‘दारुका वने’ यानी देवदार वन में माना जाता है। यह धाम चारों ओर से घने देवदार बन से घिरा हुआ है। इसी धाम में भगवान शिव का आठवां ज्योर्तिलिंग विराजमान है।

जगदगुरु शंकराचार्य ने कीलित कर दी थी शक्ति जागेश्वर धाम स्थित महामृत्युंजय मंदिर में चमत्कारिक शक्तियां मौजूद हैं। कहा जाता है कि प्राचीन काल में महामृत्युंजय देव के समक्ष मांगी गई हर मनौती तत्काल पूरी हो जाती थी। आठवीं सदी में जगदगुरु शंकराचार्य इस धाम में पहुंचे तो उन्होंने मंदिर में भगवान शिव की अलौकिक शक्तियों को तत्काल जान लिया था। उन्हें मालूम था कि आने वाले समय में घोर कलयुग आएगा तो लोग इस शक्ति का दुरुपयोग करेंगे। इसी को देखते हुए जगदगुरु शंकराचार्य महाराज ने इस शक्ति को कीलित कर दिया था। आज भी संकट में पड़े भक्तजन इस मंदिर में जोर से आवाज लगाकर महादेव से कष्ट दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

निसंतानी महिलाएं करती हैं दीप तपस्या महामृत्युंजय मंदिर में निसंतानी महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के लिए रात भर हाथ में दीपक लेकर भगवान के समक्ष खड़ी रहकर दीप तपस्या करती हैं। स्थानीय भाषा में इसे ‘ठाड़द्यू’ तपस्या कहा जाता है। माना जाता है कि दीप तपस्या सफल होने पर एक साल के भीतर संबंधित तपस्वी महिला की गोद भर जाती है। महाशिवरात्रि पर दीप तपस्या का बड़ा महत्व है। संतान प्राप्ति के अलावा अन्य मनोकामनाओं के लिए भी भक्तजन इस मंदिर में दीप तपस्या करते हैं।

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