जब लालू यादव से हवाई जहाज में मिले यशवंत सिन्हा, कांग्रेस के बजाए बीजेपी में जाने की कहानी

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जब लालू यादव से हवाई जहाज में मिले यशवंत सिन्हा, कांग्रेस के बजाए बीजेपी में जाने की कहानी

पटना/रांची : राष्ट्रपति पद (President Election 2022) के लिए विपक्ष की ओर से उम्मीदवार यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) को 1960 की IAS परीक्षा में 12वां स्थान हासिल हुआ था। अपने प्रशासनिक करियर में काबिल अफसर के तौर पर जाने गए। 1984 में IAS के रूप में अपने पद से इस्तीफा दे दिए। जनता पार्टी से सियासी पारी की शुरुआत की। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और यशवंत सिन्हा दोनों एक-दूसरे को काफी पसंद करते थे। आमतौर पर प्रशासनिक अधिकारी अपने करियर में अवसर तलाशते रहते हैं। विचारधारा बहुत मायने नहीं रखती है। यशवंत सिन्हा भले ही राजनेता बन गए थे लेकिन 24 साल तक वो हार्डकोर ब्यूरोक्रेट्स रह चुके थे। चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी जब खत्म होने के कागार पर पहुंची तो यशवंत सिन्हा नया ठिकाना खोज रहे थे। उनकी काबिलियत को देखकर तब के कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव चाहते थे वो पार्टी जॉइन कर लें। मगर बात बनी नहीं। बीजेपी में आडवाणी से थोड़ी-बहुत जान-पहचान थी। इसी बीच लालू यादव से हवाई जहाज में मुलाकात ने हवा का रूख ही बदल दिया।

कांग्रेस में जाते-जाते रह गए यशवंत सिन्हा
यशवंत सिन्हा को आज भले ही भारतीय जनता पार्टी भाव नहीं देती है मगर वो कभी बीजेपी के धाकड़ नेताओं में शुमार किए जाते थे। उनके भाजपा जॉइन करने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बीजेपी में जाने की पूरी बताई थी। यशवंत सिन्हा ने कहा था कि ‘चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी समाप्ति की तरफ थी। उस समय मेरे पास दो विकल्प थे, एक थी कांग्रेस और दूसरी भारतीय जनता पार्टी। नरसिम्हा राव बहुत चाहते थे कि मैं कांग्रेस में आऊं, उनसे कई बार मुलाकात भी हुई लेकिन मुझे कांग्रेस पार्टी में जाना अच्छा नहीं लगा। एक कॉमन मित्र ने मेरी मुलाकात आडवाणी जी से करवाई लेकिन पार्टी में जाने की कोई बात उनसे नहीं हुई। उसी जमाने में जनता दल के सभी घटकों को एक करने की मुहिम भी चल रही थी।’
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जब लालू ने नहीं दिया यशवंत को प्रणाम का जवाब
इसी इंटरव्यू में यशवंत सिन्हा ने लालू से हवाई जहाज में मुलाकात वाली बात भी बताई थी। उन्होंने कहा कि ‘एक दिन मैं और मेरी पत्नी हवाई जहाज से रांची से दिल्ली आ रहे थे। पटना में विमान में लालू प्रसाद यादव सवार हुए। मैंने उन्हें प्रणाम किया लेकिन उन्होंने प्रणाम का जवाब देना तो दूर मुझे पहचानने तक से इनकार कर दिया। दिल्ली में जब जहाज उतरा तो मेरे बगल में खड़े रहने के बावजूद उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की। मेरी पत्नी ने मुझसे कहा कि लालू ने आपकी बहुत उपेक्षा की है। लालूजी की इस हरकत को देखते हुए मैंने घर पहुंच कर तुरंत आडवाणीजी को फोन कर कहा कि मैं आपसे तुरंत मिलना चाहता हूं। कुछ दिनों बाद आडवाणी ने मुझे भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया और उन्होंने एक प्रेस कान्फ़्रेंस करके एलान किया कि मेरा बीजेपी में जाना पार्टी के लिए दीवाली गिफ्ट है।’
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पटना सीट का साल 1991 का वो मध्यावधि चुनाव
बीजेपी जॉइन करने के बाद यशवंत सिन्हा खुलकर खेलने लगे। उधर, बिहार में लालू यादव का सिक्का जमने लगा था। अब राज्य के मुख्यमंत्री थे। अपने स्टाइल में सियासत को हांक रहे थे। 1991 में पटना लोकसभा का मध्यावधि चुनाव लड़ने यशवंत सिन्हा आए। तब उन्हें हराने के लिए लालू यादव ने पंजाब के इंद्र कुमार गुजराल को मैदान में उतार दिया। लालू यादव नहीं चाहते थे किसी भी सूरत में यशवंत सिन्हा पटना से चुनाव जीतें। कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान लालू यादव ने इंद्र कुमार गुजराल को यादव और गुर्जर बताते थे। ताकि जाति के नाम पर मतदाता खिसक न जाएं। तब लालू यादव ने पटना को दुल्हन की तरह सजा दिया था। कोई गली-नुक्कड़ नहीं था जहां पार्टी के झंडा-बैनर न हो। देर रात तक खुद लालू यादव सभा को संबोधित करते थे। इस चुनाव में किसी की जीत-हार नहीं हुई क्योंकि इलेक्शन कमीशन ने चुनाव को ही रद्द कर दिया। बाद में 1995 में यशवंत सिन्हा बीजेपी की टिकट पर रांची से विधासभा चुनाव जीतकर सदन पहुंचे तो लालू सरकार के खिलाफ तीखा हमला करते थे। करप्शन से लेकर लॉ एंड ऑर्डर तक के मसले उठाते थे। तब बिहार में लालू यादव की तूती बोलती थी।

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