जब ‘भाभी जी…’ के विभूती को लोग समझने लगे थे ‘नल्ला’, आसिफ शेख बोले- फोन तक उठाने बंद कर दिए थे

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जब ‘भाभी जी…’ के विभूती को लोग समझने लगे थे ‘नल्ला’, आसिफ शेख बोले- फोन तक उठाने बंद कर दिए थे

जब ‘भाभी जी…’ के विभूती को लोग समझने लगे थे ‘नल्ला’, आसिफ शेख बोले- फोन तक उठाने बंद कर दिए थे

आसिफ शेख ने एक ही शो में 300 से ज्यादा किरदार निभाकर वर्ल्ड बुक ऑफ रेकॉर्ड में नाम दर्ज करवाया। 21 से 80 साल तक की महिलाओं की 32 से ज्यादा अलग-अलग भूमिकाएं निभाईं। पूरी दुनिया उनके ‘नल्लेपन’ की दीवानी हो गई। कई फैंस तो उन्हें देखकर आंखों में आंसू भर लेते हैं। इतनी लोकप्रियता तो किस्मत से मिलती है पर आसिफ शेख की किस्मत हमेशा बुलंदियों पर नहीं रही। मां की खराब तबीयत की वजह से उन्हें कुछ साल काम तक छोड़ना पड़ा था। ऐसे में लोगों ने असल में उन्हें ‘नल्ला’ समझ उनके फोन तक उठाने बंद कर दिए थे। खैर, उन्होंने फिर से शुरुआत की और पलटकर नहीं देखा। अब वो ओटीटी में कॉमिडी शो या फिल्म करना चाहते हैं। उन्होंने ‘भाबी जी…’ की सफलता, टीवी के स्तर से लेकर डेब्यू फिल्म और सलमान से रिश्ते तक पर खास बात की।

‘टीवी में कॉन्टेंट की आत्मा मिस हो रही’

दूरदर्शन और आज के वक्त के कॉन्टेंट में फर्क है। उस वक्त कॉन्टेंट पर ज्यादा काम होता था। अब उतना टाइम ही कहां है। आजकल टीवी शो में कॉन्टेंट वाली आत्मा मिस हो रही है। अब तेजी से कॉन्टेंट बनता है। पहले एक-एक एपिसोड पर 5-6 दिन लगाए जाते थे। आजकल एपिसोड एक या आधे दिन में तैयार कर दिया जाता है। अब वो समय भी नहीं मिलता क्योंकि टीवी शो सप्ताह में एक या दो दिन से डेलीसोप में बदल गए। ऐसे में क्वॉलिटी कहीं ना कहीं मार तो खाएगी। इस वजह से परफॉर्मेंस भी मार खाने लगती है। ऐक्टर को परफॉर्मेंस, डायरेक्टर को सोचने और राइटर को लिखने के लिए भी वक्त चाहिए। अब जो चलन है, सब उसी के हिसाब से दौड़ रहे। वहीं, टेक्निकली देखें तो टीवी बहुत एडवांस हुआ है।

‘रात को फॉल्स आईलैशेज लगाकर कौन सोता होगा’

बिल्कुल, टीवी को सुधार की जरूरत है। जितना इसे ग्रो करना चाहिए, उतना सास-बहू वाला खराब कॉन्टेंट दिखाया गया। अगर कुछ अलग दिखाने की कोशिश करते तो हमारे दर्शक थोड़ा विकसित होते। वे सास-बहू में अटक गए या नागिन के फेर में फंस गए। ये कितनी पिछड़े जमाने की बातें हैं। इन्हें प्रोग्रेसिव कहां से कहेंगे। आप जो जिंदगी जी रहे हैं, उसको दिखाइए। ये चीजें पहले चलती होंगी। अब ना सास के पास वक्त है और बहू तो जॉब वाली हो गई हैं। छोटी-छोटी बातों पर लड़ने का किसके पास वक्त है। भला, रात को फॉल्स आईलैशेज लगाकर कौन सोता होगा। हमने ऑडियंस को इंटेलिजेंट शो ही नहीं दिखाए। भले वो ना चलें, लेकिन कोशिश तो करनी चाहिए थी। अब हर जगह इंटरनेट है। लोग ग्लोबल कॉन्टेंट देख रहे हैं। टीवी को अब उन सबसे बराबरी करनी है।

‘समझना चाहिए कि अच्छा नहीं बल्कि बुरा वक्त ही सिखाता है’

2011 से 2014 तक मेरा बहुत कठिन वक्त चला। उस दौरान मेरी मां को हार्ट और किडनी की समस्या थी। उनका अस्पताल आना-जाना लगा रहता था। मैंने उनकी देखभाल के लिए काम तक छोड़ दिया था। उन चार साल में बहुत कुछ सीखा। धीरे-धीरे चीजें साफ होती गईं कि जिंदगी की असलियत क्या है। उस वक्त ने अच्छे-बुरे की तमीज़ दी। कौन अपना है, कौन पराया है, ये सिखाया। कौन आपके साथ रहता है और कौन फोन उठाता है, ये पता चल गया। लोग मेरा फोन नहीं उठाते थे। उन्हें लगता था कि काम ना होने की वजह से उनसे पैसे ना मांग लूं। उन चार साल में सारी चीजें पता चल गईं। मेरे दिमाग का बड़ा हिस्सा सिर्फ उनकी चिंता में गुजरता था। मां का जब इंतकाल हुआ तो मेरा दिमाग एकदम से खाली हो गया। मुझे उससे निकलने में बहुत वक्त लगा। वैसे, वक्त सबसे ताकतवर है और वो जो सिखाए, उसे सीख लेना चाहिए। वैसे भी अच्छा नहीं बल्कि बुरा वक्त ही सिखाता है।

‘अब तमन्ना ओटीटी के लिए कॉमिडी शो या फिल्म करने की है’

मैंने करीब 100 फिल्में की हैं। इतने सारे रोल किए। अब मेरी ख्वाहिश ओटीटी पर अच्छा शो या फिल्म करने की है। वैसे भी, ओटीटी पर अच्छा कॉमिडी शो कहां देखने को मिलता है। वहां कॉमिडी कॉन्टेंट है ही नहीं। मेरी पिछले 8 साल में जो ग्रोथ हुई है, जो मैं सीखा हूं, मुझे उसे दिखाने के लिए एक मंच चाहिए। अब वो समय आ गया है कि मैंने जो कुछ सीखा है, उसे ज्यादा बड़े स्तर पर पेश करूं। मगर ओटीटी में एक समस्या है। वहां टीवी के कलाकारों को कम तवज्जो दी जाती है। उनके अपने ही अलग लोग हैं। ओटीटी में टीवी ऐक्टर्स को एंट्री करने में थोड़ा वक्त लगेगा। वहां जाने के लिए हमें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। ओटीटी में काम को वक्त दिया जाता है। महीने-महीने भर की वर्कशॉप्स होती हैं। उनके पास एडवांटेज तो है। हमारे पास क्या है। आधे घंटे पहले सीन आता और कहा जाता, ‘चलिए परफॉर्म करके दिखाइए’। एक कलाकार के तौर पर हमारे पास सोचने समझने का मौका ही नहीं होता। हमें उनके बराबर वक्त नहीं मिलता, लेकिन तब भी हम औसत परफॉर्म कर ही लेते हैं।

‘किमी काटकर पहले मुझसे मिलीं, फिर फिल्म के लिए तैयार हुईं’

मेरी डेब्यू फिल्म ‘रामा ओ रामा’ थी। ‘यारा दिलदारा’ मेरी दूसरी बड़ी म्यूजिकल फिल्म थी। इसका गाना ‘बिन तेरे सनम…’ बहुत हिट हुआ। आज भी इसके रीमिक्स आते हैं और कहीं ना कहीं सुनने को मिल जाता है। उस वक्त सब नया-नया था। हमने इसकी शेरा घाट पर शूटिंग की थी, जो वैली थी। शूटिंग के लिए पहाड़ों पर जाते थे। वहां लाइट वगैरह कुछ नहीं होता था। मैं नया-नया था इसलिए होटल वगैरह नहीं मिला था। हम सबका खाना पहाड़ों से आता था। वो रास्ते बहुत कठिन थे। कभी-कभी तो सामने नाश्ता आते हुए दिखता था और आते-आते पतीला गिरता हुआ दिखाई दे जाता था। फिर तो अंडा भुर्जी एक तरफ, पराठे एक तरफ। वो यादगार वक्त था। मेरी पहली फिल्म रामा ओ रामा में किमी काटकर थीं। पहले इसे गोविंदा के साथ करने का प्लान था लेकिन उनके पास वक्त नहीं था, तब मुझ जैसे नए ऐक्टर को मौका दिया गया। किमी काटकर फिल्म करने से पहले मुझसे मिलीं, हमने बात की, तब जाकर वह फिल्म करने के लिए राजी हुईं।

‘सलमान और मेरी दोस्ती 30 साल पुरानी है’

सलमान खान और मेरी दोस्ती 30 साल पुरानी है। मेरी और उनकी पहली फिल्म साथ-साथ ही आ रही थीं। वह मुझे अपने फैमिली फ्रेंड की तरह मानते हैं। पहले जब साथ में काम करते थे तो साथ में खाते, घर जाते, वर्कआउट वगैरह सबकुछ साथ ही होता था। मेरी नज़र में वह बहुत अच्छे इंसान हैं। भले डिफेंस मैकेनिज्म में उन्हें कोई कुछ भी बोले लेकिन मैंने उन्हें करीब से जाना है। अगर कोई जरूरतमंद आता है तो वह कहते नहीं बस चुपके से उसकी मदद कर देते हैं। उनकी आत्मा साफ है। मुझे जब उनके साथ काम करने का मौका मिलता है तो उसे छोड़ता नहीं। ‘भाबी जी…’ के साथ मैंने उनकी दो फिल्में कीं। पहली भारत और दूसरी ‘किसी का भाई, किसी की जान’। सलमान भाई पहले ही कह देते हैं कि आकर फिल्म करो क्योंकि तुम्हारे अलावा, वो किरदार और कोई नहीं करेगा।

‘वो बुज़ुर्ग महिला मेरा हाथ पकड़कर रोने लगीं’

आसिफ शेख बताते हैं कि कोई टीवी शो तब बड़ा होता है, जब लोग उसे प्यार करते हैं। उसे देखने के लिए बेताब रहते हैं। कई दर्शक मेरे पास आकर रोने भी लगे हैं। मुझे किसी का फोन आया कि एक बुजुर्ग हैं, जो बेड पर हैं और मैं उनका फेवरिट ऐक्टर हूं। वो मुझसे मिलना चाहती हैं। मैं उनसे मिलने गया। मानेंगे नहीं, वह मेरा हाथ पकड़कर रोने लगीं। वह बताने लगीं कि उनका पूरा दिन मेरे शो ‘भाबी जी…’ के इंतजार में गुजरता है। इसी तरह दिल्ली से एक बुजुर्ग आंटी का फोन आया, जिन्होंने बताया, ‘मैं और मेरे पति बीमार हैं और दोनों बेड पर हैं। हमारे बच्चे विदेश में हैं, जिसकी वजह से हम अकेले रहते हैं। हमारी जिंदगी में खुशी का पल तब आता है, जब हम ‘भाबी जी…’ देखते हैं। हम रात में आपका शो देखकर ही सोते हैं।’ उनका नाम मंजू आंटी था। मैं काफी वक्त तक उनके टच में रहा। इसी तरह लंदन से मेरे दोस्त की सिस्टर आई थी, जो अपनी 13-14 साल की बेटी को भी लाई थी। वह बताने लगीं, ‘मेरी बेटी आपकी दीवानी है। एक वक्त था, जब बेटी और उसकी नानी एक तय समय पर टीवी के सामने चिपक जाते थे। मैंने चेक किया कि आखिर ये क्या देखते हैं। मैंने देखा तो मैं भी देखती रह गई। इस तरह पूरा परिवार रात में इस शो को देखने लगा।’ मैंने और भी बड़े-बड़े शो देखे हैं, लेकिन जो जुड़ाव लोगों का हमारे शो से है, वैसा कही नहीं देखा।