चाय या कॉफी पीते हैं तो छोड़ दीजिए ये आदत, कैंसर से होगा बचाव : शोध

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नई दिल्ली :  व्यस्तता के बीच अगर दस मिनट सुकून से बैठ कर चुस्की लेते हुए चाय पीने को मिल जाए तो थकान दूर होने के साथ मूड भी फ्रेश हो जाता है. लेकिन काम के दबाव और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में अधिकतर लोग अपनी कॉफी, चाय या अन्य पेय पदार्थ को कागज के कप यानी पेपर कप में पीने के आदी हो चुके हैं. लेकिन अब ये आदत बदलने का वक्त आ चुका है. क्योंकि खतरे की घंटी बज चुकी है. इसलिए हम सभी को अभी और इसी वक्त से पेपर के कप में चाय और कॉफी पीना बंद करने का प्रण लेना होगा. 

जिंदगी में आसानी लेकिन खतरा भी
सफर के दौरान तो हर किसी के सामने पेपर और प्लास्टिक के कप और प्लेट्स में खाना या चाय पीने की मजबूरी होती है. लेकिन एक वैज्ञानिक शोध में खुलासा हुआ है कि ऐसे कप हमारे स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं.

कैंसर से होगा बचाव
हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, जब हम किसी कागज या प्लास्टिक के कप में गर्म चाय या कॉफी डालते हैं, तो कप की अंदर की सतह पर मौजूद माइक्रो प्लास्टिक यानी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण हमारे पेय पदार्थ के साथ घुल जाते हैं, जिससे वो चाय या कॉफी प्रदूषित और जहरीली हो जाती है जो किसी के भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकती है.

नुकसानदेह ‘Take away’  कल्चर
दरअसल टेकअवे कप एक आंतरिक परत यानी तह  के साथ आते हैं जो उससे पानी का रिसाव नहीं होने देते. यह परत इनके रीसायकल होने में भी बाधा बन जाती है. 

इस तरह हुआ प्रयोग
शोध के दौरान, वैज्ञानिकों ने 100 मिलीलीटर के कुछ पेपर कप लिए और उनमें गर्म पानी डालकर 15 मिनट के लिए छोड़ दिया. ये एक सामान्य बात है कि लोग अपने गर्म पेय का सेवन धीरे धीरे करते हैं. शोधकर्ताओं ने एक शक्तिशाली माइक्रोस्कोप के जरिए कप में मौजूद गर्म पानी की जांच की और हर कप में औसतन 25,000 माइक्रोप्लास्टिक के कण देखे. इसी दौरान उन्हें पानी में जस्ता, सीसा और क्रोमियम जैसी धातुएं भी मिलीं, जो शायद कप के अंदरूनी परत से निकली थीं.

IIT खड़गपुर का शोध
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी खड़गपुर से संबद्ध और शोध की प्रमुख लेखिका डॉ. सुधा गोयल के मुताबिक एक औसत व्यक्ति एक पेपर कप में, तीन नियमित कप चाय या कॉफी पीता है. इस दौरान वो 75,000 छोटे और अदृश्य माइक्रोप्लास्टिक कणों को निगल सकता है.

एक माइक्रोन में जानलेवा सामान
गर्म पानी में पाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक लगभग एक माइक्रोन के आकार के थे, जिनकी चौड़ाई मनुष्यों के बाल के आकार का लगभग 25 गुना है. डॉ गोयल के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक्स, अन्य आयनों, जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम के संवहक के तौर पर काम करता है. और जब लगातार इसका सेवन होगा तो मानव सेहत को गंभीर खतरा हो सकता है.

डॉ गोयल के अध्ययन को खतरनाक सामग्रियों के जर्नल में प्रकाशित किया गया है.





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