गड्ढों और धूल भरी सडक़ों पर नहीं चलती सफाई की हाईटेक व्यवस्था

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गड्ढों और धूल भरी सडक़ों पर नहीं चलती सफाई की हाईटेक व्यवस्था

गड्ढों और धूल भरी सडक़ों पर नहीं चलती सफाई की हाईटेक व्यवस्था


इसकी धूल को खींचने वाली सक्शन मशीनें सक्सेस नहीं हुई। इतना ही नहीं धूल को उडऩे से रोकने के लिए पानी भी नहीं डाला जा रहा है। चार हैवी वाहनों पर लोड यह मशीनें रहवासी क्षेत्र और बाजारों में कभी नहीं चलाई जाती है। सिर्फ हाइवे की प्लेन सडक़ों पर ही किनारे की धूल उठाई जाती है।
लोगों का कहना है कि जर्जर, गड्ढों व सिटी के अंदर की सडक़ों पर भरी धूल आज भी पुराने व्यवस्था पर ही चल रही है। हाईटैक मशीनें यहां सफाई के लिए आती ही नहीं है। फिर इन पर करोड़ों खर्च करने की क्या जरुरत है।

गौरतलब है कि नगर निगम ने तीन स्वीपिंग मशीनें खरीदी हुई है और एक उसके पास पहले से है। इसके हिसाब से चार मशीनों से शहर के मुख्य मार्गो में रात में सफाई होती है। इसका मेंटेनेंस पहले ठेका कंपनी कर रही थी। अब नगर निगम ही इसका संचालन कर रहा है। पड़ताल में सामने आया कि धूल अधिक उडऩे के भय से करोड़ों की लागत की मशीनें अधिक धूल वाले क्षेत्र में नहीं चलाई जाती है। मुख्य मार्ग एयरपोर्ट रोड, होशंगबाद रोड, लिंक रोड, वीआईपी रोड आदि ही नजर आती है। अन्य मार्गो पर यह जाती ही नहीं है।

जर्जर व गड्ढों भरी सडक़ों की सफाई आज भी पुराने धर्रे पर
विकसित हो रही सडक़े और गड्ढों भरी सडक़ों पर यह मशीनें जा नहीं है। अधिकांश साफ-सफाई में नगर निगम के कंडम वाहन ही काम कर रहे है। उनके भी खराब हो जाने के बाद कई दिनों तक ड्राइवर कंडेक्टर हाथ-पर हाथ रखे बैठे रहते है। ऐसे में करोड़ों की लागत से खरीदी गई सडक़ की सफाई के लिए ऐसी जगह पर काम ही नहीं आ रही है।

गलियों में गाडिय़ां भी कचरा लेने नहीं पहुंच रही
पुराने शहर बाजार व रहवासी क्षेत्र की अधिकांश सडक़ो पर कोई कचरा गाड़ी भी नहीं पहुंच पाती है। मैन्युअल कचरा उठाने की व्यवस्था यहां चल रही है। साइकिल से कचरा गलियों से लेने की व्यवस्था भी ठप्प पढ़ी है।

धूल के कारण बंद हुई दिन की व्यवस्था
बीच में कुछ दिन स्वीपिंग मशीनें दिन में चलने लगी थी। बताया गया कि इन मशीनों से अधिक धूल उडऩे की समस्या के चलते इन्हे दिन में संचालन बंद करवा दिया गया था। जबकि इतनी महंगी मशीनों में सक्शन सिस्टम को बेहतर नहीं किया गया। रात में सिर्फ डिवाईडर व फुटपाथ के किनारों की धूल ही यह मशीनें उठाती है। उसमें भी जहां अधिक धूल होती है, वहां धूल के बंवडर बनने से लोगों को दिक्कत होती है।
इनका कहना
हाईटैक व्यवस्था पर गाडिय़ों की खरीदी से बेहतर है कि मैन्युअल व्यवस्था ही दुरुस्त और छोटे वाहनों पर शुरू हो जाएं तो पूरा शहर स्वच्छ नजर आएं। रहवासी क्षेत्र व बाजारों ने नजर नहीं आती स्वीपिंग मशीने। हाइवे पर इतना कचरा नहीं रहता है।
प्रकाश मालवीय, रहवासी, बरखेड़ी
मशीनें काफी बड़ी व चौड़ी होने के कारण सिटी की सकरी सडक़ों पर इन्हे चलाना मुश्किल होता है। धूल मशीन में लगे एयर प्रेशर से उड़ाने के साथ ही उसे मशीन से खींचा जाता है। इसके अलावा पानी की छिडक़ाव भी साथ होता है। धूल उडऩे की दिक्कतें तो मशीन से नहीं होना चाहिए। अगर कहीं कोई गड़बड़ी हो रही है तो मैं चेक करवा लेता हूं।
विनित तिवारी, अपर आयुक्त, नगर निगम

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