क्या अब देश से बड़ी हो चुकी है फ्रैंचाइजी क्रिकेट, जेसन रॉय विवाद से समझें बदलते खेल का ‘धनतंत्र’

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क्या अब देश से बड़ी हो चुकी है फ्रैंचाइजी क्रिकेट, जेसन रॉय विवाद से समझें बदलते खेल का ‘धनतंत्र’


क्या अब देश से बड़ी हो चुकी है फ्रैंचाइजी क्रिकेट, जेसन रॉय विवाद से समझें बदलते खेल का ‘धनतंत्र’

जेसन रॉय इंग्लैंड के लिए नए दौर के क्रांतिकारी क्रिकेटर बन चुके हैं। 10 साल की उम्र में ही अपने देश साउथ अफ्रीका को छोड़कर इंग्लैंड को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले रॉय को करियर के शुरुआत से ही केविन पीटरसनकी तुलना से गुजरना पड़ा। पीटरसन भी साउथ अफ्रीका में जन्मे और पले-बढ़े, लेकिन इंटरनेशनल उन्होंने इंग्लैंड के लिए खेली। पीटरसन अपने दौर में गैर-इंग्लिश सोच रखने वाले खिलाड़ी माने जाते थे जिसके चलते उन्हें कई बार बगावती खिलाड़ी की भी संज्ञा मिली, खासकर तब उन्होंने सफेद गेंद की क्रिकेट में इंग्लैंड को आईपीएल से सीखलेने की नसीहत दी थी।

अब पूरा विवाद समझते हैं

अब डेढ़ दशक बाद आईपीएल इतना कामयाब हो चुका है कि हर किसी ने इसका लोहा मान लिया है और कोई भी इस टूर्नामेंट के साथ भिड़ना नहीं चाहता है, लेकिन रॉय ने जो कदम उठाया है उससे कई लोंगों को हैरानी हो सकती है। इस साल जुलाई महीने में अमेरिका में होने वाली मेजर लीग क्रिकेट के लिए रॉय ने एलए कोलकाता नाइटराइडर्स का करार स्वीकार कर लिया है, इसके चलते अब दो साल के लिए रॉय को लगभग £300,000 पाउंड यानि तीन करोड़ से भी ज्यादा का करार मिला है, इसके लिए रॉय ने वही किया जो शायद आप या हम भी करते। रॉय का मौजूदा करार इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड से करीब 60000 पाउंड यानि की करीब 60 लाख रुपये का ही था।

MLC में खेलना यानी ECB से बगावत?

पिछले कुछ महीनों से दबी जुबान में इस बात की चर्चा चल रही थी कि कुछ इंग्लिश खिलाड़ियों के सामने ऐसे ऑफर गए हैं, जिसके चलते उन्हें असमंजस के दौर से गुजरना पड़ रहा है क्योंकि इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने साफ कर दिया था कि अगर रॉय या फिर कोई और खिलाड़ी अमेरिकी लीग के करार पर साइन करता है तो उसका इंग्लैंड का करार टूट जाएगा। इसका एक मतलब ये भी था कि शायद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में रॉय को अपने देश के लिए दोबारा खेलने का मौका ना मिले। रॉय के एक बहुत ही बड़ा फैसला था क्योंकि वो 2019 में इंग्लैंड को वर्ल्ड कप जीताने वाले खिलाड़ियों में उनका योगदान भी अहम रहा था और इस साल भारत में जब वर्ल्ड कप होगा तब भी उनकी भूमिका बेहद अहम हो सकती है।

इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड को आ गई अक्ल?
बहरहाल, इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड भी थोड़ा यथार्थवादी हो गया है। दुनिया के बाकि क्रिकेट बोर्ड, खास तौर पर वेस्टइंडीज. साउथ अफ्रीका,श्रीलंका जैसे मुल्कों के खिलाड़ियों को देश की बजाय टी-20 लीग को अहमियत देने के फैसले से पहले इंग्लैंड हैरान होता था, लेकिन अब उन्हें एहसास हो चुका है कि खिलाड़ियों को जिस प्रकार का बड़ा करार लीग में मिलता है, अब राष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड के लिए उसको बराबर करना संभव नहीं है इसलिए, रॉय को इंग्लैंड अमेरिका में खेलने पर आपत्ति नहीं जताए और मुमकिन है कि उन्हें 2023 वर्ल्ड कप टीम में भी स्थान दे।

इंग्लिश टीम में रॉय की कितनी वैल्यू?

इस साल वन-डे क्रिकेट में जेसन रॉय ने दो शतक जमाए हैं। वैसे जल्द ही 33 साल के होने वाले रॉय को पिछले साल टी-20 वर्ल्ड कप टीम में जगह नहीं मिली थी और इस बार वन-डे वर्ल्ड कप के लिए भी उनका स्थान एकदम से पक्का नहीं है, लेकिन, इंग्लैंड को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर रॉय की तर्ज पर जोस बटलर ने भी राजस्थान रॉयल्स के साथ पूरे साल चलने वाला करार कर लिया तब क्या होगा। इस बात के कयास लगाए जा रहें है कि मुंबई इंडियंस तेज गेंदबाज जोफ्रा आर्चर को भी पूरी तरह से अपने करार के भीतर रखना चाहती है, जिसके चलते वो दुनिया के अलग -अलग टी-20 टूर्नामेंट में मुंबई इंडियंस के लिए ही खेलें। कोचिंग के तौर पर तमाम फ्रैंचाइजी ने ये पहल पहले से ही शुरु कर दी थी और अब धीरे-धीरे खिलाड़ियों का नंबर भी आ रहा है।

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सब पैसों की माया है

इंग्लैंड के लिए समस्या ये है कि फिलहाल वो अपने खिलाड़ियों को टेस्ट मैच के लिए £12,800 पाउंड यानि कि करीब 13 लाख रुपये और वन-डे केलिए £4,500 पाउंड यानि कि करीब 4.5 लाख रुपये देते हैं। अगर वो मैच फीस को दोगुना भी कर देते हैं, जिसकी प्रबल संभावना है, तब भी ये करार अमेरिकी लीग जैसे करार के सामने कहां ठहर पाता है। आईपीएल फाइनल के दौरान इंग्लैंड बोर्ड के CEO Richard Gould अहमदाबाद में होंगे और मुमकिन है कि वो इस बात की चर्चा भी जय शाह से करें कि आखिर ऐसी स्थिति से निपटने के लिए करें तो क्या करें।

क्या भारत में भी ऐसा संभव?

बीसीसीआई और भारतीय खिलाड़ियों की तुलना किसी दूसरे क्रिकेट बोर्ड से हो ही नहीं सकती है। दूसरे देशों में कई स्टार खिलाड़ी अपने बोर्ड से बड़ा हो सकता है, लेकिन बीसीसीआई की रणनीति और क्रिकेट की संरचना ऐसी है कि चाहकर भी बड़ा से बड़ा खिलाड़ी रॉय की तरह बगावती तेवर दिखा नहीं सकता है। पिछले एक दशक से ज्यादा समय तक दुनिया भर की तमाम लीग चाहती हैं कि भारतीय खिलाड़ी भी उनका हिस्सा हों, लेकिन नियमित भारतीय खिलाड़ियों को तो छोड़ दें, टीम इंडिया के लिए नियमित रूप से नहीं खेलने वाले या फिर हाल ही में रिटायर्ड हुए खिलाड़ियों के लिए भी दूसरी टी-20 लीग में खेलना इतना सहज फैसला नहीं है। कुल मिलाकर देखा जाए पूरी दुनिया की क्रिकेट में रॉय के क्रांतिकारी कदम से हलचल मचेगी, लेकिन भारतीय क्रिकेट पर इसका तनिक भी असर नहीं पड़ेगा।

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