किरोड़ीमल कॉलेज हॉस्टल का कमरा नंबर-66, दीवार पर टंगी बिग बी की तस्वीर… डीयू का इतिहास

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किरोड़ीमल कॉलेज हॉस्टल का कमरा नंबर-66, दीवार पर टंगी बिग बी की तस्वीर… डीयू का इतिहास

विवेक शुक्ला, नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी के हॉस्टलों के कुछ कमरे अपने आप में खास हो गए हैं। ये कमरे दिल्ली यूनिवर्सिटी के अलग-अलग कॉलेजों के हॉस्टलों में हैं। इनमें कभी रहे हैं वे नौजवान जिन्होंने आगे चलकर अपने हिस्से के आसमान को छुआ।

किरोड़ीमल के हॉस्टल का कमरा नंबर-66
पहले बात किरोड़ीमल कॉलेज हॉस्टल के कमरा नंबर-66 की। यह कमरा इसलिए विशेष बन गया है क्योंकि इसकी दिवार पर लगा चित्र उस शख्स का है जिसे बॉलीवुड का शहंशाह भी कहा जाता है। हम बात कर रहे हैं अमिताभ बच्चन की। अमिताभ बच्चन ने 1962 में किरोड़ीमल कॉलेज से बीएससी की थी। वे कॉलेज हॉस्टल के इसी कमरे में रहे। शेरवुड स्कूल के बाद उन्होंने इस कॉलेज में दाखिला लिया। केएम कॉलेज के स्टूडेंट रहे डॉ. प्रभांशु ओझा ने बताया कि जिस कमरे में अमिताभ बच्चन रहे वहां पर आजकल हिमाचल प्रदेश का एक युवक रहता है। वह क्रिकेटर है। उस कमरे में रहने का क्रेज उन सब में रहा जो केएम कॉलेज हॉस्टल में कभी ना कभी रहे। डॉ. ओझा अब हंसराज कॉलेज में हिन्दी पढ़ाते हैं। कहते हैं कि केएम कॉलेज में जब अमिताभ बच्चन पढ़ रहे थे तब उन्हें थिएटर से प्रो. फ्रेंक ठाकुर दास ने जोड़ा था। वे केएम कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने के अलावा थिएटर की गतिविधियों से जुड़े हुए थे। उनसे ही अमिताभ बच्चन ने एक्टिंग का कायदे से पहला अध्याय सीखा था। फ्रेंक ठाकुर दास से जो कुछ अमिताभ बच्चन सीखते थे उसकी प्रैक्टिस अपने हॉस्टल रूम में ही करते थे। फ्रेंक ठाकुर दास पंजाबी क्रिश्चन थे। उन्होंने ही सतीश कौशिक, कुलभूषण खरबंदा, शक्ति कपूर, दिनेश ठाकुर, कबीर खान वगैरह को भी अभिनय, निर्देशन, मंच सज्जा आदि की जानकारी दी थी। उनके नाम पर ही रखा गया यहां के सभागार का नाम।

कौन-कौन आता था रामजस के हॉस्टल में
केएम कॉलेज से कोई दूर तो नहीं है रामजस कॉलेज। इधर के हॉस्टल का कमरा नंबर-46 का भी अपना इतिहास है। ये 1968 में राजकुमार जैन को मिला जब उन्होंने यहां पर दाखिला लिया। उसके बाद वे इसमें 1983 तक रहे। पहले कॉलेज के छात्र के रूप में और फिर रामजस कॉलेज के अध्यापक के रूप में। वे अध्यापक बनने के बाद भी यहां ही रहते रहे। तब सभी राजनीतिक दलों विशेषकर समाजवादी विचारधारा के युवा इस कमरे में आते थे। ये कभी बंद नहीं होता था। अगर कभी बंद होता था तो उसकी चाबी उसके दरवाजे की चौखट पर होती थी। कोई भी मित्र जब हॉस्टल में डॉ. राजकुमार जैन से मिलने आते तो उन्हें पता होता था कि अगर वह वहां नहीं हैं, तो चाबी तो होगी और कमरा खोल कर बैठ जाते और अखबार इत्यादि पढ़ते रहते। कई लोग तो आकर अपना अध्ययन भी इसी कमरे में करते थे। डॉ. राजकुमार जैन यहां पर रहते हुए ही चांदनी चौक से विधायक भी बन गए थे। ये 1977 की बात है।

दिल्ली के हॉस्टल्स का इतिहास
दिल्ली में समाजवादी युवजन सभा के शिखर नेता डॉ. राजकुमार जैन से रामजस कॉलेज हॉस्टल के कमरा नंबर-46 में समाजवादी आंदोलन से जुड़े विजय प्रताप, नानक चंद, ललित गौतम, रमेश गुप्ता, रविन्द्र मनचंदा गोपी (प्रधान मंत्री चन्द्र शेखर के ओएसडी), सुधीर गोयल (उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री), डॉ. हरीश खन्ना, जसबीर सिंह, तेजेंदर सिंह, थान सिंह जोश, श्याम गम्भीर वगैरह मिलने-जुलने के लिए आते थे। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र नेता चंचल, मार्कंडेय सिंह, मेरठ के सत्यपाल मलिक (वर्तमान में गवर्नर ), जनार्दन द्विवेदी (वर्तमान में कांग्रेस के नेता), डॉ. आनंद कुमार (पूर्व अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ), सुधींद्र भदौरिया (नेता बहुजन समाज पार्टी) भी कमरा नंबर-46 में आकर राजनीतिक रणनीतियां बनाया करते थे। डी.पी त्रिपाठी (राज्य सभा के पूर्व सदस्य) तथा दिग्विजय सिंह (समाजवादी जनता पार्टी, चंद्रशेखर सरकार के मंत्री) भी कमरा नंबर-46 में पहुंचते थे। डॉ. जैन 1983 से 2011 तक कॉलेज के स्टाफ फ्लैट में रहे।

डीयू में कौन से कमरे जनरल जिया के
पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया उल हक 1981 में अपने सेंट स्टीफंस कॉलेज के मुखर्जी रेजीडेंस के कमरों में आए थे। वे दो-तीन कमरों में रहे थे। वे तब राजधानी में निर्गुट सम्मेलन में भाग लेने आए थे। तब वे कुछ समय चुराकर अपने कॉलेज आ गए थे। सेंट स्टीफंस कॉलेज परिसर में आते ही जिया भावुक हो गए थे। जिया उल हक ने कॉलेज में अपने हॉस्टल के कमरे को देखा था। उन्हें सेंट स्टीफंस कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रो.मोहम्मद अमीन उनके हॉस्टल के कमरों में लेकर गए थे। जिया प्रिंसिपल रूम भी गए थे। उन्होंने अपने कुछ पुराने अध्यापकों के बारे में पूछा। वे कुछ पलों तक कॉलेज कैंटीन में नींबू पानी बेचने वाले वाले सुखिया से मिले। वे भी सुखिया के नींबू पानी के मुरीद थे। सुखिया को एक लिफाफा भी दिया था। कहते हैं कि उन्होंने उसे उधार की रकम चुकाई थी। सेंट स्टीफंस कॉलेज में हॉस्टल को रेजीडेंस कहा जाता है। जिया उल हक सेंट स्टीफंस कॉलेज में 1941 से 1945 तक पढ़े थे।

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