काबुल एयरपोर्ट पर हमला करने वाला ISIS-K तालिबान को अपना दुश्मन क्यों मानता है?

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काबुल एयरपोर्ट पर हमला करने वाला ISIS-K तालिबान को अपना दुश्मन क्यों मानता है?

अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने को लेकर डिफेंस और टेररिज्म एनालिस्ट्स ने जो बाइडेन प्रशासन को चेतावनी दी थी। कहा था कि अमेरिका के निकलने के बाद इस्लामिक स्टेट से जुड़े आतंकी अफगानिस्तान का बुरा हाल करने की कोशिश करेंगे। 26 अगस्त को काबुल में हुए हमले ने इस बात को सच साबित कर दिया। इस धमाके में अब तक 103 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 200 लोग घायल हैं। इस आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट की अफगानिस्तान और पाकिस्तान शाखा आईएसआईएस-खोरासन (ISIS-K) ने ली है।

इस हमले के बाद एक्सपर्ट्स बता रहे हैं कि कट्टर तालिबान का अलकायदा और ISIS-K जैसे आतंकी संगठनों से रार और बढ़ सकता है। इन ग्रुप्स के बीच पीढ़ीगत और सैद्धांतिक विभाजन है। हाल के सालों में आतंकियों के बीच इस्लामिक स्टेट बेहद लोकप्रिय है क्योंकि यह आतंकी संगठन इराक़ और सीरिया में कुछ दिनों के चरमपंथी जागीर बनाने में सफल रहा है।

तालिबान को कमजोर करेगा ISIS-K?

अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने के बाद से ISIS-K अपने स्थानीय दुश्मन तालिबान को कमजोर करने पर फोकस कर सकता है। वॉशिंगटन पोस्ट से बात करते हुए अमेरिकी मिलिट्री अकादमी में सहायक प्रोफ़ेसर अमीरा जादून बताती हैं कि ISIS-K का मुख्य लक्ष्य अभी अफगानिस्तान में राजनीतिक तौर पर प्रासंगिक रहने का है। इनका काम देश को स्थिर करने की कोशिशों को नाकाम करना और तालिबान की विश्वसनीयता को कम करना है।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने काबुल हवाई के नज़दीक हमले की चेतावनी दी थी और लोगों से हवाई अड्डे से दूर रहने को कहा था। इस खुफिया जानकारी होने के बाद भी ISIS-K काबुल हवाई अड्डे पर हमला करने में सफल रहा है।

तालिबान था काबुल हमले का टारगेट?

वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि काबुल पर तालिबान के कब्जे से पहले ही अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी अफगानिस्तान में ISIS-K के बढ़ते प्रसार को लेकर चिंतित थे। 17 अगस्त की डिफेंस डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट बताती है कि ISIS-K ने अप्रैल से जून के दौरान राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा में बढ़ोतरी का फायदा उठाया है। एक अमेरिकी अधिकारी ने इस हमले को लेकर कहा है कि अमेरिकी सैनिक और तालिबान दोनों इस हमले के टारगेट थे। बता दें कि इस हमले में आम लोगों के साथ ही अमेरिकी सैनिक और तालिबान के भी कई लड़ाके भी मारे गए हैं।

यूनाइटेड नेशंस का अनुमान है कि अफगानिस्तान के कोनार और नंगहर प्रांतो में1500-2000 ISIS-K लड़ाकों का कोर ग्रुप है। इस ग्रुप से जुड़े लोग पूरे अफगानिस्तान में फैले हुए हैं।

तालिबान दो मोर्चे पर कैसे लड़ेगा?

काबुल हमले को लेकर एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस हमले ने तालिबान को कमजोर साबित किया है। इस तरह के और हमले तालिबान को कमजोर करते जाएंगे। ISIS-K को यह अच्छे से पता है कि तालिबान दो मोर्चे पर युद्ध लड़ने की स्थिति में नहीं है। ISIS-K तालिबान और अमेरिका के बीच किसी भी बातचीत को खत्म करने की कोशिश में है ताकि अपना असर बढ़ा सके।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि तालिबान, ISIS-K के लड़ाको को अपने ग्रुप में फिर से शामिल करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहा है। यह तालिबान के लिए मुश्किल हो रहा है। ऐसे में आने वाले वक्त में तालिबान और ISIS-K लंबे युद्ध में शामिल हो सकते हैं।

बता दें कि 2021 के जनवरी और फरवरी महीने में 47 हमलों की जिम्मेदारी ली थी। 2017 में इस ग्रुप में 100 और 2018 में 84 हमले की जिम्मेदारी ली थी। ऐसे में यह साफ है कि ISIS-K अफगानिस्तान में अपना नेटवर्क बढ़ा रहा है। अब अमेरिका के जाने के बाद ISIS-K अफगानिस्तान में हमले कर तालिबान को चुनौती देता रहेगा।



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