कांग्रेस के घमासान पर मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ साइलेंट क्यों? कहीं जादूगर ने तो नहीं किया पूरा खेल!

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कांग्रेस के घमासान पर मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ साइलेंट क्यों? कहीं जादूगर ने तो नहीं किया पूरा खेल!

कांग्रेस के घमासान पर मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ साइलेंट क्यों? कहीं जादूगर ने तो नहीं किया पूरा खेल!

जयपुर: राजस्थान कांग्रेस में पिछले तीन दिन से घमासान मचा हुआ। कांग्रेस की कलह जयपुर से लेकर दिल्ली के 10 जनपथ तक पहुंच गई। देशभर की मीडिया में कांग्रेस की खबरें ही सुर्खियों में है। विधायक और मंत्री बयानबाजी कर रहे हैं। केन्द्रीय नेता इसे मैनेज करने में लगे हैं। बीजेपी सवाल उठा रहीहै। आलाकमान एक्शन ले रहा है। 92 विधायक अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं, लेकिन यह क्या…? इतने बड़े घटनाक्रम के बावजूद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (cm ashok gehlot) का एक भी बयान सामने नहीं आया। प्रदेश कांग्रेस में इतना बड़ा बवाल और प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा (govind singh dotasara) भी चुप। इससे बड़ी हैरानी की बात और क्या हो सकती है। उधर, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने कहा है कि कांग्रेस के सियासी पाखंड से प्रदेश का विकास ठप हुआ है, इस ठगी का जवाब 2023 में राजस्थान की जनता देगी।

अशोक गहलोत और गोविन्द सिंह डोटासरा साइलेंट मोड पर क्यों?

रविवार 25 सितंबर में प्रदेश कांग्रेस में अंतर्कलह जारी है। प्रदेश कांग्रेस दो धड़ों में बंटी हुई है। एक धड़ा सचिन पायलट का है और दूसरा अशोक गहलोत का। गहलोत समर्थक नेताओं ने 25 सितंबर को बगावत कर दी। मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई विधायक दल की बैठक का बहिष्कार किया और विधानसभा अध्यक्ष के आवास पर जाकर इस्तीफे सौंप दिए। मल्लिकार्जुन खड़गे, अजय माकन और सचिन पायलट सहित कुछ विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद विधायकों का इंतजार करते रहे लेकिन कांग्रेस के अधिकतर विधायक बैठक में नहीं पहुंचे। प्रदेश प्रभारी और ऑब्जर्वर ने सोनिया गांधी से लिखित शिकायत की। एआईसीसी ने नोटिस जारी कर दिए लेकिन अशोक गहलोत और गोविन्द सिंह डोटासरा ने मौन व्रत नहीं तोड़ा। अब आप समझ गए होंगे कि यही को गहलोत की जादुगरी है।

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ऐसे समझिये इस सियासी खेल को

क्या ऐसा संभव है कि अशोक गहलोत की मर्जी के बिना उनके गुट के विधायक बगावत कर सकते हैं…? 92 विधायक एक साथ बस में बैठकर विधानसभा अध्यक्ष के आवास पर जाते हैं और गहलोत को पता नहीं हो, क्या ऐसा संभव है…? क्या ऐसा हो सकता है कि विधायक दल की बैठक से पहले उनके खासमखास नेता शांति धारिवाल पैरेलल बैठक कर रहे हैं और गहलोत को कानोंकान खबर नहीं हो…? बीजेपी विधायक उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा हे कि जिस घटनाक्रम को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ और अशोक गहलोत चुपचाप देख रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि इस पूरे एपिसोड के पीछे अशोक गहलोत ही है। इस राजनीतिक ड्रामे के किरदार अलग अलग नजर आ रहे हैं लेकिन डायरेक्टर तो जादुगर ही है।
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कहीं पूरा प्रोग्राम स्क्रिप्टेड तो नहीं…

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अशोक गहलोत की चुप्पी से ऐसा लगता है कि वे इस पूरे मामले को लेकर निश्चिंत हैं। उन्हें सब पता है कि इसका अंत क्या होगा। जिसने पूरी फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी हो, उसे तो पता होता है कि कहां तक सस्पेंस रहेगा और कैसे इस फिल्म का एंड होगा। यही कारण है कि अशोक गहलोत ने तीन दिन के बवाल के बाद भी एक भी टिप्पणी नहीं की। वह भी तब जब घमासान मचाने वाले सभी विधायक उन्हीं के गुट के हैं। अशोक गहलोत की अनुमति के बिना वे एक कदम आगे नहीं बढाते। जब इस राजनैतिक ड्रामे के निर्माता, निर्देशक और लेखक जादुगर ही हैं तो भला उन्हें टिप्पणी करने की जरूरत ही क्या है। इसीलिए इस पूरे एपीसोड पर गहलोत चुप्पी साधे हुए हैं।

सचिन पायलट को औकात दिखाने के लिए तो नहीं रचा पूरा ड्रामा

पहले राजनीति के जानकार कहते थे कि इस पूरे घटनाक्रम की अशोक गहलोत को भनक नहीं लग सकी। गांधीवादी नेता के रूप में जाने जाने वाले गहलोत की इस घटनाक्रम से किरकिरी हुई है। अब वही राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि राजनीति के जादुगर अशोक गहलोत ने कुछ दिनों पहले ही यह स्क्रिप्ट लिख दी थी। आलाकमान को अवगत भी करा दिया गया था। हाईकमान की सहमति के बाद ही यह सारा ड्रामा हुआ। इस ड्रामे का मकसद सचिन पायलट को उनकी औकात याद दिलाना था। गहलोत गुट के समर्थक विधायक सचिन पायलट को खुलकर गद्दार कह रहे हैं। अब सचिन पायलट आलाकमान के पास जाएंगे तो आलाकमान उनसे यही पूछेगा कि आप ही बताइये, जब इतने विधायक आपके खिलाफ हैं तो आपको मुख्यमंत्री क्यों बनाया जाए। सचिन पायलट के पास इसका कोई जवाब नहीं है।

राजनीति में आपके पास संख्याबल नहीं है तो आप कुछ नहीं है

चाहे आप बहुत बड़े धनवान और बाहूबली हो लेकिन अगर आप राजनीति में हैं तो धनबल और बाहूबल के बजाय आपके पास संख्याबल होना जरूरी है। अगर संख्याबल आपके पास है तो सत्ता आपके कदमों में होगी। वर्तमान परिपेक्ष में सचिन पायलट के पास संख्याबल का अभाव है। उनके पास पूरे 20 विधायक ही नहीं है। ऐसे में उनके मुख्यमंत्री बनने का सपना कैसे पूरा होगा। दूसरी तरफ गहलोत के पास पूरा संख्याबल है। गहलोत हमेशा कहते आए हैं कि उनकी जाति के वे एकमात्र विधायक हैं और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि भले ही गहलोत के पास जातिगत बहुमत नहीं है लेकिन संख्याबल उनके समर्थन में हैं। इसीलिए वे विधायक दल के नेता हैं।
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जिन गति से खेल बिगड़ा, अब उसी गति से ठंडा भी होगा

अशोक गहलोत के मिजाज से लगता है कि इस घमासान से उन्हें कोई नुकसान होने वाला नहीं है। तभी तो वे निश्चिंत होकर पूरे ड्रामे को देख रहे हैं। मुस्कुराते हुए विधायकों से मिल रहे हैं। उन्हें यह भी कह रहे हैं कि डोंट वरी। गहलोत समर्थित तीन नेताओं को एआईसीसी की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। नोटिस जारी करके भी इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश की जा रही है। अब अशोक गहलोत भी दिल्ली पहुंच गए हैं। ऐसा लगता है कि आगामी कुछ दिनों में इस घटनाक्रम का पटापेक्ष हो जाएगा। इसमें अशोक गहलोत कुछ नहीं खोएंगे और सचिन पायलट कुछ नहीं पाएंगे। (रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़)

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