कमाल की मिसाल: जिद और जुनून से गांव के लाइलाज जख्मों का बेटियां कर रहीं इलाज | Wonderful example: With stubbornness and passion, the daughters are tr | Patrika News

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कमाल की मिसाल: जिद और जुनून से गांव के लाइलाज जख्मों का बेटियां कर रहीं इलाज | Wonderful example: With stubbornness and passion, the daughters are tr | Patrika News

कमाल की मिसाल: जिद और जुनून से गांव के लाइलाज जख्मों का बेटियां कर रहीं इलाज | Wonderful example: With stubbornness and passion, the daughters are tr | Patrika News

लंपी वायरस फैला तो वरदान बन गया प्रशिक्षण
पशुओं पर लंपी वायरस का कहर जब चरम पर था, तब पशु सखियों ने 50 गांवों में दिन-रात मोर्चा संभाल रखा था। पशु सखी ने बताया कि हम बकरियों का ही इलाज करते थे लेकिन लंपी वायरस फैला तो पशुपालकों ने आग्रह करके सभी जानवरों का इलाज करवाया। टीके लगाए जिससे कई पशु बच गए।

लखनऊ की संस्था ने थ्योरी के साथ प्रैक्टिकल भी सिखाया
लखनऊ की संस्था द गोट ट्रस्ट ने पहले चरण में खालवा ब्लॉक की 50 बेटियों को चुना। फिर इनके बीच ट्रेनर आए और उन्हें बकरियों के इलाज के लिए छह-छह दिनों का तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया। थ्योरी के साथ इलाज के लिए प्रैक्टिकल भी करवाया। इंजेक्शन और दवाई के उपयोग को बताया गया। प्रशिक्षण ले चुकी पशु सखी अब आगे गांव की अन्य लड़कियों को तैयार करेंगी। ऐसा इसलिए कि विवाह होने पर पशुसखी जहां जाएंगी वहां इलाज करेंगी लेकिन वर्तमान गांव में इलाज की समस्या पैदा न हो।

10 रुपए में चेकअप तो 20 रुपए में दवा

इसके बाद 50 आदिवासी लड़कियों ने 50 गांवों मोर्चा संभाल लिया है। अब पशु सखी बकरी के अलावा आग्रह पर अन्य पशुओं का भी इलाज करने लगी हैं। गांव वालों को इस बात की राहत है कि बेहद न्यूनतम दामों पर फौरन उनके पशुओं को इलाज मिल जाता है। पशु सखी ने बताया कि पशु देखने का 10 रुपए और दवाई देने का 20 रुपए लेते हैं। अगर कोई उनके घर आकर दवाई ले तो 10 रुपए ही लगते हैं। साथ ही टीका लगाने का 10 रुपए लेती हैं।

पशु सखी बनकर पाया सम्मान, पहले पानी पुरी का ठेला लगाती थीं
स्नातक साकिया बरधाया गांव में पानी पुरी के ठेला लगाने के काम में पिता को सहायता करती थी। अब पशु सखी के प्रशिक्षण लेकर खालवा के जामधड़ गांव में पशुओं के इलाज की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। साकिया के अनुसार अब बकरी का बुखार, टीका सहित अन्य बीमारियों का इलाज कर लेती हैं। पशुसखी बनने के बाद वो अब अपना खर्च आसानी से चला लेती हैं साथ ही गांव के पशुपालकों को भी फायदा हुआ है।

मजदूरी छोड़ बनी पशुसखी, पति को भी रोजगार से लगाया
7वीं पास सीमा काजले और उनके पति रमेश पहले मजदूरी करते थे। कभी काम मिलता, कभी नहीं। पति ने पानी पूरी की गाड़ी लगाने का सोचा पर आर्थिक तंगी से नहीं कर पाए। प्रशिक्षण के उपरांत सीमा गांव में रोजाना पशुओं की जांच व उपचार का काम कर रही है। स्वास्थ्य शिविर व पशु पालक बैठक भी कर रही है। सीमा ने अब पति रमेश का पानी पूरी का ठेला लगाने का सपना भी पूरा करवा दिया है। दोनों खुशी-खुशी जीवन की गाड़ी खींच रहे हैं।

पहले मनरेगा में मजदूरी अब मिली डॉक्टर दीदी की पहचान
12वीं पास माया गौतम के घर की हालत पिता के देहांत के बाद बिगड़ गई। मनरेगा के काम व पलायन करने मेहनत-मजदूरी के बाद भी घर चलाना मुश्किल हो रहा था। कभी काम मिलता था कभी नहीं। काम अगर मिल जाए तो मजूदरी की राशि समय पर नहीं मिलती। अब माया इलाज से रोज़ मिलने वाले पैसों से परिजनों की भी मदद कर रही हैं। माया गांव में डॉक्टर दीदी के नाम से है।

गांव में पशु सखी जैसे संजीवनी
आदिवासी गांवों के लिए पशु सखी संजीवनी की तरह हैं। इन्हें आजीविका तो पशुपालकों को बड़ी मदद मिल रही है। हमारी कोशिश है कि पशु सखियां गांव की पांच लड़कियों को भी तैयार कर रही हैं ताकि जब किसी की शादी हो जाए तो ग्रामीणों को समस्या न हो।

– निशांत फरकले, समन्वयक, पशु सखी प्रोजेक्ट

बेटियों को प्रशिक्षित कर सशक्त बनाने है उद्देश्य
पशु सखी मॉडल के तहत हम देश के 18 राज्यों में बेटियों को बकरियों के इलाज के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण दे रहे हैं। गांव की लड़कियों को प्रशिक्षित कर उन्हें सशक्त बनाना हमारा उदेश्य है। हम बेसिक यानी शुरुआती प्रशिक्षण देते हैं, बाकी तो थोड़ा-बहुत हमेशा चलता रहता है।
– धर्मेन्द्र कुमार, स्टेट प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर, द गोट ट्रस्ट, लखनऊ



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