कभी नंगे पांव फ्रांस को नाकों चने चबवा दिए थे, फिर खराब होने लगी भारतीय फुटबॉल की स्थिति, आखिर क्यों है ऐसा बुरा हाल

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कभी नंगे पांव फ्रांस को नाकों चने चबवा दिए थे, फिर खराब होने लगी भारतीय फुटबॉल की स्थिति, आखिर क्यों है ऐसा बुरा हाल


कभी नंगे पांव फ्रांस को नाकों चने चबवा दिए थे, फिर खराब होने लगी भारतीय फुटबॉल की स्थिति, आखिर क्यों है ऐसा बुरा हाल

नई दिल्ली: भारतीय फुटबॉल टीम की एक तस्वीर अब भी गाहे बगाहे सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है। तस्वीर में कुछ खिलाड़ी फुटबॉल ग्राउंड में नंगे पांव दिखते हैं। उनके पीछे स्टेडियम में उमड़ा जनसैलाब दिखता है। यह तस्वीर भारतीय फुटबॉल टीम का है, जो 1948 लंदन ओलिंपिक में फ्रांस के खिलाफ खेलने उतरी थी। इस तस्वीर को शेयर करते हुए फुटबॉल को चलाने वाली वर्ल्ड संस्था फीफा ने एक बार लिखा था- यही वह टीम है, जिसने बिना जूते पहने फ्रांस की टीम को नाकों चने चबवा दिए थे।

फीफा की यह तारीफ करोड़ों की है। भारत वह मैच 1-2 से हारा था। इसके बावजूद फीफा का ट्वीट यह बताने के लिए काफी था कि भारतीय टीम का जज्बा क्या थ। उसमें टैलेंट और फाइटिंग स्पिरिट का लेवल क्या था। बावजूद इसके आज भी भारत फुटबॉल में अपनी जगह बनाने को जूझ रहा है। पुरुष टीम की रैंकिंग 104 है, जबकि महिलाओं की रैंकिंग 58 है। मुट्ठीभर जनसंख्या वाले गरीब कुचले देश केन्या और हैती कहीं बेहतर पोजिशन पर हैं।

आजादी के बाद पहला मुकाबला था

वायरल तस्वीर आजादी के बाद की है, जिसमें भारत फ्रांस को टक्कर देता दिखा था। यही वह टीम है, जिसने 1956 में सिडनी के ऐतिहासिक स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया को 7-1 से रौंदा था। 1956 में ही भारतीय टीम ओलिंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची थी। 1964 में एशिया कप की रनरअप भी रही थी। एशियन गेम्स-1951 और 1962 में चैंपियन बनी थी। लेकिन ये बातें इतिहास हैं।

मौजूदा हाल यह है कि ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (AIFF) में राजनीति चरम पर है। फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल पर टीम पर बैन लगवाने की कोशिश करने का गंभीर आरोप लगा है। भारतीय टीम को समय के साथ जहां बेहतर होना चाहिए था, वहीं लगातार वह ढलान पर रही। ऐसा नहीं है कि फेडरेशन में कोई तनाव रहा। यहां तो लंबे समय तक प्रफुल्ल पटेल का एकतरफा राज रहा। इसके बावजूद भारतीय टीम विकास का आधार मानी जाने वाली रैंकिंग में हमेशा पिछड़ी ही रही।

13 साल तक अध्यक्ष रहे पटेल
2009 में नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन का अध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद से वह लगातर पद पर थे। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पद से हटाया। देश के स्पोर्ट्स कोड के अनुसार कोई भी व्यक्ति 3 बार से ज्यादा अध्यक्ष नहीं रह सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हटाने के साथ ही एक कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स का भी गठन किया। अब प्रफुल्ल पटेल राज्य संघों के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एआर दबे, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान भास्कर गांगुली वाली सीओए कमेटी को परेशान करने में लगे हैं।

देश में क्यों खराब है फुटबॉल की हालत?
किसी भी खेल में चैंपियन बनने के लिए खिलाड़ियों को काफी कम उम्र से ही ट्रेनिंग दी जाती है। उनके लिए सही डाइट की जरूरत होती है। विदेशी में छोटे स्तर पर ही टैलेंट की पहचान की जाती है। उन्हें पूरी व्यवस्था दी जाती है। लेकिन भारत में फुटबॉल के लिए जमीनी स्तर पर सुविधा की काफी कमी नजर आती है। खिलाड़ियों के लिए ट्रेनिंग की उचित व्यवस्था नहीं है। वैसे मैदान ही नहीं है जहां उन्हें बड़े स्तर के लिए ट्रेनिंग दी जा सके। इतना बड़ा देश होने के बाद भी यहां चंद ही इंटरनेशनल लेवल के फुटबॉल स्टेडियम हैं।

खेल में राजनीति का बोलबाला
भारत के ज्यादातर फुटबॉल मैदान नेताओं के नाम पर हैं। फुटबॉल के कई स्टेडियम पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर हैं। कई बार इसपर सवाल भी उठ चुके हैं। खेल को चलाने वाले लोगों में पूर्व खिलाड़ी दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं। हर बड़े पद पर किसी न किसी पार्टी के नेता बैठे हैं। वे न तो खेल को समझते हैं और न ही उन्हें खेल से ज्यादा मतलब होता है। यही वजह है कि देश में फुटबॉल का खेल लगातार पीछे जा रहा है।



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