एमपी के सागर में भी है मुंबई के सिद्धिविनायक की तरह बना गणेश मंदिर, बुंदेलों और मराठों की दोस्ती की है निशानी

96

एमपी के सागर में भी है मुंबई के सिद्धिविनायक की तरह बना गणेश मंदिर, बुंदेलों और मराठों की दोस्ती की है निशानी

Edited by | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Sep 13, 2021, 4:51 PM

सागर का अष्टकोणीय गणेश मंदिर कई मायनों में खास है। मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर (Siddhivinayak Temple Mumbai) की तरह इस मंदिर के गर्भ गृह का निर्माण आठ कोणों में हुआ है। यह ऐतिहासिक धरोहर है क्योंकि यह मराठों और बुंदेलों की मित्रता की कहानी भी बयां करता है।

 

अमित प्रभु मिश्रा, सागर
मध्य प्रदेश में सागर जिले की लखाबंजारा झील पर स्थित गणेश मंदिर (Ganesh Temple Sagar) मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर (Siddhivinayak Temple Mumbai) की तरह है। करीब 400 साल पुराना यह मंदिर शिवाजी कालीन है। भारत के दूसरे गणेश मंदिर के रूप में मशहूर इस मंदिर के गर्भ गृह का निर्माण आठ कोणों में हुआ है। इसी पद्धति पर सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई का भी निर्माण हुआ है।

सन् 1600 में यहां खुदाई के दौरान भगवान गणेश की यह मूर्ति मिली थी। इसीलिए इन्हें स्वयंभू गणेश भी कहा जाता है। पूरे पैंतीस साल में महाराष्ट्र के कारीगरों ने 1640 में इस मंदिर को बनाकर तैयार किया। ये वो दौर था जब शिवाजी महाराज का परचम लहराया करता था। इसके बाद मराठाकाल में बाजीराव के साम्राज्य में इस मंदिर का स्वर्णिम दौर रहा। यहां बुंदेलों और मराठों का इतिहास लिखा गया जो नागपुर में आज भी सुरक्षित है। बुंदेलखंड का यह मंदिर एक प्राचीन धरोहर है।

बाजीराव मस्तानी फ़िल्म में हमने मराठों और बुंदेलों की दोस्ती (Friendship of Bundelas and Marathas) देखी है। बुंदेलखंड की धरती पर महाराज छत्रसाल की चिट्ठी मिलते ही तीर की तेजी से पेशवा बाजीराव आये और आतताइयों से घिरे महाराज छत्रसाल को उबारकर मित्रता का परिचय दिया। बुंदेलखंड में कई स्थानों पर मराठों के शौर्य का इतिहास मिलता है। सागर जिले में भी उस दौर का इतिहास किलों और मंदिरों के रूप में आज भी मौजूद है।

77 साल के गोविंद दत्तात्रेय अठावले इस मंदिर के पुजारियों की छठवी पीढ़ी के पुजारी हैं। उन्होंने बताया कि सागर किले में रहने वाले मराठा शासकों की तस्वीरें किले में आज भी मौजूद हैं जो अब जवाहरलाल नेहरू पुलिस अकादमी के रूप में जाना जाता है। चार सौ साल बाद भी मराठा गणेश महादेव मंदिर की भव्यता बरकरार है। मंदिर में लगे संस्कृत अभिलेख में मराठा शासकों द्वारा इसकी स्थापना का उल्लेख है। परिसर में 350 साल पुराना राधाकृष्ण जी का भी प्राचीन मंदिर है।

यहां के शिवलिंग के बारे में पुजारी ने बताया कि मुगल काल के दौरान रामेश्वर से यह शिवलिंग यहां लाकर स्थापित किया गया था। शिवलिंग पर भगवान शिव की जटाओं की तरह ही चंद्रमा विद्यमान है। 21 बैलगाड़ियों से मराठा इसे लेकर आए जिसमें महीनों का वक़्त लगा था।

उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News