एक थीं दुर्गा रानी, अमर है जिनकी पानी की कहानी | rani durgavati a queen of water management projects, read must special | Patrika News
बारिश के हर बूंद का कराया संरक्षण
रानी दुर्गावती प्रकृति, पर्यावरण और जल संरक्षण पर भी ध्यान देती थीं। यही कारण है कि उनके शासनकाल में जबलपुर ताल-तलैयों का शहर बन गया था। नर्मदा की विशाल जलराशि होने के बाद भी गोंडवाना शासनकाल में तत्कालीन नगरीय सीमा में 52 ताल और 84 तलैया बनवाई गई थीं। इनकी संरचना ऐसी थी कि बारिश के पानी को सहेजकर भू-जल स्तर को भी रीचार्ज किया जाता था। उन्होंने अपने विश्वासपात्रों और नाते-रिश्तेदारों के नाम पर स्मृति स्मारक के बजाय ताल-तलैयों का निर्माण कराया, जो सदियों बाद आज भी उनकी याद दिलाते हैं।
पंचासर योजना:गजब की इंजीनियरिंग
पर्यावरणविद् और तालाबों पर रिसर्च करने वाले संजय वर्मा बताते हैं कि गोंड कालीन साम्राज्य के शासकों ने प्राकृतिक, भौगोलिक रचनाओं का भरपूर दोहन किया। ऐसे स्थानों पर तालाब-पोखर बनवाए, जिनमें बारिश का पानी एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं प्रवाहित होता था। रानी दुर्गावती ने सत्ता सम्भालते ही प्राकृतिक-भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन किया। इसमें उनके मंत्रियों, सलाहकारों की टीम काम करती थी। इसी टीम ने पंचासर योजना बनाई। पंचासर का अर्थ था पांच तालाबों की चेन, जो एक बार बन जाने के बाद बिना मानवीय हस्तक्षेप के दूसरे को स्वयं सहयोग करेगी। एक तालाब के भरने पर उसका पानी ओवरफ्लो होकर दूसरे तालाब फिर तीसरे, चौथे और अंत में पांचवें तालाब में भर जाएगा।
ऐसी थी पंचासर योजना
शहर की सबसे ऊंची बसाहट नयागांव की पहाड़ी है। यह शक्तिभवन के पीछे स्थित है। उसके नीचे मदन महल की पहाड़ी और फिर शहर गढ़ा शुरू होता है। नयागांव की पहाडिय़ों पर सबसे ऊपर ठाकुर ताल है। इसे रानी दुर्गावती के आमात्य गुरु महेश ठाकुर के नाम से जाना जाता है। मदनमहल की पहाडिय़ों पर सबसे ऊपर महराज सागर तालाब है। महराज सागर तालाब से पानी ओशो आश्रम के बगल में स्थित कोलहाताल तक प्रवाहित होता है। कोलहा ताल से देवताल, फिर सूपाताल और फिर बघाताल भरता है। इन पांच तालाबों की श्रेणी को पंचासर योजना के नाम से जाना जाता है।
अपनों को उपहार में दिए तालाब
रानी दुर्गावती जब भी कोई युद्ध जीतकर लौटतीं या किसी विशेष अवसर पर वे एक तालाब या तलैया बनवाकर उसका नाम अपने करीबियों या रिश्तेदारों के नाम पर रख देती थीं। उन्होंने रानीताल का नाम अपने नाम पर रखा गया। दीवार अधार ङ्क्षसह के नाम पर आधारताल, सखी चेरी के नाम पर चेरीताल, बेटे वीरनारायण की दाई मां इमरती के नाम पर इमरती ताल, गुरु आमात्य महेश ठाकुर के नाम पर ठाकुर ताल, बाज बहादुर पर जीत के बाद माढ़ोताल बनवाया गया था। शहर के जल स्तर को बनाए रखने में गोंड शासन काल का प्रमुख योगदान रहा है। उन्होंने न केवल जल सरोवरों की धरोहरें निर्मित कीं, बल्कि उन्हें संवारने में भी योगदान दिया। उन्हें शासकों से लेकर हर उसका नाम दिया जो राज्य की खुशहाली में मुख्य सहयोगी रहा।
पहाडिय़ों का विशेष योगदान
जबलपुर चारों ओर से पहाडिय़ों से घिरा है। हर 10 किमी की दूरी पर एक पहाड़ी शृंखला है। ये पहाडिय़ां शहर को समृद्ध बनाने की सबसे मजबूत कड़ी हैं। भूगोल के जानकारों के अनुसार गोंडवाना काल में इन पहाडिय़ों खूब अध्ययन हुए। उन्होंने समृद्ध वनों की शृंखला तैयार की थी, जो वर्तमान में भी देखने को मिल जाती है। ये पहाडिय़ां जैव विविधता का पूरा संसार समेटे हुए हैं। जलवायु के अनुसार ये अलग-अलग हो सकती हैं। पहाड़ वाटर रीचार्ज के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। जबलपुर की इसी पहाड़ी संरचना को गोंडवाना कालीन शासकों खासकर रानी दुर्गावती ने समझा और इसका भरपूर उपयोग किया।
बारिश के हर बूंद का कराया संरक्षण
रानी दुर्गावती प्रकृति, पर्यावरण और जल संरक्षण पर भी ध्यान देती थीं। यही कारण है कि उनके शासनकाल में जबलपुर ताल-तलैयों का शहर बन गया था। नर्मदा की विशाल जलराशि होने के बाद भी गोंडवाना शासनकाल में तत्कालीन नगरीय सीमा में 52 ताल और 84 तलैया बनवाई गई थीं। इनकी संरचना ऐसी थी कि बारिश के पानी को सहेजकर भू-जल स्तर को भी रीचार्ज किया जाता था। उन्होंने अपने विश्वासपात्रों और नाते-रिश्तेदारों के नाम पर स्मृति स्मारक के बजाय ताल-तलैयों का निर्माण कराया, जो सदियों बाद आज भी उनकी याद दिलाते हैं।
पंचासर योजना:गजब की इंजीनियरिंग
पर्यावरणविद् और तालाबों पर रिसर्च करने वाले संजय वर्मा बताते हैं कि गोंड कालीन साम्राज्य के शासकों ने प्राकृतिक, भौगोलिक रचनाओं का भरपूर दोहन किया। ऐसे स्थानों पर तालाब-पोखर बनवाए, जिनमें बारिश का पानी एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्वयं प्रवाहित होता था। रानी दुर्गावती ने सत्ता सम्भालते ही प्राकृतिक-भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन किया। इसमें उनके मंत्रियों, सलाहकारों की टीम काम करती थी। इसी टीम ने पंचासर योजना बनाई। पंचासर का अर्थ था पांच तालाबों की चेन, जो एक बार बन जाने के बाद बिना मानवीय हस्तक्षेप के दूसरे को स्वयं सहयोग करेगी। एक तालाब के भरने पर उसका पानी ओवरफ्लो होकर दूसरे तालाब फिर तीसरे, चौथे और अंत में पांचवें तालाब में भर जाएगा।
ऐसी थी पंचासर योजना
शहर की सबसे ऊंची बसाहट नयागांव की पहाड़ी है। यह शक्तिभवन के पीछे स्थित है। उसके नीचे मदन महल की पहाड़ी और फिर शहर गढ़ा शुरू होता है। नयागांव की पहाडिय़ों पर सबसे ऊपर ठाकुर ताल है। इसे रानी दुर्गावती के आमात्य गुरु महेश ठाकुर के नाम से जाना जाता है। मदनमहल की पहाडिय़ों पर सबसे ऊपर महराज सागर तालाब है। महराज सागर तालाब से पानी ओशो आश्रम के बगल में स्थित कोलहाताल तक प्रवाहित होता है। कोलहा ताल से देवताल, फिर सूपाताल और फिर बघाताल भरता है। इन पांच तालाबों की श्रेणी को पंचासर योजना के नाम से जाना जाता है।
अपनों को उपहार में दिए तालाब
रानी दुर्गावती जब भी कोई युद्ध जीतकर लौटतीं या किसी विशेष अवसर पर वे एक तालाब या तलैया बनवाकर उसका नाम अपने करीबियों या रिश्तेदारों के नाम पर रख देती थीं। उन्होंने रानीताल का नाम अपने नाम पर रखा गया। दीवार अधार ङ्क्षसह के नाम पर आधारताल, सखी चेरी के नाम पर चेरीताल, बेटे वीरनारायण की दाई मां इमरती के नाम पर इमरती ताल, गुरु आमात्य महेश ठाकुर के नाम पर ठाकुर ताल, बाज बहादुर पर जीत के बाद माढ़ोताल बनवाया गया था। शहर के जल स्तर को बनाए रखने में गोंड शासन काल का प्रमुख योगदान रहा है। उन्होंने न केवल जल सरोवरों की धरोहरें निर्मित कीं, बल्कि उन्हें संवारने में भी योगदान दिया। उन्हें शासकों से लेकर हर उसका नाम दिया जो राज्य की खुशहाली में मुख्य सहयोगी रहा।
पहाडिय़ों का विशेष योगदान
जबलपुर चारों ओर से पहाडिय़ों से घिरा है। हर 10 किमी की दूरी पर एक पहाड़ी शृंखला है। ये पहाडिय़ां शहर को समृद्ध बनाने की सबसे मजबूत कड़ी हैं। भूगोल के जानकारों के अनुसार गोंडवाना काल में इन पहाडिय़ों खूब अध्ययन हुए। उन्होंने समृद्ध वनों की शृंखला तैयार की थी, जो वर्तमान में भी देखने को मिल जाती है। ये पहाडिय़ां जैव विविधता का पूरा संसार समेटे हुए हैं। जलवायु के अनुसार ये अलग-अलग हो सकती हैं। पहाड़ वाटर रीचार्ज के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। जबलपुर की इसी पहाड़ी संरचना को गोंडवाना कालीन शासकों खासकर रानी दुर्गावती ने समझा और इसका भरपूर उपयोग किया।