एक्सपोर्टरों को सहूलियत देने की योजना से हो रही है इंपोर्टरों की बल्ले बल्ले, जानें क्या है माजरा

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एक्सपोर्टरों को सहूलियत देने की योजना से हो रही है इंपोर्टरों की बल्ले बल्ले, जानें क्या है माजरा

मुंबई: कभी-कभी ऐसा भी देखने को मिलता है। भारत सरकार (Government of India) ने सितंबर, 2021 में गार्मेंट एक्सपोर्टरों (Garment Exporters) को सहूलियत देने के लिए एक योजना का शुभारंभ किया था। यह योजना थी गार्मेंट के निर्माण (Garment Manufacturing) में राज्य और केंद्रीय करों और लेवी (State & Central Taxes and Levies) के भुगतान पर छूट (ROSTCL)। बाद में इस योजना में कुछ बदलाव किया गया। इससे यही योजना गार्मेंट एक्सपोर्टरों के लिए गले की फांस बन गई। अब हालात यह है कि इससे इंपोर्टरों (Importers) की बल्ले बल्ले हो गई है।

30 लाख लोगों के रोजगार पर असर
गार्मेंट एक्सपोर्टरों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से देश के कपड़ा उद्योग की क्षमता पर असर पड़ सकता है। इससे उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर तो असर पड़ेगा ही, इस क्षेत्र में काम करने वाले करीब 30 लाख लोगों का रोजगार भी प्रभावित हो सकता है। गौरतलब है कि भारत इस समय 44 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात करता है। इसमें से गार्मेंट और टेक्सटाइल एक्सपोर्ट का हिस्सा करीब 16 अरब डॉलर का है।

निर्यातकों के बदले आयातकों को फायदा
अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (AEPC) के सदस्य और गारमेंट एक्सपोर्ट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय जिंदल ने कहा कि यह योजना भारत के कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने के इरादे से शुरू की गई थी। यह योजना निर्यातकों द्वारा इनपुट पर पहले से भुगतान किए गए करों, लेवी आदि से छूट प्रदान करती है। लेकिन इस छूट को उन स्क्रिप में बदल दिया गया जो व्यापार योग्य हैं। निर्यातक, आयातकों को यह स्क्रिप बेच सकते हैं। आयातक बदले में नकद आयात शुल्क भुगतान के विकल्प के रूप में इन खरीदी गई स्क्रिपों से शुल्क का भुगतान कर सकते हैं। इनकी बिक्री पहले भी डिस्काउंट पर होती थी, लेकिन यह डिस्काउंट 3 से बढ़ाकर 20 फीसदी हो गया है।

अनुचित फायदा उठा रहे हैं
जिंदल का कहना है कि स्क्रिप पर इस डिस्काउंट से आयातक, निर्यातकों की कीमत पर अनुचित लाभ उठा रहे हैं। कुल 16 अरब डॉलर के गार्मेंट एक्सपोर्ट में 5 फीसदी रीइंबर्समेंट है। यह लगभग 6,000 करोड़ रुपये बनता है। व्यापक स्तर पर इस पर 20 फीसदी का डिस्काउंट चल रहा है। इससे गार्मेंट सेक्टर के कमजोर मार्जिन पर लगभग 1,500 करोड़ का सीधा असर पड़ रहा है।

सरकार की मंशा पर पानी फेर रहा है
जीईएमए का कहना है कि यह बदलाव दुनिया के लिए मेक इन इंडिया की सरकार की घोषित नीति को बढ़ावा देने की इस पूरी योजना के उद्देश्य और मंशा पर पानी फेर रहा है। भले ही यह योजना भारत के कपड़ा उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन निर्यातकों के बजाय आयातकों को फायदा हो रहा है। यदि सरकार इस संरचना में तुरंत बदलाव नहीं करती है तो उद्योग अपनी प्रतिस्पर्धा की बढ़त खो सकता है।

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