उत्तराखंडः क्या यहां विधानसभा चुनाव में ‘गधा’ बनेगा टर्निंग पॉइंट?

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उत्तराखंडः क्या यहां विधानसभा चुनाव में ‘गधा’ बनेगा टर्निंग पॉइंट?

हाइलाइट्स

  • उत्तराखंड की राजनीति में अचानक हो गई गधे की एंट्री
  • राजनीति में गधे की एंट्री पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की वजह से हुई
  • सियासी गलियारों में चर्चा- कहीं गधा चुनावों में टर्निंग पॉइंट न बन जाए

नई दिल्ली/देहरादून
पॉलिटिक्स में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब देखिए न, उत्तराखंड की पॉलिटिक्स में अचानक गधा ही एंट्री कर गया। इसकी एंट्री का जरिया कोई गली, मोहल्ले या वार्ड का नेता नहीं बना बल्कि राज्य के लगभग चार साल सीएम रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत बने। उनका एक विडियो वायरल है, जिसमें वह कहते दिख रहे हैं कि ‘हमारे यहां बोलते हैं कि गधा जो होता है, ढैंचा-ढैंचा करता है।’ उसके बाद अब वहां चारों तरफ ‘ढैंचा-ढैंचा’ की आवाज ही आने लगी हैं। राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा है कि कहीं यह ‘ढैंचा-ढैंचा’ उत्तराखंड में अगले छह महीने के अंदर होने वाले विधानसभा चुनाव में ‘टर्निंग पॉइंट’ न बन जाएं! वैसे पता नहीं क्यों, अपने यहां गधे को इतना गिरा हुआ माना जाता है। अगर कभी किसी को मिस्र की रानी रहीं क्लियोपेट्रा को पढ़ने का मौका मिले तो गधे की अहमियत का अंदाजा लग जाएगा। और जिसने पढ़ा होगा, उसे तो पता ही होगा। कहा जाता है कि वह अपनी खूबसूरती बरकरार रखने के लिए गधी के दूध में नहाया करती थीं। गधे की बुद्धिमानी से जुड़ी एक खासियत यह भी बताई जाती है कि यदि उसे कोई गतिविधि असुरक्षित लगती है, तो वह उसमें शामिल नहीं होता। गधे उस जगह को याद रख सकते हैं, जहां वे 25 साल पहले रहे हों। वे उन गधों को भी याद रख सकते हैं, जिनसे वे 25 साल पहले मिले हों। और तो और अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी का चुनाव निशान भी गधा ही है। लेकिन अपने यहां गधा तो गधा ही माना जाता है। फिलहाल त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गधे की जो जुबान ‘ढैंचा-ढैंचा’ बताई है, वह आपको समझने की ज्यादा जरूरत है क्योंकि उत्तराखंड की पॉलिटिक्स में ‘ढैंचा’ के खास मायने हैं।

ढैंचा की सियासी अहमियत
खेती-किसानी या गांव से ताल्लुक रखने वाले लोग जानते ही होंगे कि ढैंचा एक पौधा होता है। इसकी छाल से रस्सियां बनाई जाती हैं। हरी खाद के रूप में भी इसका प्रयोग होता है लेकिन उत्तराखंड की पॉलिटिक्स में इसके खास मायने इस वजह से हैं कि वहां पर ढैंचा बीज की सरकारी खरीद और उसके वितरण में एक बड़ा घोटाला हुआ था। यह उस दौर की बात है कि जब राज्य की बीजेपी सरकार में त्रिवेंद्र सिंह रावत कृषि मंत्री हुआ करते थे यानी 2007-12 वाला कार्यकाल। कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था, कहा था कि सरकार में आने पर इसमें शामिल सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई होगी। 2012 से 2017 तक राज्य में कांग्रेस की सरकार रही। पहले विजय बहुगुणा सीएम रहे, बाद में हरीश रावत हुए। हरक सिंह रावत उस वक्त तक कांग्रेस में हुआ करते थे और प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री थे। बाद में वह बीजेपी में आ गए। पहले वह त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार में मंत्री हुए, उसके बाद तीरथ सिंह रावत में भी उनका मंत्री पद बरकरार रहा। अब वह धामी सरकार में भी मंत्री हैं। पिछले दिनों उन्होंने अपनी ही पार्टी के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर एक ऐसा बयान दिया कि राज्य की पॉलिटिक्स में खलबली मच गई। उन्होंने कहा, ‘तत्कालीन सीएम हरीश रावत ढैंचा बीज घोटाले में त्रिवेंद्र सिंह रावत को जेल भेजना चाहते थे लेकिन मैंने दो पेज का नोट लिखकर त्रिवेंद्र सिंह रावत को बचा लिया था। ऐसा करने पर हरीश रावत ने हमसे कहा था कि तुम सांप को दूध पिला रहे हो। अगर उस वक्त त्रिवेंद्र सिंह रावत जेल चले गए होते तो 2017 में सीएम नहीं बन पाते।’ त्रिवेंद्र सिंह रावत से जब मीडिया ने सवाल किया कि हरक सिंह रावत के बयान में कितनी सच्चाई है तो उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां बोलते हैं कि गधा जो होता है, ढैंचा-ढैंचा करता है।’ इसके बाद उनका एक और बयान आया, जिसमें उन्होंने और ज्यादा कटाक्ष किया, ‘हरक सिंह रावत विद्वान व्यक्ति हैं। उन्होंने हजारों बच्चों को पढ़ाया, संस्कारित किया, शिक्षित किया। उनका चरित्र बहुत उज्ज्वल रहा है, चाहे आर्थिक हो, नैतिक हो, वैयक्तिक हो, सारी दुनिया जानती है। उनकी श्रेष्ठता को प्रणाम करता हूं।’

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क्यों मच गई खलबली?
हरक सिंह रावत ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को जवाब दिया है, ‘हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिनके घर कांच के होते हैं, वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते।’ यहीं से संशय पैदा होता है कि बीजेपी सरकार में मंत्री रहते हुए भी हरक सिंह रावत जिस तरह से त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने निशाने पर ले आए हैं, यह अकेली उनकी हिम्मत है या उन्हें बीजेपी से ही कहीं से ताकत मिल रही है? त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद खुश नहीं बताए जा रहे। कई मौकों पर वह अपना दर्द सार्वजनिक कर चुके हैं कि उन्हें आज तक पता नहीं चला कि उन्हें क्यों हटाया गया है ? राज्य के चुनाव से महज छह महीने पहले राज्य के एक मंत्री के उनके खिलाफ मोर्चा खोल देने के पीछे अगर बीजेपी के अंदर से मिली कोई शह नहीं है तो क्या यह माना जाए कि हरक सिंह रावत का बीजेपी से दिल भर गया है? कांग्रेस उन्होंने इस वजह से छोड़ी थी कि वह खुद को मुख्यमंत्री का दावेदार मान रहे थे, जब वहां कोई गुंजाइश नहीं बनती दिखी तो उन्होंने बीजेपी जॉइन किया। बीजेपी में उनका दावा बन ही नहीं पाया। अब भी ऐसी कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती है। इस वजह से उनके भीतर भी कहीं न कहीं विद्रोह भरा हुआ है। ऐसे में आने वाले दिनों में ‘ढैंचा’ के जरिए उत्तराखंड में कुछ उलटफेर देखने को मिल जाए तो आश्चर्य नहीं।

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