उग्रवादियों को पहुंचाती थी हथियार… भारतीय बॉक्सर का हैरान करने वाला खुलासा

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उग्रवादियों को पहुंचाती थी हथियार… भारतीय बॉक्सर का हैरान करने वाला खुलासा


उग्रवादियों को पहुंचाती थी हथियार… भारतीय बॉक्सर का हैरान करने वाला खुलासा

नई दिल्ली: भारत का नाम एथलेटिक्स में रोशन करने वाली दिग्गज मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी आज कल सुर्ख़ियों में छाई हुई हैं। जिसकी बड़ी वजह उनके द्वारा हासिल किया गया कोई कीर्तिमान नहीं बल्कि उनका बयान है. जी हां, सरिता के बयान ने सबके होश उड़ा दिए। उन्होंने मंगलवार 7 फरवरी को बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि कैसे वह एक बार उग्रवादी बनने की ओर चल पड़ी थी लेकिन बॉक्सिंग ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी।

बता दें कि मुक्केबाज सरिता देवी आईआईटी गुवाहाटी के एक सम्मेलन में शामिल हुई थी। जिसमें उन्होंने 90 के दशक के उन दिनों को याद किया जब मणिपुर में उग्रवाद अपने चरम पर था और बताया कि खेलों ने उनको उग्रवाद की राह पर चलने से बचा लिया.

सरिता ने कहा कि, ‘मैं उग्रवादियों से प्रभावित होकर उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी। मैं उनके लिए हथियार मुहैया कराती थी, लेकिन खेलों ने मुझे बदल दिया और मुझे अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया।’

इसी के साथ लैशराम सरिता देवी ने आगे अपने बयान में इस बात का भी ज़िक्र किया कि उनके घर पर रोज़ाना तकरीबन 50 उग्रवादी आते थे. जिनसे वह प्रभावित हो गई थी और हूबहू उन्हीं की तरह बनना चाहती थी।

पूर्व विश्व चैंपियन ने बताया कि, ‘मैं एक छोटे से गांव में रहती थी और जब मैं 12-13 साल की थी तो हर दिन उग्रवादियों को देखती थी। घर पर रोजाना लगभग 50 उग्रवादी आते थे। मैं उनकी बंदूकें देखती थी और उनके जैसा बनना चाहती थी। मैं उग्रवाद की तरफ बढ़ रही थी।’ सरिता ने स्वीकार किया कि एक समय वह उग्रवादियों के हथियारों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम करती थी।

उन्होंने कहा ‘‘मैं उनके जैसा बनने का सपना देखती थी और मुझे बंदूकों से खेलना बहुत पसंद था। मुझे नहीं पता था कि खेलों से आप खुद को और देश को प्रसिद्धि दिला सकते हैं।’ एक दिन उनके भाई ने उनकी पिटाई की जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। सरिता ने कहा, ‘मैं खेलों से जुड़ी और फिर मैंने 2001 में पहली बार बैंकॉक में एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रजत पदक जीता।’

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ऐसे में जब उनका राष्ट्रगान बजाया गया और सभी ने उन्हें सम्मान दिया तो वह भावुक हो गई। उन्होंने कहा, ‘यही वह क्षण था जब मैं भावुक हो गई थी। इसके बाद मैंने कड़ी मेहनत की और 2001 से 2020 तक कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर ढेरों पदक जीते। खेलों ने मुझे बदल दिया। मैं अपने देश के युवाओं में इसी तरह का बदलाव देखना चाहती हूं।’’

मणिपुर के अमीनगांव की रहने वाली 40 वर्षीय सरिता देवी ने 2005 में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए गोल्ड मैडल जीता था। इसके अलावा वह लाइटवेट क्लास में भी वर्ल्ड चैंपियन रही हैं। बहरहाल, सरिता देवी को उनके करियर में आपार सफलताओं के चलते साल 2009 में अर्जुन अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।

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