आपातकाल में सिंधिया परिवारः सोने के आभूषणों से भरे दर्जनों संदूक, 53 क्विंटल चांदी, महल में छापा मारने आए अधिकारियों की भी चौंधियां गई थीं आंखें

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आपातकाल में सिंधिया परिवारः सोने के आभूषणों से भरे दर्जनों संदूक, 53 क्विंटल चांदी, महल में छापा मारने आए अधिकारियों की भी चौंधियां गई थीं आंखें

भोपालः ग्वालियर का सिंधिया घराना अकूत संपत्ति का मालिक है। इतनी कि अडाणी-अंबानी भी उनके सामने फीके पड़ जाएं। ग्वालियर रियासत के शासक रहे सिंधिया परिवार की संपत्तियों का वास्तविक आकलन संभव नहीं है। 1957 से लेकर अब तक के चुनावों में सिंधिया खानदान के उम्मीदवारों ने जितनी संपत्ति बताई है, वह उस आंकड़े से काफी कम है जितनी आम धारणा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव के लिए आवेदन में 2 अरब से ज्यादा की संपत्तियां बताई थीं, लेकिन जिन संपत्तियों को लेकर कई अदालतों में मामले चल रहे हैं, उनकी अनुमानित कीमत ही करीब 40 हजार करोड़ यानी 400 अरब रुपये है। वर्ष 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया और सिंधिया के महल जयविलास पैलेस पर छापा पड़ा तब आम लोगों को पहली बार इस खानदान की समृद्धि के बारे में पता चला।

सिंधिया घराने पर कांग्रेस को शुरू से था संदेह
दरअसल, दक्षिणपंथी संगठनों के प्रति सिंधिया घराने के कथित झुकाव के चलते कांग्रेस पार्टी उसे शुरू से ही संदेह की नजरों से देखती थी। नेहरू के दबाव में आकर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक पार्टी में नहीं रहीं। 1975 में जब आपातकाल लगाया गया, तब वे जनसंघ के टिकट पर सांसद चुनी गई थीं। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी जनसंघ के समर्थन से ही पहली बार सांसद बने थे।

इंदिरा के कहने पर राजमाता को भेजा गया तिहार
आपातकाल की घोषणा होते ही विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हुई। इससे बचने माधवराव छिपते-छिपाते नेपाल पहुंच गए जहां उनकी ससुराल थी। विजयाराजे ने सरेंडर कर दिया। उन्हें पहले पचमढ़ी के फॉरेस्ट रिसॉर्ट में रखा गया जहां तमाम सुविधाएं मौजूद थीं। इंदिरा गांधी को जब इसका पता चला तो उन्होंने राजमाता को तत्काल तिहार जेल शिफ्ट करने का निर्देश दिया। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री के निर्देश पर उनके महल जयविलास पैलेस पर इनकम टैक्स अधिकारियों की टीम छापा मारने पहुंच गई।

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जयविलास पैलेस में इनकम टैक्स का छापा
इनकम टैक्स अधिकारी जब महल के अंदर पहुंचे तो उनकी आंखें फटी रह गईं। उस समय महल में केवल यशोधराराजे ही मौजूद थीं। यशोधरा ने अधिकारियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने महल का कोना-कोना छान मारा। महल के भंडार में सोने-चांदी का खजाना देखकर उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। 1991 में एक मैग्जीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों को वहां सोने के आभूषणों से भरे दर्जनों संदूक मिले थे। इसके अलावा करीब 53 क्विंटल चांदी भी मिला था।

कीमती चीजें अपने साथ ले गए अधिकारी
कहा जाता है कि सिंधिया परिवार की पुश्तैनी संपत्तियों में कई ऐसी चीजें थीं जिनका कोई हिसाब-किताब नहीं था। टैक्स अधिकारियों पर इनमें से कई चीजें ले जाने के आरोप भी लगे। बहुमूल्य आभूषणों के अलावा इनमें राजमाता के नाम पर बना एक राग भी था। उस्ताद अलाउद्दीन खाँ ने यह राग तैयार किया था। टैक्स अधिकारी इसे किसी गोपनीय दस्तावेज का कोड समझकर अपने साथ ले गए। छापे के बाद सरकार ने सिंधिया परिवार के खिलाफ आर्थिक अनियमितताओं के साथ सोने की तस्करी के आरोप लगाए। परिवार ने इसका विरोध किया, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई।

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जेल में बीमार हो गईं राजमाता
इधर, तिहार जेल में राजमाता का स्वास्थ्य खराब रहने लगा। पहले तीन महीने में ही उन्हें डायबिटिज हो गई। उनके बेटे और बेटियां राजमाता के पैरोल के लिए लगातार प्रयास करते रहे, लेकिन सरकार राजी नहीं थी। राजमाता ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनकी बेटियों ने इंदिरा गांधी से भी संपर्क करने की कोशिश की। इसी दौरान इंदिरा के एक करीबी ने वसुंधराराजे को लेकर अश्लील टिप्पणी भी की थी। उसकी पहचान भी हो गई, लेकिन बाद के दिनों में भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि कोई सबूत उपलब्ध नहीं था।

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अघोषित शर्त से मिली जेल से छुट्टी
करीब छह महीने तक तिहार में रहने के बाद राजमाता को जेल से रिहाई मिली। इसमें माधवराव सिंधिया ने बड़ी भूमिका निभाई थी। माधवराव ने सीधे संजय गांधी से संपर्क साधा। इससे उनकी भारत वापसी का रास्ता तैयार हुआ। दरअसल, संजय गांधी का मानना था कि चंबल क्षेत्र में जनसंघ की जड़ों को काटने में माधवराव अहम भूमिका निभा सकते हैं। अपनी वापसी के बाद माधवराव ने राजमाता की रिहाई के लिए कोशिशें शुरू की। यह मुश्किल काम था क्योंकि राजमाता उस समय विपक्ष की शीर्ष नेताओं में शामिल थीं। काफी जद्दोजहद के बाद केंद्र सरकार इस शर्त पर उन्हें छोड़ने को तैयार हुई कि वे राजनीति से दूर रहेंगी। जेल से छूटने के बाद राजमाता ने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि उनका राजनीति से अब कोई लेना-देना नहीं। हालांकि, वे ज्यादा समय तक इस अघोषित समझौते पर टिकी नहीं रह सकी। 1980 में उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ ही रायबरेली से लोकसभा का चुनाव लड़ा और फिर बीजेपी की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई।

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