आनंद मोहन के दर्जनों साथी-शिष्य सांसद, विधायक और मंत्री बन गए लेकिन रिहाई तब मिली जब बेटा चेतन MLA बना

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आनंद मोहन के दर्जनों साथी-शिष्य सांसद, विधायक और मंत्री बन गए लेकिन रिहाई तब मिली जब बेटा चेतन MLA बना

आनंद मोहन के दर्जनों साथी-शिष्य सांसद, विधायक और मंत्री बन गए लेकिन रिहाई तब मिली जब बेटा चेतन MLA बना

कोसी के बाहुबली और बिहार के चर्चित समाजवादी राजपूत नेता आनंद मोहन गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद काटकर सहरसा की जेल से रिहा हो गए हैं। तैयारी जेल से निकलने के बाद भव्य रोड शो और दिव्य शक्ति प्रदर्शन की थी जिससे दो दशक बाद वो फिर से राजनीति में सक्रिय होने की भूमिका लिख सकें लेकिन अपनी रिहाई पर विवाद बढ़ने के बाद सुबह 4 बजे अंधेरे में खामोशी से कैद से रिहा हो गए। 

1990 में जनता दल विधायक के तौर पर चुनावी जीत से पहले आनंद मोहन समाजवादी क्रांतिकारी सेना नाम से एक संगठन चलाते थे। ये संगठन असल में आनंद मोहन की एक प्राइवेट आर्मी थी जिसमें ज्यादातर कोसी इलाके के राजपूत नौजवान थे। 90 के दशक में बिहार में उभरे सारे नेताओं में आनंद मोहन के क्रेज का कोई टक्कर नहीं था।

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आनंद मोहन ने 1993 में जब बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा) नाम से दल बनाया तो चमक-दमक बॉलीवुड के एक हीरो से कम नहीं थी। आनंद मोहन ऐसे समाजवादी नेता बने जिन्हें राजपूत और सवर्ण युवाओं में खासी लोकप्रियता हासिल हुई। मंडल कमीशन के दौर की राजनीति में लालू यादव के खिलाफ आग उगलने वाले इस नौजवान नेता के पीछे संयुक्त बिहार (तब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था) के कई नेता हो लिए।

आनंद मोहन शिवहर से सांसद तो 1996 और 98 में बन गए लेकिन 1994 के डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में जब कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ी तो उनकी उड़ान पर ब्रेक लग गया। आनंद मोहन पीछे छूट गए, जेल चले गए, सजा हो गई। लेकिन उनके साथी और शिष्य रहे कई नेता समय के साथ कांग्रेस से भाजपा तक सेट हो गए। कोई विधायक बन गया, कोई सांसद बन गया, कोई केंद्र में तो कोई राज्य में मंत्री बन गया।

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आनंद मोहन राष्ट्रीय राजनीति में चंद्रशेखर के प्रियपात्र थे। दिल्ली की सत्ता में बैठा कोई बड़ा राजपूत नेता नहीं था जो आनंद मोहन के लिए स्नेह नहीं रखता था। बिपीपा के संस्थापक रहे प्रभुनाथ सिंह, राजीव प्रताप रूडी ऐसे नेताओं में सबसे आगे हैं। प्रभुनाथ सिंह भी इस समय जेल में एक विधायक की हत्या के केस में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। आनंद मोहन के बाद उनकी रिहाई की मांग भी उठ रही है।

कोसी क्षेत्र में नेता बन चुके किशोर मुन्ना और नीरज कुमार सिंह बबलू उस समय उनके साथ थे। नीरज अब बीजेपी में हैं और नीतीश की पिछली एनडीए सरकार में मंत्री भी थे। कभी आनंद मोहन के साथ रहे सफल नेताओं में मतंग सिंह, अशोक सिंह, वीरेंद्र सिंह, विनोद सिंह, दिनेश सिंह, अच्युतानंद सिंह, राणा रत्नाकर सिंह, दमयंती देवी, सतीश पासवान, रेणु पासवान, विजय मंडल, जय कुमार सिंह, ललन पासवान, सुभाष सिंह, पन्ना लाल पटेल जैसे नाम शामिल हैं। इनमें कई बिहार में मंत्री रह चुके हैं। 

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नीतीश सरकार की मौजूदा मंत्री लेसी सिंह के पति बूटन सिंह भी बिपीपा के नेता थे जिनकी हत्या हो गई। झारखंड में मौजूदा मंत्री बन्ना गुप्ता के अलावा भानु प्रताप शाही और कमलेश सिंह भी आनंद मोहन के साथी रहे हैं। अपने संगी-साथी रहे इतने नेताओं के विधायक और मंत्री बनने के बाद भी आनंद मोहन की रिहाई की फाइल तब चली जब बेटा चेतन आनंद शिवहर से आरजेडी के टिकट पर विधायक बना।

आनंद मोहन की रिहाई को प्रशासनिक फैसला बताया जा रहा है लेकिन यह शुद्ध रूप से राजनीतिक फैसला ही दिखता है जिसकी भूमिका महागठबंधन में जेडीयू की वापसी से बनी। दबाव आरजेडी का रहा हो या खुद नीतीश कुमार 2024 के चुनाव के लिए जातीय समीकरण साध रहे हैं, लेकिन नतीजा यही निकला कि आनंद मोहन जेल से रिहा हो गए।

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नीतीश सरकार ने सरकारी सेवकों की हत्या में उम्रकैद काट रहे कैदियों को छूट नहीं मिलने की शर्त जेल नियम से हटा दी। नियमों में इस बदलाव से आनंद मोहन के साथ दो दर्जन से ज्यादा लोग छूटे। रिहाई पर विवाद के बीच किसी नेता या मंत्री के बदले सरकार की तरफ से राज्य के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को आगे किया गया। चीफ सेक्रेटरी सुबहानी ने कहा कि लोकसेवक और आम नागरिक की हत्या के मामले में कोई अंतर रखना सही नहीं है, इसलिए नियम में बदलाव किया गया है।

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