अलविदा 2023 : जैविक खेती में भरी लम्बी उड़ान, आयस्टर मशरूम के उत्पादन में किया कमाल

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अलविदा 2023 : जैविक खेती में भरी लम्बी उड़ान, आयस्टर मशरूम के उत्पादन में किया कमाल

अलविदा 2023 : जैविक खेती में भरी लम्बी उड़ान, आयस्टर मशरूम के उत्पादन में किया कमाल

अलविदा 2023 : जैविक खेती में भरी लम्बी उड़ान, आयस्टर मशरूम के उत्पादन में किया कमाल
22 समूहों को मिला सी-3 सर्टिफिकेट तो देश के बड़े शहरों तक पहुंचने लगे उत्पाद

रंग लायी किसानों की मेहनत, वर्ष 2023 में कृषि के क्षेत्र में हुए कई बेहतर कार्य

फोटो

किसान : खेत में काम करते किसान।

बिहारशरीफ, कार्यालय प्रतिनिधि।

नालंदा प्राचीन काल से ही शिक्षा का केन्द्र रहा है। कृषि के क्षेत्र में भी यहां कई कीर्तिमान गढ़े गये हैं। वर्ष 2023 की बात करें तो मेहनती किसानों ने परंपरागत खेती के साथ ही जैविक खेती में लम्बी उड़ान भरी है। आयस्टर मशरूम के उत्पादन में तो पूरे बिहार के जिलों को पीछे छोड़ अव्वल स्थान पर कब्जा जमाया है। केला की खेती हो या गेंदा फूल की, सभी में अपने हुनर का लोहा मनवाया है। मगही पान की खेती में तो इस्लामपुर के किसानों की कोई सानी ही नहीं है। हरनौत व चंडी के कई गांवों के किसानों ने जलवायु अनुकूल खेती में महारथ हासिल की है। फसल चक्र को अपनाकर साल में एक खेत से दो की जगह तीन फसलों का उत्पादन कर रहे हैं।

जैविक कॉरिडोर से जुड़े किसानों की तीन साल की मेहनत रंग लायी तो 28 समूहों को सी-3 सर्टिफिकेट मिला है। अब नालंदा की जैविक सब्जियां देश के बड़े शहरों में भी बिकने लगी हैं। आठ प्रखंडों के 2407 किसानों द्वारा 1899.05 एकड़ में आर्गेनिक विधि से खेती की जा रही है। इतना ही नहीं साल इसी रबी सीजन दो हजार हेक्टेयर में और जैविक खेती शुरू की गयी है। हालांकि, बाजार की कमी किसानों को जरूर खल रही है।

बनाते हैं पकौड़ा, अचार और सुखौता:

आयस्टर मशरूम के उत्पादन में नालंदा पहले पायदान पर है। बटन मशरूम का उत्पादन भी ठीकठाक होता है। किसानों की मानें तो सीजन यानी अक्टूबर से अप्रैल तक रोज जिले में करीब एक हजार किलो आयस्टर मशरूम का उत्पादन होता है। अमूमन हर गांव के 10 से 12 किसान खेती से जुड़े हैं। खासकर महिलाएं। यहां तैयार मशरूम की मांग राजधानी पटना तक है। खास यह भी कि मशरूम का पकौड़ा, अचार और पावडर बनाते हैं। साथ ही सुखौता तैयार कर सालोभर बेचते हैं।

सालोंभर होने लगी फूलगोभी की खेती :

सोहडीह, आशानगर और बबुरबन्ना के किसानों ने नये-नये प्रयोगों के बूते कृषि के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कमाल यह कि दो एकड़ से ज्यादा में फूलगोभी की खेती ठंड ही नहीं, अब सालोंभर की जाने लगी है। इससे ऑफ सीजन में फूलगोभी के लिए झारखंड पर निर्भर खत्म हो गयी है। किसानों को यह सफलता अपनी मेहनत, नालंदा उद्यान महाविद्यालय के वैज्ञानिकों की सलाह और रासायनिक की जगह वर्मी कम्पोस्ट के संतुलित मात्रा में इस्तेमाल से मिली है।

धरातल पर नहीं उतरा तेलहन क्लस्टर:

तेलहन की खेती का रकवा और उत्पादन बढ़ाने के लिए जिले के 25 गांवों में तेलहन क्लस्टर बनाया गया था। 106 गांवों में तेलहनी क्षेत्र का विस्तार होना था। तिल, मूंगफली, सूर्यमुखी और सोयाबीन की खेती बड़े पैमाने होनी थी। साल की शुरुआत में ही सर्वे के बाद गांवों का चयन किया गया था। विडंबना यह कि दिसंबर खत्म होने वाला है। लेकिन,योजना फाइलों में ही धूल फांक रही हैं। मक्का क्लस्टर का हाल भी ठीक नहीं रहा। मोटे अनाज की खेती के लिए 20 प्रखंडों को मिलाकर चार हजार हेक्टेयर में खेती की योजना बनी थी। सौ फीसद अनुदान पर बीज दिये गये थे। लेकिन, महज 26 फीसद यानी 1,047.54 हेक्टेयर में ही खेती की गयी। सोहडीह में पैक हाउस तो बना। लेकिन, आलू से चिप्स बनाने की मशीनें नहीं लगी।

नये साल में 4 कृषि फॉर्मों का होगा कायाकल्प :

नये साल में जिले के कृषि फॉर्मों (बीज गुणन प्रक्षेत्र) के कायाकल्प होंगे। हलवाहा के रहने के लिए आवास बनेंगे। सिंचाई के लिए नयी बोरिंग करायी जाएगी। सुरक्षा के लिए पुरानी चहारदीवारी को तोड़कर नयी बनायी जाएगी। विजवनपर, सरमेरा, गिरियक और एकंगरसराय में कृषि फॉर्म हैं। कुल रकवा करीब 23 हेक्टेयर है। करीब 17.6 हेक्टेयर में खेती की जाती है। साथ ही सरमेरा में दलहन तो सिलाव में गेहूं बीज उत्पादन का हब भी बनेगा। 12 स्पेशल कस्टम हायरिंग सेंटर, 19 कस्टम हायरिंग तो पिछड़े इलाके में पांच कृषि यंत्र बैंक बनाने की योजना धरातल पर उतरेगी।

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