अमरिंदर सिंह को हराकर भी क्यों हार गए सिद्धू? पढ़ें- पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी

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अमरिंदर सिंह को हराकर भी क्यों हार गए सिद्धू? पढ़ें- पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की इनसाइड स्टोरी

कुछ दिनों पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस नवजोत सिंह सिद्धू के विरोध और अदावत के चलते पद से हटना पड़ा था, अब खुद उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। सोनिया गांधी के नाम लिखे इस्तीफे में सिद्धू ने एक बार फिर से वही बात कही है कि पंजाब के हितों को नजरअंदाज होते नहीं देख सकता। उनकी यह टिप्पणी कमोबेश वैसी ही है, जैसी वह अमरिंदर के दौर में किया करते थे। पर सवाल यह है कि अमरिंदर सिंह की विदाई के बाद भी वह किसे पंजाब की भलाई के लिए रोड़ा मान रहे हैं। 

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि दरअसल वह खुद सीएम बनना चाहते थे, लेकिन दलित चेहरे चन्नी के नाम पर वह पीछे हटने को तैयार हो गए थे। लेकिन वह सुपर सीएम के तौर पर रहना चाहते थे, जिसके तहत उनकी कैबिनेट नियुक्ति, प्रशासनिक नियुक्तियों और अन्य मामलों में राय ली जाए। कहा जा रहा है कि सिद्धू को इन मामलों में नजरअंदाज किया गया और उसके नतीजे में उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। यह एक तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हराकर खुद भी कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में उनके लिए हार झेलने जैसा है। आइए जानते हैं, क्या है नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे की अहम वजहें…

विधायक राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बनाए जाने का सिद्धू ने विरोध किया था। लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनकी बात नजरअंदाज की और उन्हें मंत्री पद दिया गया। सिद्धू का कहना था कि राणा गुरजीत के ऊपर करप्शन के आरोप हैं। उनकी ओर से अंतिम समय तक विरोध किया गया था, लेकिन दरकिनार कर दिया गया।

नवजोत सिंह सिद्धू अपने करीबी कई नेताओं को कैबिनेट में देखना चाहते थे, लेकिन परगट सिंह और रजिया सुल्ताना के अलावा किसी और को मौका नहीं दिया गया। कहा जा रहा है कि कैबिनेट के गठन के वक्त से ही सिद्धू खुद को किनारे लगा महसूस करने लगे थे और अंत में इस्तीफा भी दे दिया। अब खुद रजिया सुल्ताना ने भी उनके समर्थन में कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है।

राज्य में महाधिवक्ता के पद पर एपीएस देओल को चुना गया है, जिन्होंने पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी का केस कोर्ट में लड़ा था। बेहबल कलां फायरिंग केस के मामले में वह कानूनी जंग में उतरे थे। सिद्धू इनके भी विरोध में थे, लेकिन हाईकमान ने यहां भी उनकी राय को महत्व नहीं दिया।

नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में कहा जा रहा है कि वे सुखजिंदर रंधावा की जगह खुद को सीएम देखना चाहते थे। ऐसे में हाईकमान ने किसी जाट सिख को चुनने की बजाय दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव लगाया। पार्टी को उम्मीद थी कि इससे सिद्धू राजी हो जाएंगे, लेकिन जब रंधावा को होम मिनिस्ट्री का जिम्मा मिला तो वह एक बार फिर से भड़क गए। 

कहा जा रहा है कि हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को सीधे तौर पर कहा दिया था कि वे सुपर सीएम बनने की बजाय प्रदेश के संगठन को मजबूत करने पर फोकस करें। इस बात को सिद्धू ने अपने खिलाफ समझा क्योंकि वह सरकार में भी अपना पूरा दखल चाहते थे। 



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