बिटिया को है पढ़ाने की ख्वाहिश, लेकिन गरीबी ने किया लाचार

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बिटिया को है पढ़ाने की ख्वाहिश, लेकिन गरीबी ने किया लाचार
बिटिया को है पढ़ाने की ख्वाहिश, लेकिन गरीबी ने किया लाचार

गरीबी समाज की एक ऐसी विडम्बना है, जिससे चाहकर भी इंसान ऊबर नहीं पाता है। गरीबी इंसान से क्या कुछ नहीं करवा देती है, इस बात से तो शायद ही कोई बेखबर होगा। गरीबी सिर्फ इंसान को ही नहीं तोड़ती है, बल्कि उससे सपने देखने का अधिकार भी छीन लेती है। कौन कहता है कि गरीब इंसान को दर्द नहीं होता है, साहेब सच्चाई तो यही कि गरीबी उसे हर दर्द को सहन करना सीखा देती है। मौत तो सिर्फ मरने के बाद ही दुनिया से जुदा करती है, लेकिन गरीबी इंसान को जीते-जी दुनिया से बेखबर कर देती है।

हमारे देश में गरीबों के क्या हालात है, इससे भी कोई बेखबर नहीं होगा। आज हम आपको देश की राजधानी दिल्ली में गरीबी ने किस तरह से एक माँ को लाचार किया है, इससे रूबरू कराएंगे। जी हाँ, देश की राजधानी दिल्ली के यमुना नदी के किनारे रहने वाली एक महिला गरीबी से इतनी लाचार है कि उसने दिल्ली के सीएम केजरीवाल से मदद की गुहार तक लगा डाली। दरअसल, दिल्ली की ये महिला अपनी बिटिया को पढ़ाना चाहती है, लेकिन साहेब उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वो अपनी लाडली का एडमिशन किसी स्कूल में करा सके। आपको बता दें कि ये अकेली नहीं है, जो अपनी बच्ची का एडमिशन नहीं करा पा रही है, इसके साथ मोहल्लें के दर्जनों लोग है, जो अपने बच्चों का दाखिला नहीं करा पा रहे है।

दिल्ली में यमुना के किनारे रहने वाले चिल्ला खादर इलाके के दो दर्जन से ज्यादा परिवारों के बच्चों का स्कूल में एडमिशन नहीं हो पा रहा है। दरअसल, ये ऐसे परिवार है, जो दो-जून की रोटी के लिए भी मोहताज है, लेकिन इनकी ख्वाहिश है कि ये अपने बच्चों को पढ़ाये।

गरीबी से लाचार माँ को, जब कोई और रास्ता नहीं सूझा, तो उसने दिल्ली के सीएम केजरीवाल से मदद की गुहार लगा दी। लाचार माँ ने दिल्ली के सीएम केजरीवाल से कहा कि “केजरीवाल जी, मैं आपको अपने सारे पैसे दे दूंगी, बस आप मेरी बेटी का एडमिशन करवा दीजिए।” तो देखा आपने गरीबी ने किस तरह से इस माँ के साथ दर्जनों परिवार के लोगों को विवश कर रखा है।

यहाँ सवाल सरकार की व्यवस्था पर भी खड़ा होता है, क्योंकि हर साल देश-प्रदेश के बजट में शिक्षा के बजट को ज्यादा रखा जाता है, लेकिन फिर भी ये बच्चे पढ़ नहीं पाते है? ऐसा क्यों होता है, आखिर इन लाचार और विवश परिवार के बच्चें अपने सपनों को पूरा क्यों नहीं कर पाते है? सरकार की क्या बस इतनी सी जिम्मेदारी बनती है कि वह सिर्फ बजट पास करे दे, उसके बाद क्या वो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाती है? दिल्ली सरकार शिक्षा के लिए किये गये कामों का गुणगान करती फिरती है, तो फिर क्यों इस तरह के मामलें सामने आते है, क्यों नहीं पढ़ पा रहे है ये बच्चें। क्या सरकार सिर्फ दिखावा कर रही है? मानवीय केजरीवाल जी, आखें खोलिए आप इन दर्जनों परिवारों की मदद कीजिए, वरना जनता शायद ही आपको कभी माफ करेगी!