क्यों पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से तृणमूल कांग्रेस के नेता खफा है?

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किये जाने की मांग की है. 23 जनवरी को नेताजी की 125वीं जयंती मनायी है . साल ये तारीख खास तौर पर महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जा रही है क्योंकि उसके कुछ ही दिन बाद अप्रैल-मई में विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव होने हैं.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जहां सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखी है, वहीं बीजेपी खड़े होने की जगह मिल जाने के बाद बंगाली की धरती पर पांव जमाने के प्रयास में जी जान से जुटी हुई है. बीजेपी ने बंगाल को चार क्षेत्रों में बांट कर हर क्षेत्र के लिए प्रभारी तय कर दिये हैं – और बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष के मुताबिक, चुनाव होने तक हर महीने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सूबे का हर महीने बारी बारी दौरा करने वाला है. हालांकि, बीजेपी नेताओं के दौरे की तारीख अभी फाइनल नहीं हुई है.

ममता बनर्जी के लिए 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उनके अस्तित्व से जुड़ा माना जा रहा है. 2019 के आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 लोक सभा सीटें जीत कर बीजेपी ने तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ अपनी ताकत और इरादे दोनों का इजहार कर दिया है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी कर लेती हैं तो बात अलग होगी, वरना, वो भी मायावती, अखिलेश यादव, चंद्रबाबू नायडू और बादल परिवार की तरह अगले पांच साल तक जूझती नजर आएंगी. यही वजह है कि लोक सभा चुनाव की शिकस्त के फौरन बाद ही ममता बनर्जी ने भारत में ठेके पर चुनाव जिताने वाले प्रशांत किशोर को हायर किया है – लेकिन पश्चिम बंगाल से जो खबरें आ रही हैं, ऐसा लगता है जैसे प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का कामकाज से बीजेपी (BJP) की राह आसान होने लगी है।

पश्चिम बंगाल में तृणमूल की चुनावी मुहिम संभालने के बाद, प्रशांत किशोर बीजेपी के खिलाफ दिल्ली में एक सफल पारी खेल चुके हैं – मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सत्ता में वापसी करा कर. दिल्ली चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर जिस तरीके से CAA-NRC पर आवाज उठाकर सियासी माहौल गढ़ रहे थे, उससे निजी तौर पर उनको को काफी नुकसान हुआ लेकिन उनका बिजनेस चमकता ही गया.

चुनावों में संयम की सलाहियत के चलते अरविंद केजरीवाल तो कम ही बोले, लेकिन ममता बनर्जी के साथ साथ पूरा कांग्रेस नेतृत्व हरकत में आ गया था – और इसे लेकर ट्विटर पर शुकराने के एक्सचेंज भी देखने को मिला था. प्रशांत किशोर के साथ निजी तौर पर बुरा इसलिए भी हुआ क्योंकि नीतीश कुमार ने उनको न सिर्फ जेडीयू उपाध्यक्ष पद से हटाया बल्कि पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया.

जेडीयू नेताओं से सियासत के सबक सीखने की बात करना प्रशांत किशोर का कटाक्ष था – और अब तो ऐसा लग रहा है जैसे पश्चिम बंगाल के सीनियर तृणमूल कांग्रेस नेता भी वैसी पीड़ा का अनुभव कर रहे हों. जगह जगह टीएमसी नेता प्रशांत किशोर के कामकाज के प्रति अपनी नाराजगी खुलेआम प्रकट करने लगे हैं.

कूचबिहार के विधायक मिहिर गोस्वामी ने तो बाकायदा पोस्ट लिख कर सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार किया है, ‘क्या तृणमूल कांग्रेस सचमुच ममता बनर्जी की पार्टी है… ऐसा लग रहा है कि इस पार्टी को किसी कॉन्ट्रैक्टर के हाथ में सौंप दिया गया है…’

दरअसल, प्रशांत किशोर की सलाह पर ममता बनर्जी ने इसी साल जुलाई में टीएमसी में फेरबदल शुरू किया था. बड़े पैमाने पर ऐसे फेरबदल राज्य समिति के साथ साथ जिला और ब्लॉक समितियों में भी किये गये और नेताओं की नाराजगी बढ़ने के साथ साथ ममता बनर्जी के सामने ये नयी चुनौती के तौर पर खड़ी होती जा रही है.

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