दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना रहा है. यह शहर मुख्य रूप से दिल्ली सल्तनत काल के समय सत्ता का केंद्र बना. अनेंक शासकों ने इस क्षेत्र पर राज किया. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब यह शहर मुर्दों के शहर के रूप में तबदील हो गया था.
आज से कुछ सौ सालों पहले मुगलों की राजधानी रही दिल्ली पर विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया. यह आक्रमणकारियों की फौज फारस अर्थात आधुनिक ईरान की थी. उस समय इसका नेतृत्व वहां के बादशाह नादिर शाह कर रहा था. मुगल सेना और नादिरशाह की सेना के बीच यह लड़ाई करनाल में हुई. जिसमें मुगलों की सेना बुरी तरह पराजित हुई. इस लड़ाई में नादिरशाह की जीत हुई. इसके साथ ही नादिरशाह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया.
इसी समय दिल्ली में एक अफवाह फैल गई कि फारस के आक्रमणकारियों के बादशाह नादिरशाह ने मुगल शहंशाह मुहम्मद शाह की हत्या कर दी. अपने बादशाह की हत्या से नाराज दिल्ली के लोगों ने नादिरशाह की सेना के कई सिपाहियों को मार ड़ाला. इसके साथ दिल्ली में बड़े स्तर पर दंगे भड़क गए.इस बात से नाराज फारस के बादशाह नादिरशाह ने दिल्ली के आम लोगों को मारने का आदेश दे दिया. इसके बाद फारस की सेना ने बड़े स्तर पर आम लोगों का कत्ले आम किया. मरने वालों की संख्या के बारे में विद्वानों में मतभेद है. लेकिन इतिहास में इस घटना को ‘कत्ले आम’ के तौर पर जाना जाता है.
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फारस, वर्तमान ईरान के शासक नादिरशाह ने भारत पर मार्च,1739 में आक्रमण किया. इसके इस आक्रमण में ब़ड़ी संख्या में आम लोग भी मौत का शिकार हो गए. इतन बड़े स्तर पर कत्ले आम होने के कारण यह कहा जाता है कि नादिरशाह ने मुगलों की राजधानी दिल्ली को मुर्दों का शहर बनाया दिया था. जिसमें चारों तरफ सिर्फ लाश ही लाश दिखाई दे रही थी