तो क्या नेताजी थे देश के पहले प्रधानमंत्री?

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तो क्या नेताजी थे देश के पहले प्रधानमंत्री?
तो क्या नेताजी थे देश के पहले प्रधानमंत्री?

क्या देश के इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है? जी हाँ, आज हम आपको एक ऐसी खबर से रूबरू कराने जा रहे है, जिससे आपके मन में भी यही सवाल खड़ा हो सकता है कि क्या वाकई देश के इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है? खैर, देश के इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा। आइये खबर पर गौर करते है, आखिर किसने कहा की देश के इतिहास को दोबार लिखा जाना चाहिए। देश के पहले पीएम नेहरू नहीं बल्कि सुभाषचंद्र बोस थे।

जी हाँ, आपने सही पढ़ा, एक ऐसा शख्स है, जिसने कहा है कि देश के इतिहास को दुबारा लिखने की जरूरत है। उफ्फ, आपके सस्पेंस को खत्म करते है। खबर के मुताबिक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र बोस का कहना है कि इतिहास को दोबारा लिखे जाने की जरूरत है, क्योंकि नेताजी देश के पहले प्रधानमंत्री थे न कि जवाहर लाल नेहरू। आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र बोस के मुताबिक नेताजी आजाद हिंद फौज के प्रमुख थे और उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप में भारत का झंडा लहराया था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि नेताजी भारत के पहले प्रधानमंत्री थे भले ही निर्वासित सरकार के पीएम थे। उन्होंने यह भी कहा कि 1947 को दूसरी बार झंडा फहराया गया था। कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इतिहास में जबरदस्ती ये तथ्य छुपाए थे।

साथ ही नेताजी के प्रपोत्र चंद्र बोस ने अंडमान-निकोबार द्वीप का नाम बदलकर शहीद और स्वराज द्वीप रखे जाने की मांग करते हुए कहा कि सुभाष चंद्र बोस ने यही नाम रखा था। आपको बता दें कि स्वाधीनता संग्राम के नेता सुभाष का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के यहां हुआ था। नेताजी ने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया, जिससे भारतीय युवाओं में एक नया जोश भर गया था, अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने के कारण सुभाष को कुल 11 बार जेल जाना पड़ा। आपको यह भी बता दें कि सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई, 1921 को छह महीने जेल में रहने की सजा सुनाई गई थी।

सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को मंचूरिया की ओर जा रहे थे, तभी उनका विमान लापता हो गया और फिर नेताजी कभी नजर नहीं आए। आपको याद दिला दें कि 23 अगस्त, 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन आते वक्त 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें नेताजी गंभीर रूप से जल गए और ताइहोकू सैन्य अस्पताल में नेताजी ने दम तोड़ दिया था, हालांकि इस घटना की पूरी तरह से कभी पुष्टि नहीं हो पाई और यह रहस्य ही बनकर रह गया।

बहरहाल, देश का इतिहास दोबारा लिखा जाना चाहिए या नहीं, यह तो सरकार पर निर्भर करता है, लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि अभी तक कहां थे नेताजी के प्रपोत्र।