सवाल 48 – जलियांवाला बाग हत्याकांड के प्रतिशोध में किस क्रांतिकारी की भूमिका रही ?

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सवाल 48 - जलियांवाला बाग हत्याकांड के प्रतिशोध में किस क्रांतिकारी की भूमिका रही ?

जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रतिशोध लेने वाला क्रांतिकारी ऊधम सिंह था. जिनका जन्म 29 दिसम्बर 1869 में हुआ था. सरदार टहल सिंह के घर में उनका जन्म हुआ.ऊधम सिंह के माता−पिता की मृत्यु बहुत ही कम समय में हो गई थी. जिस वजह से उनका पालन पोषण घर के अन्य सदस्यों ने किया था. काफी समय बाद वह अपने छोटे भाई के साथ अमृतसर के पुतलीघर में रहने लगे थे. जहां एक समाजसेवी ने उनकी सहायता की थी.


बता दें कि 16 साल की उम्र में ही उन्होंने अमृतसर के जलियांवाला बाग के नरसंहार को अपनी आँखों से देखा था. जिसके बाद वे सभी लोगों के घटनास्थल से चले जाने के बाद वे वहां फिर से गये और वहां की मिट्टी को अपने माथे पर लगाकर इस कांड में शामिल हुए सभी से बदला लेने की प्रतिज्ञा ली थी.


ऊधम सिंह ने अमृतसर में एक दुकान भी किराये पर ली. अपने संकल्प से संबंधित कार्य को पूरा करने के लिए वे अफ्रीका से अमरीका गये जिसके बाद 1923 में इंग्लैंड पहुंचे. वहां पर पहुंचकर उनका सामना उन क्रूर अफसरों से हुआ था जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था.


1928 में वे भगत सिंह के कहने पर भारत वापस आ गये. लेकिन लाहौर में उन्हें शस्त्र अधिनियिम के उल्लंघन के आरोप में पकड़ लिया गया और चार साल की सजा सुनाई गई. जिसके बाद वह फिर इंग्लैंड चले गये.


13 मार्च 1940 को वह शुभ दिन आ ही गया जब ऊधम सिंह को अपना संकल्प पूरा करने का अवसर मिला. इंग्लैंड की राजधानी लंदन के कैक्स्ट्रन हाल में एक सभा होने वाली थी. इसमें जलियांवाला बाग के कांड में शामिल दो लोग सर माइकेल, ओ डायर और भारत के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट लॉर्ड जेटलैंड आने वाले थे.


ऊधम सिंह चुपचाप मंच की कुछ दूरी पर जाकर बैठ गये और उचित अवसर का इंतजार करने लगे थे. सर माइकेल और ओ डायर ने भारत के खिलाफ खूब जहर उगला. जैसे ही उनका भाषण पूरा हुआ ऊधम सिंह ने उनके सीने पर गोलियां चला दी. गोली लगने के वजह से वह वहीं गिर गये थे.


गोलियां चलने की वजह से वहां पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया. एक को तो ऊधम सिंह ने गोली मारी, लेकिन दूसरा वहां से फरार हो गया. गोलियां चलाने के बाद ही ऊधम सिंह ने खुद को आत्मसमर्पण कर दिया. जिसके बाद न्यायालय में उन पर लगे सभी आरोपो को उन्होंने स्वीकार किया.

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उनका कहना था कि वह 21 सालो से प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे थे. जिसका मैंने विरोध किया था. बता दें कि न्यायालय के आदेश पर 31 जुलाई 1940 को पेटनविला जेल में ऊधम सिंह को फांसी हो गई.