राजनीती में धर्म का हस्तक्षेप होना चाहिए या नहीं?

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धर्म सदियों से मानवता को बढ़ा रहा है। अब जो भी आदमी है, उसकी जो थोड़ी-सी चेतना है, उसका पूरा श्रेय धर्म को जाता है। राजनीति एक अभिशाप, एक आपदा रही है; और मानवता में जो कुछ भी बदसूरत है, उसके लिए राजनीति जिम्मेदार है।लेकिन समस्या यह है कि राजनीति में शक्ति है; धर्म में केवल प्रेम, शांति और परमात्मा का अनुभव है। राजनीति आसानी से धर्म के साथ हस्तक्षेप कर सकती है; और इस हद तक कि इसने कई धार्मिक मूल्यों को नष्ट कर दिया है जो इस समय मानवता और जीवन के अस्तित्व के लिए बिल्कुल आवश्यक हैं।

धर्म में परमाणु हथियारों और परमाणु बम और बंदूकों जैसी कोई सांसारिक शक्ति नहीं है; इसका आयाम बिलकुल अलग है। धर्म सत्ता की इच्छा नहीं है; धर्म सत्य की खोज है। और बहुत खोज धार्मिक आदमी को विनम्र, सरल, निर्दोष बनाती है।राजनीती को धर्म के साथ जोड़ने से तमाम तरह की धार्मिक द्वेष समाज में फैल रहा है। जिसको खत्म करना जरुरी है।

राजनीति में सभी विनाशकारी हथियार हैं जिससे धर्म बिल्कुल कमजोर हो रहा है । राजनीति का कोई हृदय नहीं है वहीं धर्म शुद्ध हृदय है।राजनीति एक पत्थर की तरह है, मृत, लेकिन पत्थर फूल को नष्ट कर सकता है और फूल की कोई रक्षा नहीं है। राजनीति आक्रामक है।बेवकूफ राजनेताओं पर धर्म हावी होने की अनुमति नहीं दी जा सकती। स्थिति यह है कि अगर बीमार लोग चिकित्सकों पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें यह निर्देश देना चाहिए कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। इसे स्वीकार करें बीमार लोग बहुमत में हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि चिकित्सक को बहुमत से हावी होना चाहिए।

चिकित्सक घावों को ठीक कर सकता है, मानवता की बीमारियों को ठीक कर सकता है। धर्म चिकित्सक है।राजनेता सभी जीवन को नष्ट करने के लिए पर्याप्त विनाशकारी शक्ति बनाने में कामयाब रहे हैं; और वे अधिक से अधिक मानव को हथियार बना रहे हैं। राजनेता धर्म से सबक ले सकते हैं जब तक कि राजनेताओं के पास धार्मिकता का कुछ न हो, मानवता के लिए कोई भविष्य नहीं है।इसलिए राजनीती में धर्म का हस्तक्षेप कभी नहीं होना चाहिए।

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