पूजा अथवा पूजन किसी भगवान को प्रसन्न करने हेतु हमारे द्वारा उनका अभिवादन होता है। पूजा दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यहाँ भगवान को पुष्प आदि समर्पित किये जाते हैं जिनके लिये कई पुराणों से छाँटे गए श्लोकों का उपयोग किया जाता है। वैदिक श्लोकों का उपयोग किसी बड़े कार्य जैसे यज्ञ आदि की पूजा में ब्राह्मण द्वारा होता है। सर्वप्रथम प्रथमपूज्यनीय गणेश की पूजा की जाती है। गुरु की पूजा भगवान की पूजा में सबसे पहले गुरु की पूजा करनी चाहिए क्यूंकि हिन्दू धर्म में गुरु को सबसे पहला स्थान प्राप्त है।
गुरु यहां कोई नहीं है सभी गुरु के शिष्य हैं। गुरू एक है और वो है जगत गुरु शिव। जगतगुरु शिव के शिष्य होने के लिए कोई बंधन या वर्जना पूर्वोरोपित नहीं है। जगत का कोई भी व्यक्तिगत चाहे वह किसी संप्रदाय, जाति, लिंग, वर्ण एवं वर्ग का हो। गुरु पूजा का मतलब गुरु के आगे फल, फूल या नारियल चढ़ाना नहीं है, बल्कि यह दिव्यता को आमंत्रित करने की एक सूक्ष्म प्रक्रिया है। हम लोग इस काम को सरलतम तरीके से कर रहे हैं।
ध्यान और कर्मकांड में अंतर होता है। ध्यान पूरी तरह से आपका अपना काम होता है, जो अपने आप में विशिष्ट होता है। लेकिन अगर हम कर्मकांड मेंं सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं तो सभी लोग उसमें शामिल हो सकते हैं, हर व्यक्ति उसका आनंद व लाभ ले सकता है। अगर कर्मकांड को समुचित तरीके से किया जाए तो यह सबके लाभ के लिए एक जोशपूर्ण और शानदार तरीका है।
गुुरु पूजा व्यक्ति को पूर्ण रूप से विकल्पहीन बनाने का एक जरिया है। सभी कर्मकांड इसी तरह के हैं। आप खुद को एक प्रक्रिया में लगा दीजिए और फिर खुद को पूरी तरह से विकल्पहीन बना लीजिए। अगर आप ऐसे बन जाते हैं तो गुरु के पास भी फिर कोई विकल्प नहीं बचता। आप खुद को इस तरह से विकल्पहीन बनाएं कि उस दैवी शक्ति के पास भी कोई विकल्प न बचे।