अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है। उत्तरायण के समय जब धरती के उत्तरी गोलार्ध में सूरज की गति उत्तर की ओर होती है, तो एक ख़ास शिवरात्रि को मानव शरीर में उर्जाएं कुदरती तौर पर ऊपर की ओर जाती हैं। इस रात को महाशिवरात्रि कहा जाता है।
रात्रि के साथ शिव शब्द इसलिए जोड़ा गया क्योंकि शिव का अर्थ होता है वह जो नहीं है। सृष्टि का अर्थ है वह जो है। इसलिए सृष्टि के स्त्रोत को शिव नाम से जाना गया। शिव शब्द के अर्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण है वह ध्वनि जो की शिव शब्द से जुडी है। यह ध्वनि एक ख़ास ऊर्जा उत्पन्न करती है जो हमें सृष्टि के स्त्रोत तक ले जा सकती है। इसलिए शिव एक शक्तिशाली मन्त्र भी है।
एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।
आदि योगी, जिन्होंने योग की तकनीक सप्त ऋषियों के माध्यम से सारे विश्व तक पहुंचाई, को भी हम शिव कहते है हर महीने की सबसे अंधेरी रात शिवरात्रि होती है, यह अमावस्या से एक दिन पहले की रात होती है। साल में एक बार आने वाली इस शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।
खास तौर पर यहां, वेलंगिरि पहाडिय़ों में यह और भी ज्यादा है। आधुनिक विज्ञान में और काफी पहले से योग विज्ञान में यह बात सिद्ध हो चुकी है कि शून्य डिग्री अक्षांश से यानि विषुवत रेखा या इक्वेटर से तैंतीस डिग्री अक्षांश तक, शरीर के अंदर खड़ी अवस्था में जो भी साधना की जाती है, वह सबसे ज्यादा असरदार होती है।
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