जिस तरह किसी व्यक्ति के पास अपनी संपत्ति होती है. ठीक कुछ कंपनी या क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में आते हैं. जिनको हम सार्वजनिक क्षेत्र कह सकते हैं. जिनके उपर सरकार का नियंत्रण होता है. इनमें 50 से अधिक हिस्सा सरकार का होता है. निजीकरण में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को किसी निजी व्यक्ति या प्राइवेट संस्था को सौंप दिया जाता है. इसके लिए बोली लगाई जाती है. इससे सरकार को आए प्राप्त होती है.
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक सेवा के स्वामित्व के सार्वजनिक क्षेत्र (राज्य या सरकार) से निजी क्षेत्र (निजी लाभ के लिए संचालित व्यवसाय) या निजी गैर-लाभ संगठनों के पास स्थानांतरित होने की घटना या प्रक्रिया है. इसके लिए बोली लगाई जाती है तथा जो सबसे अधिक बोली लगाता है, उसकों इसके अधिकार बेच दिए गए हैं.
निजीकरण प्रक्रिया देश के हित में है या नहीं इस पर बहस होती रहती है. कुछ इसको देश के हित में बताते हैं तथा कुछ देश के हित में नहीं बताते. अगर राजनीतिक पार्टियों की बात करें, तो वो भी जब सत्ता में आती हैं, तो निजीकरण का समर्थन करने लगते हैं तथा जब विपक्ष में होते हैं, तो निजीकरण का विरोध करना शुरू कर देते हैं. इनके समर्थकों का मानना है कि सरकार का ध्यान राजनीतिक लक्ष्यों पर होना चाहिँए ना कि आर्थिक लक्ष्यों पर. निजीकरण के बाद सरकार राजनैतिक लक्ष्यों पर बेहतर तरीके से काम कर पाएगी. इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि प्राइवेट हो जाने के बाद काम में दक्षता आएगी.
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अगर इसके विरोध में तर्क की बात करें, तो उनका मानना है कि सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी में कर्मचारियों का इतना शोषण नहीं होता. इसके अलावा सरकार ने हद से ज्यादा निजिकरण कर दिया, तो सरकार के बराबर में पूंजीपतियों की एक सत्ता के जैसा आवरण बन जाएगा. जो किसी भी देश के हित में नहीं होता.