योग शिक्षा के प्रमुख नियम कौन-कौन से हैं ?

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योग
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योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और हमारे लिए बेहतर होता है, यदि हम इसको अपने दैनिक जीवन में शामिल कर पाएं. यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है. योग का अर्थ एकता या बांधना है. इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना. आध्यात्मिक स्तर पर इस जुड़ने का अर्थ है सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना. अगर इसके व्यावहारिक स्तर की बात करें तो योग शरीर, मन और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का एक साधन है.

योग साधना

महर्षि पतंजलि ने योग को आठ भागों (नियमों) में बांटा है जिसे अष्टांग योग कहा जाता है. जिनका वर्णन इस प्रकार है.  पहला नियम – यम : इसमें सत्य व अहिंसा का पालन करना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्या का पालन व ज्यादा चीजों को इकटा करने से बचना शामिल है. दूसरा नियम – नियम : ईश्वर की उपासना, स्वाध्याय, तप, संतोष और शौच महत्वपूर्ण माने गए हैं. तीसरा नियम – आसन : स्थिर की अवस्था में बैठकर सुख की अनुभूति करने को आसन कहते हैं. चौथा नियम –  प्राणायाम : सांस की गति को धीरे-धीरे वश में करना प्राणायाम कहलाता है.

योग साधना

पांचवा नियम –  प्रत्याहार : इन्द्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर आंतरिक विषयों में लगाने को प्रत्याहार कहते हैं. छटा नियम – आसन : स्थिर की अवस्था में बैठकर सुख की अनुभूति करने को आसन कहते हैं. सातवां नियम – प्राणायाम : सांस की गति को धीरे-धीरे वश में करना प्राणायाम कहलाता है. आठवां नियम – प्रत्याहार : इन्द्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर आंतरिक विषयों में लगाने को प्रत्याहार कहते हैं.

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अगर हम योग शिक्षा के इन आठों नियमों का पालन करते हैं. तो हम योग शिक्षा से अपने जीवन को खुशमय बना सकते हैं. इसके साथ ही भौतिक जीवन और अध्यात्मिक जीवन में अच्छा सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं.