श्रीराम चरित्र पर कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे गए हैं, लेकिन इसमें दो ग्रंथ प्रमुख माने जाते हैं. पहले वाले ग्रंथ को महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया है. जिसमें रामायण के इस पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक , 500 उपखंड, तथा 7 कांड है.
दूसरा ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया है. जिसे ‘श्री रामचरित मानस’ कहा गया. इसमें महर्षि वाल्मीकि की रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है, लेकिन श्रीराम के बारे में कुछ ऐसी बातें है जिनके बारे में शायद ही लोग जानते होगें. जिसका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में ही किया गया है.
रामायण के कुछ रहस्य
ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है. वहीं रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं और ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं.
रामायण में राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था. जिस यज्ञ को ऋषि ऋष्यश्रृंग ने पूरा किया था. बता दें कि ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था. जिनकी मृत्यु नदी में स्नान करते समय हो गई थी. उसी समय जल को एक हिरणी ने पी लिया, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था.
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई ‘रामायण’ में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं किया गया है. रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे, जहां विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम का शिवधनुष दिखाने के लिए कहा. जहां पर भगवान श्रीराम ने उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया. राजा जनक ने यह प्रण लिया था कि जो भी इस धनुष को उठा लेग उसी से वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करेगें.
विश्व विजय के बाद रावण कैलाश की और जा रहा था तभी उसे रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी. रंभा कुबेर के बेटे नलकुबेर के पास जा रही थी. जहां रावण ने उसे पकड़ लिया. तभी रंभा ने रावण से कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे के लिए हूं. इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया. जब इस बता का पता नलकुबेर को चला तो उसने रावण को श्राप दिया कि रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श नहीं कर सकेगा अगर उसने ऐसा किया तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे.
जिस समय भगवान श्रीराम वनवास गए थे. उस वक्त उनकी उम्र लगभग 27 वर्ष थी. वहीं राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वह वचनबद्ध थे. राजा दशरथ को जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह तक कह दिया कि हे राम तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ.
यह सभी जानते है कि लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा के नाक-कान काटे थे. जिसकी वजह से रावण ने क्रोध में आकर सीता का हरण किया था. लेकिन यह बहुत ही कम लोग जानते है कि स्वयं शूर्पणखा ने अपने भाई रावण को श्राप दिया था. दरअसल रावण ने शूर्पणखा के पति विद्युतजिव्ह वध किया था. जिसकी वजह से शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया था कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा.
जिस दिन रावण ने सीता का हरण किया और अपनी अशोक वाटिका में लाया था. उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए थे, खीर देने से पहले देवराज ने अशोक वाटिका में मौजूद सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया. जिसके बाद देवराज ने माता सीता को खीर दिया, जिसे खाने के बाद उनकी भूख-प्यास शांत हो गई.
रावण ने जब सीता का हरण किया था तब जटायु नामक गिद्ध ने रावण को रोकने के कई प्रयास किए थे, लकिन वह रावण का सामना ज्यादा देर तक नहीं कर पाए. रामायण के अनुसार जटायु के पिता अरुण हैं और अरुण ही भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी हैं.
जब भगवान राम और लक्ष्मण वन में सीता की खोज कर रहे थे। उसी समय कबंध नामक राक्षस का राम और लक्ष्मण ने वध कर दिया था. कबंध एक श्राप के कारण राक्षस बन गया था. श्रीराम ने उसके शरीर को अग्नि में समर्पित किया तो कबंध नामक रक्षस श्राप मुक्त हो गया. जिसके बाद कबंध ने श्रीराम को सुग्रीव से मित्रता करने को कहा.
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जब काफी समय तक राम-रावण का युद्ध चलता रहा तब अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करने को कहा था, जिसके प्रभाव से भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया.
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