UP BJP: कांटों का ताज या BJP की पूरी करेंगे मुराद… भूपेंद्र चौधरी के सामने क्या है बड़ी चुनौतियां? h3>
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी पिछले दिनों मुरादाबाद में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे थे। यूपी सरकार की ओर से सभी गौशालाओं में गौपूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। मुरादाबाद के वृहद कान्हा गौशाला में पूजन के बाद वे एक पौधा लगाते दिखे थे। इस कार्यक्रम के 11 दिनों के बाद उन्होंने योगी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। इसका कारण उन्हें भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना है। अब लौटते हैं उस तस्वीर पर। पौधा लगाते दिख रहे भूपेंद्र चौधरी के जिम्मे यूपी में भाजपा के जमे-जमाए पौधे को संरक्षित और संवर्द्धित करने की जिम्मेदारी आ गई है। कार्यभार संभालते ही भूपेंद्र चौधरी ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। चुनावी तैयारियों के लिए कार्यकर्ताओं को जुटने का आह्वान किया है। लेकिन, उनके सामने चुनौती बड़ी है। सबसे बड़ी चुनौती जाटलैंड में किसानों के बीच असंतोष को दूर करने के साथ-साथ किसान नेताओं की चुनौतियों से निपटना इसमें सबसे बड़ा मसला है। यूपी में वर्ष 2014 से 2022 तक लगातार भाजपा को सफलता मिलती रही है। लक्ष्मीकांत वाजपेयी से लेकर स्वतंत्रदेव सिंह तक ने पार्टी को चुनावी जीत दिलाने में भूमिका निभाई है। जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ाव ने ही इन नेताओं को सफल अध्यक्ष बनाने में भूमिका निभाई। अब यही चुनौती भूपेंद्र चौधरी के सामने होगी। अगर वे पिछले अध्यक्षों से पार्टी को बेहतर जीत दिलाने में कामयाब होते हैं तो निश्चित तौर पर पार्टी में उनका कद बड़ा हो जाएगा।
कहीं ये कांटों का ताज तो नहीं?
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहतर है। इसको लेकर कार्यकर्ताओं के बीच एक प्रकार की शिथिलता का भाव आता दिख रहा है। वहीं, विपक्ष की रणनीति इसी शिथिलता का फायदा उठाने की है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने चुनौतियां निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने की होनेवाली है। यूपी चुनाव 2022 में जीत के बाद से पार्टी के स्तर पर कोई बड़े कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ है। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भाजपा के केंद्रीय कमेटी की ओर से तिरंगा यात्रा को निकालने और इससे जुड़े अन्य कार्यक्रमों को छोड़ दें तो राजनीतिक रूप से कार्यक्रम अभी नहीं हुए हैं। इससे भी कार्यकर्ताओं के भीतर जोश की कमी का मामला सामने आ सकता है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के स्तर पर ऐसे कार्यक्रम तैयार करने होंगे, जिससे निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं का जुड़ाव हो।
भूपेंद्र चौधरी ने संभाला है यूपी भाजपा अध्यक्ष का कार्यभार
विपक्षी दलों की बात करें तो समाजवादी पार्टी की ओर से सदस्यता अभियान शुरू कर निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाए रखा गया है। वहीं, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्यक्रम तैयार किया जाता नहीं दिख रहा है। सबसे बड़ी बात है कि भूपेंद्र चौधरी संगठन से जुड़े हुए नेता हैं। उन्हें संगठन को तैयार करने और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि चुनावी राजनीति में वे इतने सफल नहीं हो पाए हैं। चुनावी राजनीति में उनकी असफलता को लेकर अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कुछ वर्गों की ओर से सवाल भी उठाए गए।
भूपेंद्र चौधरी को भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2009 में मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया था। मुरादाबाद सीट पर उप चुनाव था। भूपेंद्र चौधरी वहां से चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन जीत नहीं दर्ज कर पाए। हालांकि, उनके समर्पण पर कभी सवाल नहीं उठा। पश्चिमी यूपी में उनके किए गए कार्यों का परिणाम रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने में सफल रही। उनके कार्यों को देखते हुए भाजपा ने वर्ष 2016 में उन्हें विधान परिषद भेज दिया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी यूपी में उन्होंने शानदार प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभाई। पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रदेश की योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री बनाया गया।
भूपेंद्र चौधरी के कार्यभार ग्रहण के दौरान मौजूद रहे सीएम योगी आदित्यनाथ
यूपी चुनाव 2022 में भी योगी सरकार बनने के बाद उन्हें दोबारा मंत्री बनाया गया। अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी गई है। दरअसल, यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं। इस बार भाजपा ने सभी 80 सीटों पर जीत की घोषणा कर दी है। लक्ष्य 80 रखे जाने के बाद कहा जा रहा है कि कहीं ये नए प्रदेश के लिए कांटों का ताज तो नहीं है। दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए ने मोदी लहर में 80 में से 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन के बाद भी एनडीए 64 सीटों पर जीत करने में कामयाब हुई थी। लेकिन, आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव में जीत के बाद पार्टी का मनोबल काफी बढ़ा हुआ है।
पश्चिमी यूपी में योगी-भूपेंद्र फैक्टर बनाने की तैयारी
पश्चिमी यूपी में काम करेगा योगी-भूपेंद्र फैक्टर?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधने की जिम्मेदारी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने कंधों पर ले ली है। वे 22 जिलों को साधने में जुटे हुए हैं। इसके लिए रणनीति तैयार की जा रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ अब भाजपा की जाट राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा भूपेंद्र सिंह चौधरी खड़े होंगे। इसका असर पड़ सकता है। दरअसल, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की 7 सीटों पर भाजपा को हार मिल थी। इस हार को इस बार जीत में बदलने की कोशिश होगी। इसके लिए पश्चिमी यूपी में योगी-भूपेंद्र फैक्टर बनाने की कोशिश अभी से शुरू कर दी गई है। सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के नियमित दौरों से एक माहौल बनाने का प्रयास होगा। वहीं, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोर कर कड़ी चुनौती पेश कर रहा है। किसान नेता नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के भी तेवर इस इलाके में भाजपा के खिलाफ हैं। ऐसे में भूपेंद्र की चुनौती किसानों और जाट समुदाय को साधने की होगी।
निकाय चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय से दिया गया एकजुटता का संदेश
पहली परीक्षा यूपी निकाय चुनाव
भूपेंद्र चौधरी के सामने पहली बड़ी परीक्षा निकाय चुनाव के रूप में सामने खड़ी है। अगले कुछ महीनों में निकाय चुनाव होने हैं। इसमें भाजपा के प्रदर्शन को बेहतर बनाना उनकी जिम्मेदारी होगी। सपा और उसके सहयोगी भी इस चुनाव को गंभीरता से ले रहे हैं। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष को अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। कार्यभार ग्रहण करने के दौरान ही भूपेंद्र चौधरी ने इस चुनाव का जिक्र कर इसकी महत्ता को समझा दिया है। भाजपा के सामने चुनावी मैदान में चुनौती बेरोजगारी और महंगाई की है। इन दोनों मसलों का हल करने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार पर सवाल उठे हैं। इस मुद्द को कमजोर करने के लिए भाजपा अध्यक्ष किस प्रकार की रणनीति तैयार करते हैं, देखना दिलचस्प होगा। माना जा रहा है कि निकाय चुनाव के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 की राह तैयार की जानी है। इसलिए तैयारियां भी जोरों पर है।
भूपेंद्र चौधरी के जरिए कार्यकर्ताओं के बीच बड़ा संदेश देने की हुई है कोशिश
धड़ों को टीम के रूप में करना होगा तैयार
भाजपा की ओर से पार्टी में खेमेबाजी जैसी स्थिति से इनकार किया जाता रहा है। लेकिन, निचले स्तर पर गुटबाजी भी खूब हो रही है। श्रीकांत त्यागी प्रकरण के बाद विवाद बढ़ने को भी पार्टी के भीतर की गुटबाजी का परिणाम करार दिया जा रहा है। नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने जिम्मेदारी हर गुट को एक टीम के रूप में लेकर चलने की है। भूपेंद्र चौधरी के अध्यक्ष बनकर पहली बार लखनऊ पहुंचने पर उनकी अगवानी करने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एवं ब्रजेश पाठक, मंत्री दयाशंकर सिंह और कई अन्य मंत्री पहुंचे। सांसद संजीव बालियान भी। भाजपा प्रदेश कार्यालय पर सीएम योगी आदित्यनाथ, पूर्व अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह समेत कई अन्य नेताओं ने उनका स्वागत किया। सभी कार्यकर्ताओं के बीच संदेश देने की कोशिश की गई कि भापजा एक टीम की तरह काम कर रही है। निचले स्तर पर भी इसी प्रकार की एकजुटता दिखे। बड़े परिणाम के लिए इस प्रकार का भाव विकसित करना अध्यक्ष की सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है।
भूपेंद्र चौधरी को कार्यकर्ता और जनता से जुड़ने की होगी चुनौती
भाजपा के अब तक के प्रदेश अध्यक्ष
प्रदेश अध्यक्ष का नाम
कार्यकाल
कितने दिन रहे अध्यक्ष
माधव प्रसाद त्रिपाठी
1980-84
4 साल
कल्याण सिंह
1984-90
6 साल
कलराज मिश्रा
1991-97
6 साल
राजनाथ सिंह
25 मार्च 1997 से 3 जनवरी 2000
2 साल 284 दिन
ओम प्रकाश सिंह
3 जनवरी 2000 से 17 अगस्त 2000
227 दिन
कलराज मिश्रा
17 अगस्त 2000 से 24 जून 2002
1 साल 311 दिन
विनय कटियार
24 जून 2002 से 18 जुलाई 2004
2 साल 24 दिन
केशरी नाथ त्रिपाठी
18 जुलाई 2004 से 3 सितंबर 2007
3 साल 47 दिन
रमापति त्रिपाठी
3 सितंबर 2007 से 12 मई 2010
2 साल 251 दिन
सूर्य प्रताप शाही
12 मई 2010 से 13 अप्रैल 2012
1 साल 337 दिन
लक्ष्मीकांत वाजपेयी
13 अप्रैल 2012 से 8 अप्रैल 2016
3 साल 361 दिन
केशव प्रसाद मौर्य
8 अप्रैल 2016 से 31 अगस्त 2017
1 साल 145 दिन
महेंद्र नाथ पांडेय
31 अगस्त 2017 से 16 जुलाई 2019
1 साल 319 दिन
स्वतंत्रदेव सिंह
16 जुलाई 2019 से 25 अगस्त 2022
3 साल 40 दिन
चौधरी भूपेंद्र सिंह
25 अगस्त 2022 से अब तक
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कहीं ये कांटों का ताज तो नहीं?
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहतर है। इसको लेकर कार्यकर्ताओं के बीच एक प्रकार की शिथिलता का भाव आता दिख रहा है। वहीं, विपक्ष की रणनीति इसी शिथिलता का फायदा उठाने की है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने चुनौतियां निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने की होनेवाली है। यूपी चुनाव 2022 में जीत के बाद से पार्टी के स्तर पर कोई बड़े कार्यक्रम का आयोजन नहीं हुआ है। आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भाजपा के केंद्रीय कमेटी की ओर से तिरंगा यात्रा को निकालने और इससे जुड़े अन्य कार्यक्रमों को छोड़ दें तो राजनीतिक रूप से कार्यक्रम अभी नहीं हुए हैं। इससे भी कार्यकर्ताओं के भीतर जोश की कमी का मामला सामने आ सकता है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के स्तर पर ऐसे कार्यक्रम तैयार करने होंगे, जिससे निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं का जुड़ाव हो।
भूपेंद्र चौधरी ने संभाला है यूपी भाजपा अध्यक्ष का कार्यभार
विपक्षी दलों की बात करें तो समाजवादी पार्टी की ओर से सदस्यता अभियान शुरू कर निचले स्तर तक के कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाए रखा गया है। वहीं, बसपा प्रमुख मायावती और कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्यक्रम तैयार किया जाता नहीं दिख रहा है। सबसे बड़ी बात है कि भूपेंद्र चौधरी संगठन से जुड़े हुए नेता हैं। उन्हें संगठन को तैयार करने और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि चुनावी राजनीति में वे इतने सफल नहीं हो पाए हैं। चुनावी राजनीति में उनकी असफलता को लेकर अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कुछ वर्गों की ओर से सवाल भी उठाए गए।
भूपेंद्र चौधरी को भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2009 में मुरादाबाद सीट से उम्मीदवार बनाया था। मुरादाबाद सीट पर उप चुनाव था। भूपेंद्र चौधरी वहां से चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन जीत नहीं दर्ज कर पाए। हालांकि, उनके समर्पण पर कभी सवाल नहीं उठा। पश्चिमी यूपी में उनके किए गए कार्यों का परिणाम रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने में सफल रही। उनके कार्यों को देखते हुए भाजपा ने वर्ष 2016 में उन्हें विधान परिषद भेज दिया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी यूपी में उन्होंने शानदार प्रदर्शन में बड़ी भूमिका निभाई। पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रदेश की योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री बनाया गया।
भूपेंद्र चौधरी के कार्यभार ग्रहण के दौरान मौजूद रहे सीएम योगी आदित्यनाथ
यूपी चुनाव 2022 में भी योगी सरकार बनने के बाद उन्हें दोबारा मंत्री बनाया गया। अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी गई है। दरअसल, यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं। इस बार भाजपा ने सभी 80 सीटों पर जीत की घोषणा कर दी है। लक्ष्य 80 रखे जाने के बाद कहा जा रहा है कि कहीं ये नए प्रदेश के लिए कांटों का ताज तो नहीं है। दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए ने मोदी लहर में 80 में से 73 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन के बाद भी एनडीए 64 सीटों पर जीत करने में कामयाब हुई थी। लेकिन, आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उप चुनाव में जीत के बाद पार्टी का मनोबल काफी बढ़ा हुआ है।
पश्चिमी यूपी में योगी-भूपेंद्र फैक्टर बनाने की तैयारी
पश्चिमी यूपी में काम करेगा योगी-भूपेंद्र फैक्टर?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को साधने की जिम्मेदारी सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने कंधों पर ले ली है। वे 22 जिलों को साधने में जुटे हुए हैं। इसके लिए रणनीति तैयार की जा रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ अब भाजपा की जाट राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा भूपेंद्र सिंह चौधरी खड़े होंगे। इसका असर पड़ सकता है। दरअसल, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की 7 सीटों पर भाजपा को हार मिल थी। इस हार को इस बार जीत में बदलने की कोशिश होगी। इसके लिए पश्चिमी यूपी में योगी-भूपेंद्र फैक्टर बनाने की कोशिश अभी से शुरू कर दी गई है। सीएम और प्रदेश अध्यक्ष के नियमित दौरों से एक माहौल बनाने का प्रयास होगा। वहीं, दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी इस क्षेत्र में राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठजोर कर कड़ी चुनौती पेश कर रहा है। किसान नेता नरेश टिकैत और राकेश टिकैत के भी तेवर इस इलाके में भाजपा के खिलाफ हैं। ऐसे में भूपेंद्र की चुनौती किसानों और जाट समुदाय को साधने की होगी।
निकाय चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय से दिया गया एकजुटता का संदेश
पहली परीक्षा यूपी निकाय चुनाव
भूपेंद्र चौधरी के सामने पहली बड़ी परीक्षा निकाय चुनाव के रूप में सामने खड़ी है। अगले कुछ महीनों में निकाय चुनाव होने हैं। इसमें भाजपा के प्रदर्शन को बेहतर बनाना उनकी जिम्मेदारी होगी। सपा और उसके सहयोगी भी इस चुनाव को गंभीरता से ले रहे हैं। ऐसे में भाजपा अध्यक्ष को अपनी रणनीति तैयार करनी होगी। कार्यभार ग्रहण करने के दौरान ही भूपेंद्र चौधरी ने इस चुनाव का जिक्र कर इसकी महत्ता को समझा दिया है। भाजपा के सामने चुनावी मैदान में चुनौती बेरोजगारी और महंगाई की है। इन दोनों मसलों का हल करने को लेकर केंद्र और राज्य सरकार पर सवाल उठे हैं। इस मुद्द को कमजोर करने के लिए भाजपा अध्यक्ष किस प्रकार की रणनीति तैयार करते हैं, देखना दिलचस्प होगा। माना जा रहा है कि निकाय चुनाव के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 की राह तैयार की जानी है। इसलिए तैयारियां भी जोरों पर है।
भूपेंद्र चौधरी के जरिए कार्यकर्ताओं के बीच बड़ा संदेश देने की हुई है कोशिश
धड़ों को टीम के रूप में करना होगा तैयार
भाजपा की ओर से पार्टी में खेमेबाजी जैसी स्थिति से इनकार किया जाता रहा है। लेकिन, निचले स्तर पर गुटबाजी भी खूब हो रही है। श्रीकांत त्यागी प्रकरण के बाद विवाद बढ़ने को भी पार्टी के भीतर की गुटबाजी का परिणाम करार दिया जा रहा है। नए प्रदेश अध्यक्ष के सामने जिम्मेदारी हर गुट को एक टीम के रूप में लेकर चलने की है। भूपेंद्र चौधरी के अध्यक्ष बनकर पहली बार लखनऊ पहुंचने पर उनकी अगवानी करने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य एवं ब्रजेश पाठक, मंत्री दयाशंकर सिंह और कई अन्य मंत्री पहुंचे। सांसद संजीव बालियान भी। भाजपा प्रदेश कार्यालय पर सीएम योगी आदित्यनाथ, पूर्व अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह समेत कई अन्य नेताओं ने उनका स्वागत किया। सभी कार्यकर्ताओं के बीच संदेश देने की कोशिश की गई कि भापजा एक टीम की तरह काम कर रही है। निचले स्तर पर भी इसी प्रकार की एकजुटता दिखे। बड़े परिणाम के लिए इस प्रकार का भाव विकसित करना अध्यक्ष की सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है।
भूपेंद्र चौधरी को कार्यकर्ता और जनता से जुड़ने की होगी चुनौती
भाजपा के अब तक के प्रदेश अध्यक्ष
प्रदेश अध्यक्ष का नाम | कार्यकाल | कितने दिन रहे अध्यक्ष |
माधव प्रसाद त्रिपाठी | 1980-84 | 4 साल |
कल्याण सिंह | 1984-90 | 6 साल |
कलराज मिश्रा | 1991-97 | 6 साल |
राजनाथ सिंह | 25 मार्च 1997 से 3 जनवरी 2000 | 2 साल 284 दिन |
ओम प्रकाश सिंह | 3 जनवरी 2000 से 17 अगस्त 2000 | 227 दिन |
कलराज मिश्रा | 17 अगस्त 2000 से 24 जून 2002 | 1 साल 311 दिन |
विनय कटियार | 24 जून 2002 से 18 जुलाई 2004 | 2 साल 24 दिन |
केशरी नाथ त्रिपाठी | 18 जुलाई 2004 से 3 सितंबर 2007 | 3 साल 47 दिन |
रमापति त्रिपाठी | 3 सितंबर 2007 से 12 मई 2010 | 2 साल 251 दिन |
सूर्य प्रताप शाही | 12 मई 2010 से 13 अप्रैल 2012 | 1 साल 337 दिन |
लक्ष्मीकांत वाजपेयी | 13 अप्रैल 2012 से 8 अप्रैल 2016 | 3 साल 361 दिन |
केशव प्रसाद मौर्य | 8 अप्रैल 2016 से 31 अगस्त 2017 | 1 साल 145 दिन |
महेंद्र नाथ पांडेय | 31 अगस्त 2017 से 16 जुलाई 2019 | 1 साल 319 दिन |
स्वतंत्रदेव सिंह | 16 जुलाई 2019 से 25 अगस्त 2022 | 3 साल 40 दिन |
चौधरी भूपेंद्र सिंह | 25 अगस्त 2022 से अब तक | — |
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