‘बीजेपी के अंदर नया-पुराना नहीं होता, जिसें दमखम होता है, वह आगे बढ़ता है’

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‘बीजेपी के अंदर नया-पुराना नहीं होता, जिसें दमखम होता है, वह आगे बढ़ता है’

‘बीजेपी के अंदर नया-पुराना नहीं होता, जिसें दमखम होता है, वह आगे बढ़ता है’

बीजेपी आलाकमान ने महज पांच साल पहले पार्टी में शामिल हुए हिमंत बिस्व सरमा को असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। इस घटनाक्रम के जरिए दो बातें कही जा रही हैं। एक तो यह कि हिमंत बिस्व सरमा की ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ काम आई। मुख्यमंत्री न बनने की स्थिति में उनके पास कई अन्य विकल्प भी थे। दूसरी यह कि बीजेपी बदल रही है। काडर उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा। एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने असम बीजेपी के राष्ट्रीय सह प्रभारी पवन शर्मा से बात करके जानना चाहा कि हिमंत बिस्व सरमा के चयन के पीछे की वजह क्या है और क्या इस चयन से पार्टी के पुराने नेता हतोत्साहित नहीं होंगे? प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :

पांच साल सर्बानंद सोनोवाल असम के मुख्यमंत्री रहे। अच्छा काम किया होगा, तभी तो बीजेपी दोबारा जीती। फिर क्या वजह रही कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया और हिमंत बिस्व सरमा को नया मुख्यमंत्री चुन लिया गया?
पहली बात तो यह कि पार्टी की तरफ से यह कभी कहा ही नहीं गया कि सोनोवाल ने अच्छा काम नहीं किया, इस वजह से उन्हें हटाया गया। दूसरी बात यह कि हमारी जो भी सरकारें होती हैं, वे पार्टी की नीतियों के आधार पर और नेतृत्व को आगे करके काम करती हैं। अगर असम में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा है तो उसका श्रेय हमारी नीतियों और नेतृत्व को है। रही बात यह कि हिमंत को क्यों चुना गया, तो बीजेपी अन्य राजनीतिक दलों की तरह नहीं हैं, जहां फैसले तयशुदा होते हैं। इस बार चुने हुए विधायकों ने हिमंत बिस्व सरमा को अपना नेता चुना, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस पर कोई आपत्ति नहीं हुई।

लेकिन माना तो यह जा रहा है कि हिमंत बिस्व सरमा की प्रेशर पॉलिटिक्स काम आई। बीजेपी अगर उन्हें सीएम नहीं बनाती तो उनके पास कई अन्य विकल्प थे, इसी वजह बीजेपी आलाकमान को उनके आगे झुकना पड़ा?
यह सब जानते हैं कि प्रेशर में आकर बीजेपी नीतियों और सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करती। इसलिए हिमंत के सीएम बनने के पीछे प्रेशर पॉलिटिक्स की बात को हम बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। एक बार भी उनकी तरफ से यह नहीं कहा गया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए या वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। चुनाव होने के बाद विधायक दल का नेता चुनने की जो प्रक्रिया होती है, उसके अनुसार उनका चयन हुआ। अगर रिश्तों में कहीं कोई खटास होती तो सर्बानंद सोनोवाल खुद हिमंत के नाम का प्रस्ताव न रखते।

बीजेपी में एक बड़ा बदलाव यह देखने को मिला कि महज पांच साल पहले आए शख्स को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लिया गया, और वह भी उस शख्स को जो लगातार 15 साल कांग्रेस से विधायक और मंत्री रहा हो?
बीजेपी में नया-पुराना कुछ नहीं होता। हमारी नीतियों के प्रति आस्थावान होकर जो भी बीजेपी में शामिल होता है, वह हमारे परिवार का सदस्य हो जाता है। परिवार के सदस्यों में नए-पुराने के आधार पर तो कोई बंटवारा नहीं होता है। सभी बराबर होते हैं। परिवार के सदस्यों में जो क्षमतावान होगा, वह आगे बढ़ेगा ही। यह सवाल उठाना कि हिमंत बिस्व सरमा पांच साल पहले बीजेपी में आए, कैसे सीएम बन गए, निरर्थक है।


लेकिन कोई एक शख्स जो पार्टी में लंबे समय से काम कर रहा हो, उसके मुकाबले जो शख्स नया-नया आया हो, उसे महत्वपूर्ण पद दे दिया जाता है, तो क्या पुराने लोग हतोत्साहित नहीं होंगे?
इससे तो उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा कि पार्टी क्षमता का सम्मान करती है और हम अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर महत्वपूर्ण पद पा सकते हैं। ऐसे तो जब सोनोवाल का चयन हुआ था सीएम पद के लिए तो उस वक्त पार्टी में उनसे भी सीनियर लोग थे, तो उस समय भी यह सवाल उठना चाहिए था कि उन्हें क्यों नहीं बनाया, सोनोवाल को क्यों बना दिया? राजनीति में सवालों का कोई अंत नहीं होता।

अब सर्बानंद सोनोवाल की क्या भूमिका होगी?

वह अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं। हमारा केंद्रीय नेतृत्व उनकी क्षमता का पूरा उपयोग करेगा। मीडिया को उनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है।

असम की नई सरकार का अजेंडा क्या होगा?
विकास और जनकल्याण। राज्य में विकास की गति को हम और तेज करेंगे। पिछले पांच साल के दौरान हमारे जो काम अधूरे रह गए, उन्हें पूरा करना हमारी प्राथमिकता होगी। उस वर्ग पर हमारा खास ध्यान होगा, जिन्हें पिछले तमाम सालों के दौरान तवज्जो नहीं मिल सकी, खासतौर पर चाय बागानों के मजदूरों पर। जनता के बीच यह भरोसा और पुख्ता करेंगे कि यह सरकार कोई और नहीं बल्कि खुद जनता चला रही है।

एनआरसी और सीएए का मुद्दा राज्य में एक बार फिर जोर पकड़ सकता है, उससे निपटने की नई सरकार की क्या तैयारी है?
अलगाववादी ताकतों ने इन मुद्दों को चुनाव में जितना भी मुमकिन हुआ, धार देने की कोशिश की। लेकिन जनता ने इन मुद्दों का संज्ञान ही नहीं लिया। इन मुद्दों पर हमारे खिलाफ चुनाव के दौरान दो-दो गठबंधन बने थे, लेकिन दोनों को ही मुंह की खानी पड़ी। एनआरसी और सीएए पर हमारी नीति और नीयत दोनों स्पष्ट है। असम का हित हमारे लिए सर्वोपरि है। शपथ के बाद ही हमारे मुख्यमंत्री का इस मुद्दे पर बयान आ चुका है। यह मुद्दा वहां लगभग खत्म हो चुका है।

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