Russia Ukraine War Updates: क्या पुतिन ने NATO को छेड़कर अपने ही पैरों पर मार ली कुल्हाड़ी, रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या होगा असर? h3>
कीव: रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War Latest News) में अबतक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालों में अधिकतर यूक्रेनी सैनिक शामिल हैं। इसके बावजूद रूस (Russia Invade Ukraine) को भी कुछ इलाकों में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। रूसी सैनिक पिछले 24 घंटे से यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जे का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, यूक्रेनी सेना के भारी प्रतिरोध के कारण उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है। यूक्रेनी सेना (Ukraine Army Weapons) का दावा तो यहां तक है कि उन्होंने रूसी सेना को कीव से पीछे ढकेल दिया है। इस बीच रूसी रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया है कि उनके सैनिकों ने कीव के बाहरी इलाके में स्थित गोस्टोमेल एयरफील्ड पर कब्जा जमा लिया है। ऐसे में रूसी सेना ने कीव की घेराबंदी को बनाए रखने के लिए अपने सप्लाई चेन को मजबूत कर लिया है। बेलारूस के रास्ते भी रूसी सेना के एलीट कमांडो ब्रिगेड तेजी से राजधानी कीव की तरफ बढ़ रही है। रूसी सेना की कीव की जबरदस्त घेराबंदी को देखते हुए अब अमेरिका के नेतृत्व वाला सैन्य संगठन नाटो भी हरकत में आया है। अब तक रूस को जुबानी धमकी दे रहे नाटो ने अपनी रिस्पांस फोर्स को हाई अलर्ट पर कर दिया है। इसके अतिरिक्त नाटो ने यूक्रेन को तेजी से और अधिक मात्रा में हथियार और गोला-बारूद देने का ऐलान किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नाटो को छेड़कर बैठे-बिठाए बड़ी दुश्मनी मोल ले ली है।
पुतिन ने सोते हुए नाटो को झकझोर कर जगा दिया
नाटो यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले रोम के नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजा रहा था। अगर सैन्य तनातनी की बात छोड़ दी जाए तो नाटो आज से पहले कभी भी इतना ज्यादा सक्रिय नहीं दिखा है। नाटो में 30 देश शामिल हैं, जिसमें से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और जर्मनी ही ऐक्टिव दिखाई देते हैं। कुछ मामलों में बेल्जियम और स्वीडन को भी नाटो की सहायता में मिशन को अंजाम देते हुए देखा गया है। इसके अतिरिक्त बाकी के देश इन सक्रिय देशों की सैन्य मदद पर भी पूरी तरह से निर्भर हैं। इन देशों ने अपनी सुरक्षा में बहुत थोड़ा निवेश किया है। लेकिन, रूस के आक्रमण ने नाटो को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करने और सदस्य देशों को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है। आज के परिवेश में कोई भी देश किसी दूसरे के लिए खुद के सैनिकों को झोंकने का रिस्क नहीं लेना चाहता है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अभी तक सुरक्षा को लेकर सुस्त पड़े नाटो के सहयोगी देश भी अब जाग गए हैं।
स्वीडन-फिनलैंड को क्यों धमका रहा रूस?
गुरुवार को नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने स्वीडन और फिनलैंड को शुक्रवार को यूक्रेन और उसके आसपास की स्थिति पर चर्चा के लिए बैठक में आमंत्रित किया था। ये दोनों देश नाटो के सदस्य देश नहीं हैं। इस वर्चुअल बैठक में फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन ने कहा कि उनका देश नाटो में शामिल होने के लिए तब तैयार होगा, जब उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा महसूस होगा। इसी बात को लेकर रूस ने अपने इन दोनों पड़ोसी देशों को खुलेआम धमकी दी है। रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि स्वीडन और फिनलैंड के नाटो सदस्य बनने पर मास्को को जवाब देना होगा। जरखोवा ने कहा कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप के सदस्य देशों ने अपनी क्षमता के आधार पर इस सिद्धांत की पुष्टि की है कि एक देश की सुरक्षा दूसरों की सुरक्षा की कीमत पर नहीं बनाई जा सकती है। जाहिर है, फिनलैंड और स्वीडन का नाटो में प्रवेश के गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम होंगे। जिसके लिए हमारे देश को प्रतिक्रिया के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
फ्रांस-जर्मनी से रूस के संबंध हुए खराब
यूक्रेन पर हमले के पहले रूस के नाटो के सदस्य देश फ्रांस और जर्मनी के साथ अच्छे संबंध थे। फ्रांस और जर्मनी नाटो के सक्रिय और प्रमुख सदस्य होने के बावजूद रूस के साथ मजबूत आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बनाए हुए थे। रूस भी इन दोनों देशों के जरिए यूरोप के बाकी देशों तक अपने तेल और गैस को पहुंचाने के प्लान पर काम कर रहा था। लेकिन, यूक्रेन पर हुए हमले ने रूस के इन अरमानों पर पानी फेर दिया। करोड़ों डॉलर की लागत से बने नार्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन का काम अब पूरी तरह से बंद हो चुका है। इस पाइपलाइन के सहारे रूस के साइबेरिया से जर्मनी तक गैस पहुंचाई जानी थी। लेकिन, जर्मनी ने इस पाइपलाइन के अप्रूवल प्रॉसेस को रोक दिया है। यह पाइपलाइन चालू होने के बाद रूस और जर्मनी के बीच पहले से चल रहे नॉर्ड स्ट्रीम-1 की क्षमता को लगभग दोगुना कर देता। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने कहा कि उनकी सरकार यूक्रेन में रूस की कार्रवाई के जवाब में यह कदम उठा रही है। शोल्ज ने बताया कि उनकी सरकार ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन के अप्रूवल प्रॉसेस को रोक दिया है। अगर मैं कहूं तो इसमें निश्चित रूप से समय लगेगा।
यूक्रेन पर रूस के हमले का क्या होगा असर?
रूस के यूक्रेन पर हमले का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। इसमें यूरोप में हथियारों की रेस शुरू हो सकती है। हर देश खुद की सुरक्षा के लिए अपनी सेना को मजबूत बनाने की कोशिश शुरू करेगा। इसके अलावा रूस को अपनी सीमाओं पर पहले से ज्यादा तनाव को झेलना पड़ सकता है। रूस के पश्चिम में लगभग सभी देश अमेरिका समर्थक हैं। ऐसे में इन सीमाओं के अलावा पूर्व में प्रशांत महासागर, पश्चिम में काला सागर और उत्तर में बाल्टिक सागर में रूस को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। एक असर यह भी हो सकता है कि रूस और अमेरिका में जारी तनाव का फायदा चीन उठाने की कोशिश करेगा। वह रूस के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ देशों को एकजुट कर सकता है। दुनिया में भी यह संदेश गया है कि अमेरिका भरोसे के काबिल दोस्त नहीं है। ऐसे में अमेरिका की साख भी आने वाले दिनों मे और ज्यादा कमजोर हो सकती है।
पुतिन ने सोते हुए नाटो को झकझोर कर जगा दिया
नाटो यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले रोम के नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजा रहा था। अगर सैन्य तनातनी की बात छोड़ दी जाए तो नाटो आज से पहले कभी भी इतना ज्यादा सक्रिय नहीं दिखा है। नाटो में 30 देश शामिल हैं, जिसमें से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा और जर्मनी ही ऐक्टिव दिखाई देते हैं। कुछ मामलों में बेल्जियम और स्वीडन को भी नाटो की सहायता में मिशन को अंजाम देते हुए देखा गया है। इसके अतिरिक्त बाकी के देश इन सक्रिय देशों की सैन्य मदद पर भी पूरी तरह से निर्भर हैं। इन देशों ने अपनी सुरक्षा में बहुत थोड़ा निवेश किया है। लेकिन, रूस के आक्रमण ने नाटो को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करने और सदस्य देशों को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है। आज के परिवेश में कोई भी देश किसी दूसरे के लिए खुद के सैनिकों को झोंकने का रिस्क नहीं लेना चाहता है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि अभी तक सुरक्षा को लेकर सुस्त पड़े नाटो के सहयोगी देश भी अब जाग गए हैं।
स्वीडन-फिनलैंड को क्यों धमका रहा रूस?
गुरुवार को नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने स्वीडन और फिनलैंड को शुक्रवार को यूक्रेन और उसके आसपास की स्थिति पर चर्चा के लिए बैठक में आमंत्रित किया था। ये दोनों देश नाटो के सदस्य देश नहीं हैं। इस वर्चुअल बैठक में फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन ने कहा कि उनका देश नाटो में शामिल होने के लिए तब तैयार होगा, जब उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा महसूस होगा। इसी बात को लेकर रूस ने अपने इन दोनों पड़ोसी देशों को खुलेआम धमकी दी है। रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि स्वीडन और फिनलैंड के नाटो सदस्य बनने पर मास्को को जवाब देना होगा। जरखोवा ने कहा कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप के सदस्य देशों ने अपनी क्षमता के आधार पर इस सिद्धांत की पुष्टि की है कि एक देश की सुरक्षा दूसरों की सुरक्षा की कीमत पर नहीं बनाई जा सकती है। जाहिर है, फिनलैंड और स्वीडन का नाटो में प्रवेश के गंभीर सैन्य और राजनीतिक परिणाम होंगे। जिसके लिए हमारे देश को प्रतिक्रिया के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
फ्रांस-जर्मनी से रूस के संबंध हुए खराब
यूक्रेन पर हमले के पहले रूस के नाटो के सदस्य देश फ्रांस और जर्मनी के साथ अच्छे संबंध थे। फ्रांस और जर्मनी नाटो के सक्रिय और प्रमुख सदस्य होने के बावजूद रूस के साथ मजबूत आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बनाए हुए थे। रूस भी इन दोनों देशों के जरिए यूरोप के बाकी देशों तक अपने तेल और गैस को पहुंचाने के प्लान पर काम कर रहा था। लेकिन, यूक्रेन पर हुए हमले ने रूस के इन अरमानों पर पानी फेर दिया। करोड़ों डॉलर की लागत से बने नार्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन का काम अब पूरी तरह से बंद हो चुका है। इस पाइपलाइन के सहारे रूस के साइबेरिया से जर्मनी तक गैस पहुंचाई जानी थी। लेकिन, जर्मनी ने इस पाइपलाइन के अप्रूवल प्रॉसेस को रोक दिया है। यह पाइपलाइन चालू होने के बाद रूस और जर्मनी के बीच पहले से चल रहे नॉर्ड स्ट्रीम-1 की क्षमता को लगभग दोगुना कर देता। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने कहा कि उनकी सरकार यूक्रेन में रूस की कार्रवाई के जवाब में यह कदम उठा रही है। शोल्ज ने बताया कि उनकी सरकार ने नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन के अप्रूवल प्रॉसेस को रोक दिया है। अगर मैं कहूं तो इसमें निश्चित रूप से समय लगेगा।
यूक्रेन पर रूस के हमले का क्या होगा असर?
रूस के यूक्रेन पर हमले का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। इसमें यूरोप में हथियारों की रेस शुरू हो सकती है। हर देश खुद की सुरक्षा के लिए अपनी सेना को मजबूत बनाने की कोशिश शुरू करेगा। इसके अलावा रूस को अपनी सीमाओं पर पहले से ज्यादा तनाव को झेलना पड़ सकता है। रूस के पश्चिम में लगभग सभी देश अमेरिका समर्थक हैं। ऐसे में इन सीमाओं के अलावा पूर्व में प्रशांत महासागर, पश्चिम में काला सागर और उत्तर में बाल्टिक सागर में रूस को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। एक असर यह भी हो सकता है कि रूस और अमेरिका में जारी तनाव का फायदा चीन उठाने की कोशिश करेगा। वह रूस के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ देशों को एकजुट कर सकता है। दुनिया में भी यह संदेश गया है कि अमेरिका भरोसे के काबिल दोस्त नहीं है। ऐसे में अमेरिका की साख भी आने वाले दिनों मे और ज्यादा कमजोर हो सकती है।