विष्णु भगवान को महत्व प्राचीन भारत के वैदिक साहित्य में भी वर्णित है. विष्णु भगवान का सर्वाधिक वर्णन भागवत पुराण तथा विष्णु पुरान में है. भगवत पुरान सर्वाधिक मान्य माना जाता है, जिसके कारण विष्णु भगवान का महत्व और भी बढ़ जाता है. ऋग्वेद और अन्य वेदों के अनेंक सूक्त भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसके कारण उनकों विष्णु सूक्त भी कहा जाता है. इसके अलावा विष्णु के वामन अवतार में उनके द्वारा तीन पग में धरती मापने का भी वर्णन है.
पुराणों के अनुसार विष्णु की पत्नि का नाम लक्ष्मी तथा पुत्र नाम नाम कामदेव था. विष्णु भगवान सागर में शेषनाग के ऊपर वास करते हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु की नाभि से कमल उत्पन्न होता है. जिसमें भगवान ब्रह्मा निवास करते हैं.
हिंदू धर्म के अनुसार हर वार का अपना विशेष महत्व होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गुरूवार का दिन भगवान विष्णु और ब्रहस्पति देवता के लिए होता है. इस दिन इन दोनों देवताओं की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि गुरूवार का व्रत लगातार 16 गुरूवारों तक रखा जाता है तथा 17 वें गुरूवार को व्रत का उद्धापन किया जाता है. ऐसा भी बताया जाता है कि यदि किसी महिला को इसी बीच मासिक धर्म होता है, तो उस गुरूवार को छोड़कर अगले को व्रत रखना चाहिएं.
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भगवान विष्णु के व्रत की विधि – गुरूवार का व्रत करने के लिए सबसे पहले तो सुबह उठकर नित्यकर्म और स्नान करना चाहिएं. इसके बाद विष्णु भगवान की मूर्ति या फोटो को पूजा घर या केले के पेड़ के नीचे रखकर प्रणाम करना चाहिएं. वस्त्र दान करना शुभ माना जाता है. इसलिए पीले रंग का छोटा सा वस्त्र भगवान को अर्पित करें. एक लोटे में पानी और हल्दी डालकर पूजा स्थल पर रखें. हाथ में चावल और पवित्र जल लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिएं. भगवान को गुड और धुली चने की दाल का भोग लगाएं. इसके बाद गुरूवार की कथा का पाठ करना चाहिएं. भगवान को प्रणाम कर हल्दी वाला पानी किसी पौधे की जड़ में डाल देना चाहिएं.