Rajasthan Politics: राजस्थान में जाट राजनीति सबपर भारी! वसुंधरा तक खुद को बता चुकी जाटों की बहू

67
Rajasthan Politics: राजस्थान में जाट राजनीति सबपर भारी! वसुंधरा तक खुद को बता चुकी जाटों की बहू

Rajasthan Politics: राजस्थान में जाट राजनीति सबपर भारी! वसुंधरा तक खुद को बता चुकी जाटों की बहू


जयपुर: राजस्थान में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव है। चुनाव से पहले दोनों प्रमुख पार्टियां फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं। फिर चाहे नेताओं को पद, ओहदा या मंत्रालय जैसा बंटवारा हो या बड़ी घोषणाएं या सियासी फैसले। इन निर्णयों के जरिए जातिगत राजनीति या जातियों को साधने की सोशल इंजीनियरिंग भी अहम है। क्यों कि राजस्थान में चुनावी चौसर पर जातियों की भूमिका अहम रहती है। यहां की राजनीति में राजपूत और ब्राह्मणों के अलावा जाट सबसे ज्यादा दखल रखते हैं। यही वजह है कि जाटों को टिकट बांटने से लेकर सत्ता में भागीदार बनाने में भी आगे रखा जाता है। 5 बार विधायक और 2 बार मुख्यमंत्री बनने वाली वसुंधरा राजे भी कई इस जातिगत समीकरण का फायदा ले चुकी हैं। 2003 और 2013 में चुनाव के दौरान वो खुद को जाटों की बहू बता चुकी हैं। राजपूतों की बेटी और गुर्जरों की समधिन बताते हुए वोट मांग चुकी हैं। लेकिन चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद से डॉ. सतीश पूनियां को हटाए जाने के बाद फिर से जातिगत सियासत पर माहौल गरमा गया है। इसी बहाने राजस्थान में जाट एक बार फिर राजनीति में चर्चा का विषय बने हैं। यहां समझते हैं, राजस्थान की सियासत में जाटों का दखल और अवसर…

पार्टियों का मुख्य चेहरा ‘जाट’

राजस्थान भाजपा में डॉ. सतीश पूनियां की जगह सांसद सीपी जोशी को बीजेपी की कमान सौंपी गई है। इस कदम के पीछे पार्टी आलाकमान की सोशल इंजीनियरिंग बताई जा रही है। वर्तमान में ब्राह्मण को पार्टी की कमान, राजपूत को विधानसभा में प्रमुख स्थान और जाट (पूनियां) को उपनेता प्रतिपक्ष के रूप में काबित कर, ब्राह्मण, राजपूत और जाट समाजों को साधने की कोशिश की गई है। लेकिन सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी में सचिन पायलट से पहले और बाद, कई वर्षों से प्रदेश संगठन का जिम्मा जाट नेताओं के पास रहा है। वर्तमान में गोविंद सिंह डोटासरा को प्रमुख चेहरे के रूप में आगे रखा गया है। इसी तरह साढ़े तीन साल तक पूनियां भी राजस्थान में बीजेपी के चीफ रहे।

जाट फैक्टर, इसलिए पड़ता है कांग्रेस-बीजेपी पर भारी

राजस्थान में चुनाव से पहले जातिगत सियासत से वोटों के ध्रुवीकरण के लिए महापंचायतों का आयोजन होता रहा है। इस बार भी जाट महापंचायत, ब्राह्मण और राजपूत समाज की सभाएं हो चुकी हैं। लेकिन जाट फैक्टर की बात करें तो 12 से 14 फीसदी वोट बैंक वाला जाट समाज अपनी एकजुटता के चलते सभी दलों पर भारी पड़ता है। ऐसा माना जाता रहा है कि समाज चुनावी समीकरणों को ताक पर रख एक साथ एक जगह वोट डालता है। जाट बाहुल सीटों पर सबसे बड़ा निर्णायक साबित होता है जाट फैक्टर।

जाटलैंड से बाहर भी जाट पाॅलिटिक्स, कुल एक दर्जन से अधिक जिलों में असर

राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बाहुल है। लेकिन सीकर, झुंझुनूं, नागौर के साथ जोधपुर क्षेत्र में जाट समाज का पॉलिटिक्स में बड़ा दखल रहा है। जबकि प्रदेश के जयपुर, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर,भरतपुर, हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, टोंक और अजमेर जिलों में भी जाट समाज चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने का दम रखता है।

राजस्थान विधानसभा में सीटों का गणित और सबसे ज्यादा टिकटों का बंटवारा

राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 142 सीट सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। लेकिन दलगत टिकट बंटवारें में सामान्य वर्ग में जहां राजपूत कैंडिडेट्स को सर्वाधिक टिकट मिलते हैं। वहीं ओबीसी में सबसे ज्यादा टिकट जाटों को बांटे जाते हैं।
बॉर्डर इलाके में Asaduddin Owaisi की चुनावी सभा को MLA ने बताया साजिश, कहा इसके पीछे Pakistan का हाथ

दल कोई भी हो, जाट विधायकों का दम 15% से ज्यादा

राजस्थान की विधानसभा में 15 फीसदी से अधिक सीटों पर जाट समाज का कब्जा रहता है। इस बार भी 33 विधायक जाट समाज से चुने गए हैं। 5 विधायकों को मंत्री बनाया गया है। इसी तरह लोकसभा की 25 सीटों में से 8 पर जाट काबिज हैं। जबकि पिछले चुनाव में प्रदेश में 31 जाट नेता विधायक चुने गए थे।

‘आप हिंदू राष्‍ट्र की बात कैसे कर सकते हो’, अमृतपाल को हिम्‍मत कहां से मिली? गहलोत का BJP पर हमला

राजस्थान की और समाचार देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Rajasthan News