मुस्लिम टोपी न पहनने पर पीएम मोदी ने तोड़ी अपनी खामोशी

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नई दिल्ली: पीएम मोदी किसी पहचान के कोई मौताज नहीं है. उन्हें देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में गिना जाता है. पीएम मोदी से काफी लोगों प्रभावित है और उनकी यह लोकप्रियता यह दर्शाती है कि वह कितने पॉवरफुल पीएम है. उनके अन्य नेताओं की तुलना में सबसे अधिक फैंस है.

आपको बात दें कि शुरू से देखा जाता है कि मोदी कभी मुस्लिम टोपी नहीं पहनते और अगर उनको दी जाए तो वह पहनने से इंकार कर देते है. इसी कारण पीएम मोदी हमेशा विपक्षी पार्टी के निशाने पर रहते है.

2011 में मोदी ने मुस्लिम टोपी पहनने से मना किया था

साल 2011 में मोदी ने मुस्लिम टोपी पहनने से मना कर दिया था. उस दौरान वह गुजरात के सीएम थे और अहमदाबाद में आयोजित सद्भावना उपवास में शामिल हुए थे. जब उन्होंने मुस्लिम टोपी पहनने से मना किया तो वह हर तरफ से विवादों में घिर गए थे. इन विवादों से बचने के लिए मोदी ने मीडिया को हथियार बनाया और मीडिया से वार्ता करते हुए कहा कि यदि कोई टोपी एकता का प्रतीक हो सकती है तो महात्मा गांधी, नेहरु और सरदार पटेल जैसे महान नेताओं को टोपी पहनते हुए क्यों नहीं देखा गया.

मोदी ने कहा वह इसके जगह एक शॉल ओढ़ना पसंद करेंगे

आपको बता दें कि सद्भावना उपवास में पहुँचने पर एक इमाम ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को टोपी दी और कहा था कि वह इसे पहने, लेकिन मोदी ने मौलाना को शांति पूर्व यह टोपी पहनने से इंकार कर दिया था. मोदी ने कहा वह इसके जगह एक शॉल ओढ़ना पसंद करेंगे. जिसके बाद मौलाना ने मोदी को उनकी इच्छा के अनुसार शॉल पहनाया, जिसे मोदी ने तहे दिल से स्वीकार भी कर लिया.

भारत की राजनीती में एक विकृति आ गई है- मोदी

प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि दरअसल भारत की राजनीती में एक विकृति आ गई है, जहां पर अपनी बात मनवाने को लेकर कुछ भी किया जा सकता है. मेरा कर्त्तव्य सभी समुदायों और उनके मूल्यों का आदर करने से है. मेरे अपने भी कुछ मूल्य है, जिन्हें में अनदेखा नहीं कर सकता हूं. मैं अपने मूल्यों के साथ जिंदगी जीता हूं. मैं टोपी पहनकर लोगों को धोखा नहीं देना नहीं चाहता हूं. लेकिन मेरा यह मानना है कि अगर कोई शख्स किसी अन्य शख्स का निरादर करता है तो उसे कड़ी सजा दी जानी चाहिए.