निजी कब सेवा प्रदान करने वाली ओला कम्पनी पर मुसीबत आन पड़ी है, पांच करोड़ रूपये की फिरौती के लिए डॉक्टर को अगवा करने के मामले की जांच कररही पुलिस अब ओला और उसकी कैब सर्विसेज में कार शामिल करने वाले वेंडर के खिलाफ भिमामला दर्ज कर सकती है।
दरअसल, फर्जी दस्तावेजों के जरिये ओला में ड्राइवर द्वारा पंजीकरण करने की बात खुलासा होने के बाद पुलिस ने इनपर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी है। जॉइंट कमिश्नर रवींद्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि जांच में जो भी दोषी पाया जायेगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा। अब तक की मिली जानकारी से बात साफ़ हो गई है कि दस्तावेज कि जांच के बिना की ओला कम्पनी की कैब सर्विस में इस कारको शामिल कर लिया था।
इतना ही नहीं, आरोपी चालक ने जिस वेंडर के जरिये अपनी कार का पंजीकरण ओला में कराया था, उसे उसने 15 सौ रूपये भी दिए थे। सवाल उठता है कि क्या ओला व इस तरह से कैब सर्विस मुहैया कराने वाली अन्य कंपनियां भी क्या ऐसी लापरवाही बरतती रही है जिससे कि लोगो को जान का खतरा हो ? अगर ऐसा है तो निश्चित तौर पर इन कैब सर्विस पर विश्वास करने वाले लोगो के साथ कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता । कम से कम डॉक्टर अपहरण काण्ड मामले कि जांच में तो कुछ ऐसा सामने नहीं आया ।
आपको बता दें, नियम के मुताबिक़, सभी निजी कैब सेवा प्रदान करने वाली कंनियों के लिए यह जरूरी है कि वह जिस भी ड्राइवर को अपनी कैब सर्विस का हिस्सा बनाये, उसकी हर जानकारी रखे, और उसके द्वारा दी जानकारी की जांच करे। साथ ही उसके द्वारा जमा कराये सभी दस्तावेजों की जांच कराये। इस मामले में ओला कम्पनी ने ड्राइवर की जांच तो दूर, उसके द्वारा चलाई जा रही कार व उसके मालिकाना हक़ से जुड़े कागजात तक की छानबीन नहीं की ।