कहते हैं कि भारत में बेईमानी का धंधा सबसे ज़्यादा ईमानदारी से होता है. लेकिन हम लोग मिलावट और बेईमानी के इतने आदी हो गए हैं कि इस धंधे के साथ भी ईमानदारी नही कर पाते. NFDC द्वारा कुंदन शाह के निर्देशन में बनी जाने भी दो यारो ऎसी ही एक घटना की बात कर रही है.
फिल्म की कहानी दो दोस्तों विनोद चोपड़ा (नसीरुद्दीन शाह) और सुधीर मिश्रा (रवि बासवानी) के इर्द गिर्द घूमती है. दोनों अपनी फोटोग्राफी की एक दूकान खोलते हैं और काम के लिए भटकते रहते हैं. इसी बेरोजगारी के सिलसिले में उन्हें एक खोजी पत्रिका का काम मिल जाता है. पत्रिका की मालकिन शोभा सेन (भक्ति बर्वे) उन्हें एक खुफिया काम देती है जिससे आने वाले कल में तहलका मच सकता है. ये दोनों इमानदारी से अपना काम करते ह्कें मगर जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं इन्हें समझ आता है कि ये एक बड़े व्यूह में फँस चुके हैं. अंततः दोनों को अपनी इमानदारी और साफगोई का जुर्माना बहरना पड़ता है. फिल्म का अंत क्ल्हास्तौर पर देखने लायक़ है.
नसीरुद्दीन शाह और रवि बासवानी के साथ पंकज कपूर एक बेहद अहम् रोल में हैं. वहीँ स्दातीश शाह ने भी अपने किरदार के साथ पूरी इमानदारी की है. फिल्म के हर अभिनेता ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है. कहीं भी एक भी गलती की गुंजाइश नही है.
फिल्म में कोई गीत नही है मगर बैकग्राउंड संगीत ने इसके पत्रवाह को बखूबी बनाये रखा है. ये फिल्म देखकर हमें ये भी सीख मिलती है कि कैसे बिना किसी का नाम लिए हम सीधे तौर पर एक उम्दा फिल्म बना सकते हैं.
फिल्म की साफगोई और कटाक्ष के लिए इसे ज़रूर देखा चाहिए.
हाँ! अगर आप सोच रहे हैं कि भर्ष्टाचार के विषय पर बने होने के कारण ये एक सीरियस फिल्म होगी तो आपको बता दूं कि इतनी बेहतरीन कॉमेडी फिल्म्स हमारे देश मकें कम ही बनी हैं.