प्राचीन भारत के इतिहास में महावीर स्वामी और जैन धर्म का विशेष महत्व है. महावीर स्वामी का जन्म 540 ईं. पू. हुआ था. वे जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर थे. 30 वर्ष की आयु में महावीर स्वामी ने राज वैभव को त्यागकर संन्यासी का जीवन अपना लिया था. 12 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद उनको केवलज्ञान ( ज्ञान ) की प्राप्ति हुई. इसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान का प्रचार किया. अगर हम उनकी प्रसिद्धि की बात करें तो अनेंक राजाओं के द्वारा जैन धर्म को अपनाया गया. जिनमें बिंबिसार , चेटक आदि शामिल थे.
अगर हम भगवान महावीर स्वामी के मंत्रों की बात करें तो उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत या मंत्र बताया. जिसमें सबसे प्रमुख अहिंसा था. जिसके अनुसार हमें सभी जीवों के प्रति प्रेम प्रकट करना चाहिएं तथा हिंसा का पूर्ण रूप से त्याग कर देना चाहिए. भगवान महावीर स्वामी के पांच मंत्र – अहिंसा , सत्य , अपरिग्रह , अस्तेय और ब्रह्मचर्य हैं. उनका मानना था कि हमें दूसरों के प्रति वहीं विचार और व्यवहार करना चाहिए जो हमें स्वयं को पसंद हो.
महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत या मंत्र अहिंसा था. उनके समस्त दर्शन , आचार – विचार का मुख्य रूप से अहिंसा ही मूलमंत्र था. जैन धर्म का प्रमुख उपदेश भी यहीं होता है कि अहिंसा परम धर्म है. अहिंसा ही परम ब्रह्म है. अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है. उनके अनुसार मानव का सच्चा धर्म और सच्चा कर्म अहिंसा ही है. अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो अहिंसा जैनाचार का प्राण है.
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भगवान महावीर स्वामी के पांच मंत्र – अहिंसा , सत्य , अपरिग्रह , अस्तेय और ब्रह्मचर्य हैं. महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी ने अहिंसा पर बल देकर अपने धर्म का मूलमंत्र बताया अहिंसा पर इतना बल शायद ही उस समय दिया गया हो.