Kushinagar Incident: क्या होती है शादी के दौरान मटकोड़वा की रस्म, जिस दौरान कुशीनगर के गांव में मातम में बदल गया खुशी का माहौल h3>
कुशीनगर
कुशीनगर के नौरंगिया (Kushinagar Naurangia Hadsa) में परमेश्वर कुशवाहा के घर में खुशी का माहौल था। शादी की तैयारी हो रही थी और महिलाएं बुधवार की रात मटकोड़वा (Matkorwa) नाम के एक वैवाहिक रस्म के लिए गांव के कुएं के पास पहुंची थीं। लेकिन फिर दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से मंजर ही बदल गया। हंसी-ठिठोली की जगह चीख-पुकार ने ले ली। जर्जर हो चुके कुएं का चबूतरा भार नहीं सह सका और 20-25 महिलाएं उसमें जा गिरीं। इनमें से 13 अब दुनिया में नहीं हैं।
पूरब के इलाके में होती है मटकोड़वा की रस्म
पूर्वांचल के इलाके में मटकोड़वा रस्म होती है। हल्दी के दिन या फिर उससे एक दिन पहले शाम ढलने के बाद घर की औरतें इस रस्म को निभाती हैं। इस दौरान मिट्टी खोदकर पूजा-अर्चना की जाती है। गांव में पोखरे या कुएं के पास या फिर शहरी इलाके में घर के आस-पास जहां थोड़ी मिट्टी मिले, वहां पर इस परंपरा को निभाया जाता है। इस दौरान औरतें आपसे में मजाक करती हैं और गाना-बजाना भी होता है।
मिट्टी खोदकर धरती से लिया जाता है आशीर्वाद
सदियों से चली आ रही मटकोड़वा या मटकोड़ा की रस्म प्रकृति से जुड़ी हुई मानी जाती है। यह वर और वधू दोनों ही पक्षों में निभाई जाती है। मान्यता है कि शगुन उठाने के बाद होने वाली इस रस्म के जरिये धरती से स्वस्थ, खुशहाल, धनधान्यपूर्ण गृहस्थ जीवन की याचना की जाती है। हल्दी की गांठ बांधी जाती है। इस दौरान गुड़ और चने की दाल दी जाती है। मिट्टी पर कलश स्थापित होता है।
कुएं पर रस्म शुरू हुई और भीड़ बढ़ती चली गई
पुलिस के अनुसार नौरंगिया ग्राम सभा के स्कूल टोले पर बुधवार की रात करीब 9 बजे एक मांगलिक कार्यक्रम में कुआं पूजन की रस्म के लिए महिलाएं और बच्चियां इकठ्ठा थीं। कुआं पानी से भरा हुआ था। भीड़ अधिक थी। बच्चियां, महिलाएं कुएं की मुंडेर और कुएं पर बने चबूतरे पर पर बैठीं थीं। कहा जा रहा है कि कुएं का चबूतरा कमजोर होने की वजह टूट गया जिसकी वजह से यह हादसा हुआ। गांव के कुछ लोगों का कहना है कि कुएं के स्लैब पर चढ़ने के लिए मना भी किया जा रहा था, लेकिन कोई माना नहीं।
अस्पताल में मंजर देख कांप गए दिल
दो घंटे की मशक्कत के बाद 11 बच्चियों और दो महिलाओं को कुएं से निकालकर अस्पताल भेजा गया। हादसे में घायल लोगों को पहले नेबुआ नौरंगिया अस्पताल पहुंचाया गया, बाद में उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। जिला अस्पताल में जब पहले 13 लोगों को लेकर एंबुलेंस पहुंची तो वहां अकेले एंबुलेंस ही नहीं पहुंची थी, साथ में पहुंचा था पूरा गांव। हर कोई डॉक्टरों को घेरे था, सब बदहवास से थे और मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे कि अब कोई और बुरी खबर न मिले। लेकिन हर प्रार्थना कहां कबूल होती है। आधे घंटे बाद ग्रामीणों को सूचित कर दिया गया कि अस्पताल में जो लो लाए गए, वह मृत अवस्था में ही जिला अस्पताल पहुंचे थे।
खुशी का माहौल मातम में बदल गया
कुशीनगर के नौरंगिया (Kushinagar Naurangia Hadsa) में परमेश्वर कुशवाहा के घर में खुशी का माहौल था। शादी की तैयारी हो रही थी और महिलाएं बुधवार की रात मटकोड़वा (Matkorwa) नाम के एक वैवाहिक रस्म के लिए गांव के कुएं के पास पहुंची थीं। लेकिन फिर दुर्भाग्यपूर्ण हादसे से मंजर ही बदल गया। हंसी-ठिठोली की जगह चीख-पुकार ने ले ली। जर्जर हो चुके कुएं का चबूतरा भार नहीं सह सका और 20-25 महिलाएं उसमें जा गिरीं। इनमें से 13 अब दुनिया में नहीं हैं।
पूरब के इलाके में होती है मटकोड़वा की रस्म
पूर्वांचल के इलाके में मटकोड़वा रस्म होती है। हल्दी के दिन या फिर उससे एक दिन पहले शाम ढलने के बाद घर की औरतें इस रस्म को निभाती हैं। इस दौरान मिट्टी खोदकर पूजा-अर्चना की जाती है। गांव में पोखरे या कुएं के पास या फिर शहरी इलाके में घर के आस-पास जहां थोड़ी मिट्टी मिले, वहां पर इस परंपरा को निभाया जाता है। इस दौरान औरतें आपसे में मजाक करती हैं और गाना-बजाना भी होता है।
मिट्टी खोदकर धरती से लिया जाता है आशीर्वाद
सदियों से चली आ रही मटकोड़वा या मटकोड़ा की रस्म प्रकृति से जुड़ी हुई मानी जाती है। यह वर और वधू दोनों ही पक्षों में निभाई जाती है। मान्यता है कि शगुन उठाने के बाद होने वाली इस रस्म के जरिये धरती से स्वस्थ, खुशहाल, धनधान्यपूर्ण गृहस्थ जीवन की याचना की जाती है। हल्दी की गांठ बांधी जाती है। इस दौरान गुड़ और चने की दाल दी जाती है। मिट्टी पर कलश स्थापित होता है।
कुएं पर रस्म शुरू हुई और भीड़ बढ़ती चली गई
पुलिस के अनुसार नौरंगिया ग्राम सभा के स्कूल टोले पर बुधवार की रात करीब 9 बजे एक मांगलिक कार्यक्रम में कुआं पूजन की रस्म के लिए महिलाएं और बच्चियां इकठ्ठा थीं। कुआं पानी से भरा हुआ था। भीड़ अधिक थी। बच्चियां, महिलाएं कुएं की मुंडेर और कुएं पर बने चबूतरे पर पर बैठीं थीं। कहा जा रहा है कि कुएं का चबूतरा कमजोर होने की वजह टूट गया जिसकी वजह से यह हादसा हुआ। गांव के कुछ लोगों का कहना है कि कुएं के स्लैब पर चढ़ने के लिए मना भी किया जा रहा था, लेकिन कोई माना नहीं।
अस्पताल में मंजर देख कांप गए दिल
दो घंटे की मशक्कत के बाद 11 बच्चियों और दो महिलाओं को कुएं से निकालकर अस्पताल भेजा गया। हादसे में घायल लोगों को पहले नेबुआ नौरंगिया अस्पताल पहुंचाया गया, बाद में उन्हें जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। जिला अस्पताल में जब पहले 13 लोगों को लेकर एंबुलेंस पहुंची तो वहां अकेले एंबुलेंस ही नहीं पहुंची थी, साथ में पहुंचा था पूरा गांव। हर कोई डॉक्टरों को घेरे था, सब बदहवास से थे और मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे कि अब कोई और बुरी खबर न मिले। लेकिन हर प्रार्थना कहां कबूल होती है। आधे घंटे बाद ग्रामीणों को सूचित कर दिया गया कि अस्पताल में जो लो लाए गए, वह मृत अवस्था में ही जिला अस्पताल पहुंचे थे।
खुशी का माहौल मातम में बदल गया